गुरुवार, 20 अगस्त 2009
बुर्का बैन और बवाल
आयशा आस्मिन अपने कॉलेज इसलिए नहीं जा रही हैं क्यूंकि उनके बुर्का पहनने पर प्रबंधन को ऐतराज है |'सच का सामना' में जारा अपनी अम्मी ,अब्बा और अपने मंगेतर के सामने अपने पूर्व प्रेमी के साथ शारीरिक संबंधों का सच हँसते हुए बयां कर रही हैं|शाहरुख़ नाराज हैं क्यूंकि अमेरिका को ' खान 'नाम आतंकवादियों के नाम जैसा लगता है , |ये तीन स्थितियां प्रतीक हैं हिंदुस्तान में आज के मुसलमान के सामाजिक ,मानसिक और धार्मिक मनःस्थिति की ,वो धर्म के प्रति कट्टर है भी और नहीं भी है ,कहीं कहीं उसमे हिन्दुओं से अधिक भीरुता है तो कहीं-कहीं तालिबानियों जैसी धार्मिक रुग्णता से वो अब भी बाहर नहीं आ पाया है ,देश में लगातार बदल रहे हालात ने आज मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच की दूरी को तो कम किया है ,लेकिन ये भी सच है मुसलमानों का ही एक हिस्सा इस दूरी के कम होने के खिलाफ है ,वो इस निकटता के खिलाफ खुद से भी लड़ रहा है और शेष हिन्दुतान से भी लड़ रहा है |आयशा का बुर्का पहन कर विद्यालय जाने की जिद्द एक मामूली बात नहीं है ,बल्कि ये जिद्द बतलाती है की आज भी देश के मुसलामनों की एक बड़ी तादात अपने व्यक्तिगत और सामाजिक सरोकारों को धर्म के साथ ,और बेहद कट्टरता के साथ ही पूरा करना चाहती है ,यहाँ तक की अपने मौलिक अधिकारों को भी वो धर्म की चाशनी के साथ ही लेना चाहती है |यही धार्मिक अतिवादिता मौजूदा दौर में उसकी मुश्किलें बढा रही हैं |
अगर कभी आप बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय परिसर में जायेंगे ,तो ज्यादातर अध्यापक आपको धोती कुरता और चन्दन लगाये मिलेंगे ,वहां के छात्रों ने परिसर से भगवा प्रतीकों को बाहर खदेड़ने की कोशिश की मगर वो असफल रहे ,नतीजा ये पूरा विश्वविद्यालय हिन्दुओं के मदरसे में तब्दील होता चला गया , संस्कृत की पढाई में भगवा रंग कुछ इस तरह पड़ा कि परिसर से विद्वानों की पैदावार पूरी तौर से ख़त्म हो गयी |ऐसा ही कुछ देश के तमाम विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में हो रहा है वहां धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल खुलेआम किया जा रहा है | यहाँ सवाल न तो बुर्के का है न ही चन्दन टीके का ,बात सिर्फ ये है कि सार्वजनिक स्थानों पर धर्म के प्रतीकों का किस हद तक इस्तेमाल किया जाना चाहिए |कर्नाटका की घटना के सम्बंध में आयशा ने कहा है कि पहले कॉलिज स्टूडंट यूनियन के प्रेजिडंट ने उसके हेडस्कार्फ पहनने का विरोध किया। प्रेजिडंट ने कहा कि 'अगर तुम हेडस्कार्फ पहनना बंद नहीं करोगी तो हम लोग भी भगवा स्कार्फ बांध कर आएंगे।'और उसके बाद प्रिंसिपल ने लिखित रूप से उन्हें बुरका पहन कर विद्यालय न आने का फरमान सुना दिया |एक और मामला दक्षिण कन्नड़ जिले के उप्पिनांगडी के एक सरकारी कॉलिज का है। यहां के प्रिंसिपल ने सोमवार को 50 मुस्लिम छात्राओं को क्लास में महज इसलिए नहीं जाने दिया कि उन्होंने बुर्का पहन रखा था। प्रिंसिपल ने सभी स्टूडंट्स से एक कागज पर दस्तखत करवा लिए थे जिसमें कहा गया था कि वे यूनिफॉर्म पहनेंगे।