शनिवार, 20 जून 2009

लालगढ़ में लालसलाम


धूमिल की एक कविता अक्सर मेरे जेहन में उतर आती है ,जो कुछ इस तरह है -
वो धड से सर ऐसे अलग करता है
जैसे मिस्त्री बोल्टू से नट अलग करता है
तुम कहते हो हत्याएं बढ़ रही हैं
मैं कहता हूँ कि मेकनिस्म टूट रहा है

लालगढ़ में सचमुच मेकेनिस्म टूट रहा है ,ये मेकेनिस्म उस वामपंथ का है जिसने न सिर्फ देश के एक बेहद समृद्ध राज्य को नेस्तानाबूद कर डाला ,बल्कि लोकतंत्र के सीने पर चढ़कर उसको अपनी रखैल बनाने की कोशिश करने लगा |ये वो वामपंथ था ,जिसने पूंजीवाद को गले लगाया और सर्वहारा वर्ग का प्रतीक बनने की कोशिश में राजनीति के मर्यादाओं की सरेआम हत्या कर दी ,ये हत्या बार बार हुई ,चाहे वो पूर्वी भारत में नक्सलियों के हाथों बेगुनाह नागरिकों और पुलिस के जवानों की हत्या का मामला हो ,चाहे वो नंदीग्राम में सी पी एम कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी जमीन के लिए लड़ रही महिलाओं के सामूहिक बलात्कार का मामला हो ,या फिर महंगाई के बेहद तल्ख़ सवाल पर अपने होंठ सीकर ,परमाणु करार की बात को लेकर देश की जनता को बेवकूफ बनाने का शगल और उसकी दुहाई देकर पॉलिटिकल ब्लैक मेल करने की कुत्सित कोशिश हो ,हर जगह इन वामपंथियों का दोहरा चेहरा नजर आया ,इनका वामपंथ ,मार्क्स का वामपंथ न होकर वातानुकूलित कमरों में सत्ता की चुस्कियों के साथ तैयार किए गए 'कुर्सी पर काबिज रहो अभियान ' का औजार था ,जिसमे पूंजीवादियों ,परिवारवादियों,और शोषकों की नयी फसल तैयार हो रही थी |अब जो लालगढ़ में हो रहा है वो विशुद्ध नक्सलवाद है ,वो सिंगुर ,नंदीग्राम ,मिदनापुर में मार्क्स के नाम पर अब तक की गयी ठगी ,उत्पीडन ,और गण हत्या का प्रतिकार है | गांव पर नक्सलियों का कब्जा गांव वालों की सहमति से हुआ है ,अब तक ४ वामपंथियों के मारे जाने की सूचना भी मिली है ,निश्चित तौर पर किसी भी निर्दोष की हत्या निंदनीय है ,लेकिन ये भी सच है की पश्चिम बंगाल के ग्रामीण समाज में किसान को किसानो से लड़ने का बीज भी वामपंथियों के द्वारा बोया हुआ है |