अगर प्रबंधन द्वारा बुर्के पर प्रतिबन्ध महज विद्यालय से धार्मिक प्रतीकों को दूर करने के लिए की गयी है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए ,लेकिन अगर इस बात में कहीं से भी प्रबंधन का धर्म से जुड़ा पूर्वाग्रह है तो हम उसका पुरजोर विरोध करते हैं |ये बेहद खेदपूर्ण है कि परिसर में जींस टॉप पर प्रतिबन्ध लगने पर हो-हल्ला मचाने वाले तमाम संगठन आश्चर्यजनक तौर से इस असहज बुर्कानाशिनी पर अपने होंठ सी लेते हैं ,उन्हें बुर्के के पीछे छिपी आँखों की नाउम्मीदी नजर नहीं आती ,वहीँ नारी अधिकारों पर बात करने वाली तमाम एजेंसियों के लिए सवालों और जवाबों का दायरा सिर्फ हिन्दू स्त्रियों के इर्द गिर्द ही मौजूद है ,उनके पास न तो ऐसे सवालों के साथ खड़े होने का साहस है और न ही समय |हाँ ,शाहरुख खान के अपमान और जरा की सच्चाई पर जेरे बहस में सभी शामिल होना चाहते हैं |
मेरी एक इरानी मित्र हैं अजीन घहेरी शर्गेही ,वो तेहरान के एक प्रौद्योगिकी संस्थान से इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही हैं ,वो बताती हैं कि हमारे कॉलेज प्रबंधन ने हम लड़कियों के लिए स्कूल में स्कार्फ पहनकर आना अनिवार्य कर दिया तो विद्यालय के सभी छात्र -छात्रों ने एक साथ कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया,वो कहती हैं 'जब हम इस कट्टरपंथी देश में घर और बाहर जींस पहनते हैं और वो हमारे लिए आरामदेह है तो कॉलेज में क्यूँ न पहने '?|हिंदुस्तान में मुस्लिम अविवाहित लड़कियों पर अलग से बातचीत बहुत कम की जाती है ,मेरे एक मुस्लिम मित्र अनवर ने कुछ दिनों पहले अल्पसंख्यक महिलाओं में शिक्षा की स्थिति पर एक लेख लिखा था ,और उसने इसके लिए मुस्लिम समुदाय में धर्म के नाम पर जबरन थोपी जा रही दुश्वारियों को जिम्मेदार बताया था ,ये सही भी है भारी तादात में मुस्लिम लड़कियां ऊँची तालीम हासिल सिर्फ इसलिए नहीं कर पाती क्यूंकि उन्हें बचपन से ही ताउम्र पर्दादारी के लिए तैयार किया जाता है और इस पर्दादारी के लिए पुरुषों के अपने तर्क होते हैं उन तर्कों पर की जाने वाली टिप्पणियों को वो कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते |तालिबानियों ने भी पिछले दिनों जब स्वात घाटी पर अपना कब्जा जमाया तो सबसे पहले लड़कियों के विद्यालयों को बारूद से उडा दिया ,कम उम्र की छात्रों को बुर्कानशीं बनाना कहीं न कहीं से उसी मानसिकता का प्रतिबिम्ब है |आयशा के कालेज के प्राचार्य एस. माया का कहना है कि उसे स्पष्ट तौर पर कह दिया गया है कि कक्षा में बुर्का पहनने की इजाजत नहीं दी जाएगी। हमारे कालेज में 23 और मुस्लिम छात्राएं हैं, लेकिन कोई बुर्का नहीं पहनती। हम किसी छात्र को उसके धर्म के प्रतीक वाली पोशाक पहनने की इजाजत नहीं दे सकते। मंगलूर विश्वविद्यालय के कुलपति का कहना है कि कालेज से इस प्रकरण पर जवाब मांगा गया है। जवाब मिलने के बाद ही वह कोई कार्रवाई करेंगे। कुलपति ने यह भी कहा कि आयशा चाहे तो वह दूसरे कालेज में दाखिला दिलवाने में उसकी मदद कर सकते हैं। जानकारी मिली है की आयशा के अभिभावकों ने ने ऐसे कालेज में दाखिला कराने की कोशिश शुरू कर दी है, जहां बुर्का पहनने पर कोई आपत्ति न उठे।