अगर आप लालगढ़ जायेंगे ,तो वो वहां आपको देश के किसी समृद्ध गांव की झलक देखने को मिलेगी |बड़े तालाब ,सड़कें ,ट्यूब वेल्स ,और लहलहाते खेत नजर आयेंगे ,आप यकीं मानिये इस गांव के विकास में बम सरकार की एक दमडी नहीं लगी है ,नक्सली संगठन People's Committee Against Police Atrocities ने महज पांच महीनो में इस गांव की रंगत बदल दी ,अपने चरित्र से अलग हटकर माओवादियों ने ,यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं और सहकारी समितियों के निर्माण के लिए जमकर काम किया ,जबकि इसके पहले ये वो इलाका था जहाँ बाम सरकार अपनी विकास योजनाओं को लागू करने की बात तो दूर ,नरेगा जैसी केंद्र सरकार की योजना को भी लागू नहीं कर पायी थी | अघोषित मार्शल ला लगाकर समूचे पश्चिम बंगाल में मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों की हत्या कर रहे वामपंथ ने यहाँ भी भय और दहशत का माहौल बना रखा था |,स्थानीय पंचायतों ,विधायकों ,पुलिस एवं सुरक्षा बलों ने जनता की आवाज न सुनकर सी पी ऍम के कैडर की तरह काम किया ,जो भी आवाज उत्पीडन के खिलाफ उठती थी कुचल दी जाती थी , ,बिजली ,पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए लालगढ़ और उसके आस पास के सैकडों गांव त्राहिमाम कर रहे थे ,सारे विकास कार्य ठप पड़े थे ,लालगढ़ और उसके आस पास के इलाकों में भूख से लगातार मौतें हो रही थी पर बुद्धदेव अनजान थे |हर आवाज खुद में ही गूम हो जा रही थी ,कहीं कोई भी सुनवाई नहीं ,सारे रास्ते बंद हो चुके थे |उसके उपरांत नंदीग्राम और सिंगुर में मार्क्सवादियों ने एक बार पुनः अपना असली चेहरा दिखाया ,हत्याओं और बलात्कार का खौफनाक दौर शुरू हुआ ,दर्द की इन्तेहा आम ग्रामीण बर्दाश्त नहीं कर पाए और लोकतान्त्रिक देश में लोकतंत्र को ठुकराकर बन्दूक की गोलियों बल पर जीने की आखिरी कोशिश की जाने लगी ,आज अगर वहां की जनता स्त्री ,पुरुष ,बच्चे हांथों में तीर कमान लेकर नक्सलियों का सुरक्षा ढाल बन रहे हैं तो वो सिर्फ और सिर्फ जीने की आखिरी कोशिश है |

रविवार को देश के सभी समाचारपत्रों में मुख्य पृष्ठ पर भयभीत पश्चिम बंगाल सरकार का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है जिसमे वाममोर्चा ने अपने ३३ वर्ष के शासनकाल को स्वर्णिम बताते हुए ,खुद को जनता के लिए और जनता की सेवा में समर्पित बताया है |निश्चित तौर पर ये विज्ञापन बुद्धदेव सरकार के मीडिया मैनेजमेंट का हिस्सा है ,क्यूंकि वो जानते हैं कि विश्व के अन्य राष्ट्रों की तरह भारत में भी वामपंथ का अंत सुनिश्चित है ,उनके लिए लालगढ़ ,अब तक का सबसे बड़ा आश्चर्य है ,वो उस सांप के दंश की तरह है जिसे खुद वामपंथ न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि पूरे देश में दूध पिला रहा है |देश के एक मात्र ऐसे प्रदेश में जहाँ नक्सली संगठनों पर प्रतिबन्ध न लगा हो ,वहां हुई ये घटना वामपंथ के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी |,अगर आज प्रकाश करात और उनकी मंडली ,इस पूरे घटनाक्रम के लिए तृणमूल कांग्रेस को दोषी ठहराती है ,तो उसके पीछे भी राजनैतिक अस्तित्वहीनता से जुडा भविष्यगत भय है |साम्यवाद के नाम पर राजनैतिक दादागिरी तथा जनभावनाओं की उपेक्षा करने का परिणाम अभी जनविद्रोह के रूप में सामने आया है आने वाले समय में वामपंथ के समूल विनाश के रूप में इसे हम देखेंगे |

इस पूरी तस्वीर का एक दूसरा पहलु भी है ,वामपंथ के प्रति राष्ट्रव्यापी आक्रोश के बावजूद ,लालगढ़ की घटना पर हम ताली नहीं बजा सकते ,ये शोक का वक़्त है ,देश और समाज के लिए खतरे कि घंटी है |राजनैतिक विश्लेषक आलोक गुप्ता पूछते हैं कि कल को अगर भारत सरकार से देश की जनता नाराज हो जाये तो संभव है तो क्या पूरे देश पर कब्जा करने का अधिकार नक्सलियों को दे दिया जाना चाहिए ?निसंदेह नहीं |हमें अपनी समस्याओं का समाधान लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ही ढूँढना होगा ,आज अगर लालगढ़ में आतंक का माहौल है तो उसके लिए कांग्रेस और ममता बनर्जी भी कम उत्तरदायी नहीं हैं ,ममता दिल्ली में कितना भी चिल्ला लें ,पश्चिम बंगाल में कभी भी जोरदार विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित नहीं कर पायी ,वहीँ कांग्रेस ने कभी कुर्सी बचाने से जुडी अपनी जरूरतों तो कभी अपनी चारित्रिक विशेषताओं की वजह से होंठ सी रखे थे |समय रहते वहां सुरक्षा बल नहीं भेजना उसी चरित्र का प्रतिक है |पश्चिम बंगाल के एक बड़े क्षेत्र में जनविद्रोह की ये घटना ,भारतीय राजनीतिज्ञों के लिए कार्यशाला साबित होने जा रही है ,अगर अब भी राजनैतिक पार्टियाँ सबक नहीं लेती ,और जनाधिकारों की अवहेलना कर अधिनायकवाद स्थापित करने की कोशिश करती हैं ,तो हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लोकतान्त्रिक देश के नागरिक होने का गौरव खो देंगे |

सोमवार, 1 जून 2009

ऑस्ट्रेलियाई मूसल में हिन्दुस्तानी सर


नस्लवाद का प्रतीक बनते जा रहे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले की खबरें इन दिनों सुर्खिया बनी हुई हैं दो चार दिनों में इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के और भी गरम होने के आसार हैं |क्रिकेट हो या पढाई ,नस्लवाद ऑस्ट्रेलिया के चरित्र का हिस्सा बन चूका है और हम सब ये सच्चाई जानते हैं |चाहे भारतीय चिकित्सकों को आतंकवादी करार देकर उन्हें प्रताड़ना देने का मामला हो ,खेल के मैदान पर हिन्दुस्तानी खिलाड़ियों को भद्दी गालियाँ देने की बात हो या फिर महज माह में ५०० हिन्दुस्तानियों को आपराधिक मामलो में जेल भेजने का ,हर जगह ,हर कहीं ,गंभीर रूप से नस्लवाद मौजूद रहता है |यहाँ हमारी इस पोस्ट में बात महज ऑस्ट्रेलिया और उसकी नस्लवादी नीतियों की नहीं होगी अपितु हम उन हिन्दुस्तानियों पर भी बात करेंगे जो खुद अपना सर मूसल में डालने को तैयार बैठे हैं ,,जी हाँ ,ये सच है की ऑस्ट्रेलिया जाने वाले ज्यादातर छात्र उन करोड़पति माँ बाप की संतान हैं ,जो अपने बच्चों को डॉक्टर इंजिनियर और विदेश में पढाई का तमगा दिलाने के लिए कोई भी कीमत देने का मादा रखते हैं ,आम आदमी का बच्चा ऑस्ट्रेलिया पढने नहीं जाता| उन्हें आज देश की याद आती है जब बाहर वाले उन्हें अपमानित करते हैं ,नहीं तो वो खुद को एन ,आर आई बनाने के लिए सारी कसरते कर रहे होते हैं |हमने आज जब अपने एक रिश्तेदार से सिडनी में पढ़ रहे उनके हमेशाथर्ड डिविजन पास होने वाले बच्चे का हाल चाल पूछा ,तो उन्होंने बच्चे का हाल कम बताया ,भारत सरकार की विदेश नीति की ऐसी की तैसी कर दी |एक ऐसे देश में जहाँ आज भी ४० फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं ,ऐसे देश में जहाँ उच्च शिक्षा के अवसरों को लेकर युद्घ की सी स्थिति है ,एक ऐसे देश में जहाँ खाली पेट किताबों से दोस्ती करने की ढेर सारी हानियां मौजूद हैं ,उस देश में चॉकलेट संस्कृति की उपज इन छात्रों के लिए रोने की कोई वजह फिलहाल मेरे पास तो मौजूद नहीं है |साथ ही मैं दो चार की संख्या में वहां मौजूद किसान परिवारों केलड़कों को लेकर भी मातम मनाने नहीं जा रहा ,जो अपने बाप -दादा की जमीन बिकवाकर विदेशी डिग्री लेने को लालायित हैं |हाँ हमें इस बात पर जरुर गहरा ऐतराज है की हिन्दुस्तानी छात्रों के नाम पर ,हिन्दुस्तान को अपमानित करने की कोशिश की जा रही है |ये पूरा मामला ऑस्ट्रेलिया के नस्लवाद के साथ साथ ,हमारे देश में गहरी जड़े जमा चुके शैक्षणिक नस्लवाद से भी जुडा है ,हमें इस विषय पर भी बात करनी ही होगी क्यूँकर वर्षों की तैयारी के बाद आई आई टी में असफल होने के बाद गरीब बाप का बेटा पल्लव पहले कॉलेज की सीढियों पर फूट -फूट कर रोता है ,फिर फांसी लगा लेता है |