अभी कुछ ही दिन हुए जब फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने अपने देश में बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाये जाने का ऐलान करते हुए अपने देश की संसद में कहा था की 'हम अपने देश में ऐसी महिलाओं को नहीं देख सकते जो पर्दे में कैद हों, सभी सामाजिक गतिविधियों से कटी हों और पहचान से वंचित हों। यह महिलाओं की गरिमा के हमारे विचार से मेल नहीं खाता।मगर, साथ ही, सारकोजी ने यह भी कहा कि 'हमें गलत लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। हमें हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फ्रांस में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का भी उसी प्रकार सम्मान हो जैसा किसी भी दूसरे धर्म के लोगों का होता है।हमारे यहाँ हिंदुस्तान में स्थिति फ्रांस से बिलकुल अलग है वहां के राष्ट्रपति को इस्लाम के सम्मान को सुनश्चित करने का वक्तव्य संसद में देना पड़ता है ,हिंदुस्तान का चरित्र ही सर्व धर्म समभाव वाला है ,मगर अफ़सोस, वहां पर कडाई से बुर्के पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं और हमारे यहाँ अगर कहीं इस पर आपति की जाती है ,तो अपने नंबर बढाने में लगे राजनैतिक दल ,खुद को मसीहा साबित करने में जी जान से जुटे धार्मिक संगठन और खुद को निरपेक्ष साबित करने का घटिया खेल - खेल रहे चैनल्स अलग अलग तरीके से इसका विरोध करने लगते हैं |ये अति है हमें कुछ भी पहनने -ओढ़ने और अपने धर्र्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल की स्वतंत्रता होनी चाहिए ,लेकिन हमें स्वतंत्रता की व्यक्तिगत और सार्वजानिक किस्मों को भी समझना होगा ,देश की महिलाओं का ,और हम सभी का भला इसी में है |
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इस बात का जवाब नहीं मिला कि, यदि स्कूल कालेज में बुरका पहनने की आज़ादी है, तो फ़िर भगवा स्कार्फ़ लपेटने की क्यों नहीं है? दोनों को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिये… यदि कोई लड़का या लड़कों का एक समूह यह कहे कि हम तो रोज़ भगवा कुर्ता पहन कर आयेंगे और तिलक भी लगायेंगे, तो क्या कालेज प्रशासन इसकी इजाजत देगा? यदि हाँ, तो फ़िर बुरके का भी विरोध नहीं होना चाहिये…
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआवेश जी हमेशा की तरह आज भी आपका लेखन बेहद प्रभावशाली और सामाजिक रूढ़िवादिता के विरुध्द है। एक सार्थक लेखन के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई। यह भी सच है कि कभी धर्म की आड़ में हमारे नेता अपनी रोटियां सेकते नजर आते हैं,मगर जहां तक टी वी चैनल या प्रिंट मीडिया का प्रश्न है वह अपनी डयूटी निभा रहे हैं, आज जिसे देखिये वही खुद को दुनिया के सामने लाने का भरसक प्रयास कर रहा है। जब खुद आदमी खुद को अभिव्यक्त करना चाहता है तो उसे बुर्के में लाने की जरूरत ही नही है।
जवाब देंहटाएंnice thoughts
जवाब देंहटाएंaawesh babu...
जवाब देंहटाएंachha likha hai aapne....
hamaree koshish to ye honi chahiye ki shikshan sansthano me dharmik kattarta prawesh na kare....jahan tak mahilaon ka sawaal hai to unke sath purushon k dwaara pracheen samay se he shadyantra hota aaya hai...kisi v dharm me aap dekh len....
dharm kee aad me ham apni shakshanik sansthan ko to na barwaad karen....
आवेश जी हमेशा की तरह आज भी आपका लेखन बेहद प्रभावशाली और सामाजिक रूढ़िवादिता के विरुध्द है। एक सार्थक लेखन के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआवेश जी आपका लेखन प्रभावित करता है। रूढियों की खिलाफत तो करनी ही चाहिये भले ही वो किसी भी समुदाय से सम्बन्ध रखती हो।
जवाब देंहटाएंAccha Vichaar....!
जवाब देंहटाएंरूढ़िवादिता के विरुध्द प्रभावशाली लेखन ....!!