ऑस्ट्रेलिया में हिन्दुस्तानी छात्रों पर हमले के बीच अब जबकि देश के लगभग सभी हिस्सों में १२ वीं कक्षा के परिणाम लगभग घोषित हो चुके हैं ,उन बिचौलियों और एजेंसियों के हाँथ पाँव फूले हुए हैं जो विदेश में अध्ययन के नाम पर यहाँ के अमीरों से भारी वसूली करते थे |दिल्ली की एक बड़ी एजेन्सी ने अपना घाटा होते देख ,बड़े समाचारपत्रों को भारी भरकम विज्ञापन देकर उनसे .नस्लीय हिंसा की ख़बरों को ज्यादा तरजीह देने की बात भी मनवा ली है ,वहीँ डोनेशन में ताबड़तोड़ छूट की घोषणाएं की जा रही हैं |आप यकीं मानिए पिछले साल ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारतीय छात्रों को लुभाने के लिए विज्ञापनों पर 35 लाख डॉलर खर्च किए थे।साथ ही हर साल भारत के छात्रों से ऑस्ट्रेलियाई सरकार को लगभग 8000 करोड़ रुपये हासिल होते हैंआज मंदी के इस भयावह दौर में वहां की अर्थव्यस्था का एक बड़ा हिस्सा विदेशी छात्रों की फीस से ही आना है |ऐसे में ये तय है कि अगर विदेशी छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया से मुँह मोडा तो उनकी अर्थव्यवस्था चिन्न -भिन्न हो जायेगी ,मगर ये तय है हमेशा की तरह इस वर्ष मेभी हजारों छात्र लाखों खर्च करके विदेश पढने जायेंगे ,ये वे छात्र होंगे जिन्हें देश के प्रतिष्ठित संस्थाओं में प्रवेश पाने की योग्यता नहीं होगी ,लेकिन कल को वहां से पढ़कर आने वाला लड़का विदेशी डिग्री की चमक के साथ हमारे यहाँ के होनहार छात्रों के हांथों से सिर्फ अवसर छीन लेगा ,बल्कि उसे उठाकर पिछली पंक्ति में बैठा देगा |मेरी पत्रकार मित्र सोमाद्री शर्मा कहती हैं कि आस्ट्रेलियन सरकार गैरबराबरी का हथकंडा यहाँ भी अपनाती है ,जो छात्र ऊँची फीस देते हैं उन्हें तो सीधे प्रवेश देदिया जाता है लेकिन इंडो-आस्ट्रेलियन शैक्षणिक सहयोग के तहत निर्धारित मुफ्त सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन कर दी जाती है कि उनमे से ज्यादातर छात्र फ़ेल हो जाते हैं ,अनियमितता का आलम ये है कि पिछले कई वर्षों से इन मुफ्त सीटों को भरा ही नहीं जा रहा है चूँकि देश के कई बड़े नेताओं के नाते रिश्तेदार भी वहां पढ़ रहे हैं इसलिए इस गंभीर मसले पर सभी ने अपने होंठ सी रखे हैं |
लगातार अपमान सहने और लात घूंसा खाने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों की बेशर्मी देखिये ,भारतीय समुदाय ने रविवार एक बैठक करके आस्ट्रेलियन सरकार का पक्ष लेते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया को नस्लभेदी देश करार देने में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए ,यहाँ सरकार को इस समस्या से निबटने का मौका देना चाहिए ,पूर्व भारतीय काउंसलेट जनरल टी,जे राव ने कहा कि ये मामला नस्लभेद का नहीं है बल्कि भारतीय छात्रों की रक्षा का है ,४० सालसे ऑस्ट्रेलिया में रोटी तोड़ रहे राव महोदय का कहना है कि मेरे साथ जब कभी गैरबराबरी का भेदभाव नहीं किया गया | सिडनी में रहने वाले एक चिकित्सक ने तो कहा कि ऑस्ट्रेलिया नस्लभेदी नहीं है भारतीयों पर जो हमले हुए वे सभी नस्लभेदी नहीं हैं ,शायद ये लोग वहां पढ़ रहे भारतीय छात्रों की हत्याओं का इन्तजार कर रहे हैं ,या फिर लाख अपमान के बावजूद गोरी चमडी के बीच रहने के सुख को वो छोड़ना नहीं चाहते |भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर जोनमाइक क्रथि ने इस पुरे मामले पर ये कहकर कि विश्व में हर जगह किसी किसी रूप में नस्लवाद मौजूद है ,अपनी सरकार की सोच जगजाहिर कर दी है ,मौजूदा समय में आस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री केविन रूड अगर बगले झांकते नजर रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने देश के चरित्र पर से नकाब उतरने का भय है |
अभी पिछले दिनों सुरक्षा का हवाला देते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम ने चेन्नई में होने वाले डेविस कप में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। इसके पूर्व कई बार सुरक्षा उपायों का हवाला देकर ऑस्ट्रेलिया बार बार अपने क्रिकेट दौरों में परिवर्तन करता रहा है ,रविवार को नस्लीय विवाद के बाद भारतीय छत्रों द्वारा शांति मार्च निकाला गया था इस रैली के बाद ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने 18 छ्त्रों को हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने भारतीय छात्रों पर लाठियां बरसाई और हालात यह थे कि एक छात्र को छह-छह पुलिस वाले घेरे हुए थे। इन छात्रों को पुलिस ने हिंसा फैलाने के नाम पर हिरासत में लिया। रैली के दौरान पुलिस ने छ्त्रों पर लाठी चार्ज किया और उन्हें बुरी तरह घसीट कर ले गई।ये इन्तेहाँ है ,मगर अफ़सोस अपमान के बावजूद हम ऑस्ट्रेलिया को लेकर कोई नीति तय नहीं कर पाए |अगर यही हाल किसी एक दो आस्ट्रेलियन नागरिकों के साथ यहाँ भारत में हुआ होता तो वहां की सरकार कब का अंतर्राष्ट्रीय लोबिंग के साथसाथ अपने नागरिकों को भारत छोड़ने का फरमान जारी कर चुकी होती | जरुरत इस बात की है कि पहले भारत सरकार अपना राजनयिक अभियान तेज करते हुए ऑस्ट्रेलिया सरकार से हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गारंटी के साथ साथ ऐसी घटनाओं की पुनरावृति होने का आश्वाशन ले ,वहीँ तब तक अपने सभी नागरिकों को वापस भारत बुलाना सुनिश्चित करे ,अगर ऐसा नहीं होता तो भारत को तात्कालिक तौर पर ऑस्ट्रेलिया से सभी प्रकार के राजनयिक सम्बन्ध भी ख़त्म कर लेने चाहिए साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मामले को उठाना चाहिए , आई सी सी में भी यह पूरा मामला उठाकर क्रिकेट में भी ऑस्ट्रेलिया पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की मांग की जानी चाहिए |क्यूंकि आस्ट्रेलियन क्रिकेट भी पूरी तरह से रंगभेद का प्रतिक बन चूका है लेकिन इन सबसे पहले जरुरी ये है कि पैसों के बल पर अपने बच्चों का भविष्य तैयार करने में लगे अभिभावक अपनी जमीन पहचाने ,सरकार को भी चाहिए कि आरक्षण और आश्वाशन कि राजनीति छोड़कर उच्च शिक्षा के अवसरों में तात्कालिक तौर पर बढ़होतरी के उपाय करे ,नहीं तो मंदी के इस दौर में वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया से हमें खदेडा जाएगा |