जवाब देंहटाएंaagrah-purgrah!!!!!!
जवाब देंहटाएंShabdon ke chayan ke aadhar par aapka lekhan santulit hai lekin subject ki jankari ekpakshiya hai jisse vicharon me Purvagrah ka aabhas hota hai .....main apni baat clear karti hu ....sir agar aap ye sochte hain ki Muslim women ke educated na hone ke liye Burqa ek important reason hai to afsos ki aap galat sochte hain kyunki Burqa ya Pardah nhi balki Family ki financial condition ye decide karti hai ki betiyan education lein ya na lein. Shayad aapko nhi maloom ki India me lagbhag 80% Muslim BPL ke aas pas aate hain.Aur ghareeb Ma-Baap ke liye apne bachchon ki zarooraton ko pura karna hi dushwar hota hai, aise me school bhejna to namumkin si baat hoti hai .....aur rahi baat Burqe ki to Burqa tab bura hai jab wo aapki soch aur nazariye par pardah dalta hai...maine bhi Burqa kiya hai aur aapki soch ke bilkul khilaf main Burqe me khud ko zyada Active, Free n Comfortable feel karti hu.. mere lihaj se iske kai fayde hain jaise kahi bahar jana ho to mahaz 5-7 min. me main khud ko tayyar kar leti hu jo aam gals ki timing se bilkul hi kam hai...yani mere waqt ki bachat ...invisible hone ke karan mera Public Interaction meri marzi se hota hai....aur to aur aam gals se alag main Public Place me apne pahnave ko lekar bilkul beparvah hoti hu aur sirf apne AIM par Focus rahti hu...n sath hi mujhe khayal nhi aata ki Burqe ke sath maine kabhi kisi Teasing ya Comment ka samna kiya ho...so Sir practically Burqa was good fr me ....n ab aapke lekhan par aati hu jo mere lihaz se Purvagrah se grasit hai....Aaweshji aisa hai ki akhbar ki katranon se hum Duniyawi soch aur nazariye ko tay nhi kar sakte ..darasal aaj ki duniya me hum insaanon ke taur-tariqe hamare financial condition se tay hote hain Mazhab se nhi...Shahrukh Khan saheb ki Izzat badi mahangi hai isiliye unhe National Level par bura laga hai, lekin aap kisi Rickshaw vale shahrukh khan ko sareaam thappad bhi mar denge toh us ghareeb ki izzat kahin zaya nhi hogi am i right sir ? Phir se point par aati hu, mere khayal se Burqa mahaz ak kapda hai jise kisi khas mazhab ki ladkiyan public place ya anjani jagahon me jate huye pahanti hain...ye bilkul usi tarah hai jaise ki kuchh ladkiyan aadhe adhure kapdon me ghar se bahar nikalna pasand karti hain aur tab hum un par Naitikta ke aadhar par koi rok nhi laga sakte to in par Dharmikta ke aadhar par rok kyu laga rahe hain ? ....so main kah sakti hu ki Burqa ak pahnava matra hai aur uski dharmikta sirf itni hai ki use kisi khas qaum se jude log hi pahante hain dusri baat ye ki Burqe ke karan Ileteracy nhi hai balki ghareebi ki vajah se hai........agar Muslim Aurton ki ghareebi dur kar di jaaye toh wo khud bakhud padh lengi......at last aapko Burqe me kya negativity nazar aati hai bataiyega, plz practical approach dijiyega ...imaginary baatein nhi ......anyway aapse itna hi kahna chahungi ki "Nazariya badal lene se Nazare badal jaate hain".....ak aur baat ki agar humein ye lagta hai ki Burqa kamzori ki nishani hai toh humein in kamzor logon ko unki kamzoriyon ke sath swikar karna chahiye taki ak waqt ke baad jab wo mazboot ho jayenge to khud hi ye tay kar lenge ki unki behatari kisme hai....Iti Siddham..
जवाब देंहटाएंअफसाना- इतनी बहादुरी से अपनी बात रखने के लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए उतनी कम है.यह हकीकत है की हमारे आस-पास धर्मनिरपेक्षता का खोल ओढ़े हुए अनगिनत बहरूपिये मिल जायेंगे.
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