बुधवार, 22 जुलाई 2009

बलात्कार का दलित मतलब







ये मेरे अखबारी जीवन का शायद सबसे खराब दिन था ,बरसात की बूंदें चेहरे पर थप्पड़ जैसे लग रही थी ,गाँव के बाहर बिना छप्पर की एक झोपडी में पूरी तरह से भीगी चंदा ,रूपा और तारा (काल्पनिक नाम )एक कोने में सिमटी हुई थी,महज 5000 रुपयों में उन नाबालिग़ लड़कियों के साथ बीती काली रात पर, हमेशा के लिए पर्दा डाल दिया था |ये मेरी नजर में पुलिस प्रेस और पोलीटीशियंस के छुपे हुए गठजोड़ का अब तक का सबसे पुख्ता प्रमाण और हिंदुस्तान के इतिहास में बलात्कार का दलित मतलब बताती हुई सबसे प्रामाणिक घटना थी|लगभग 14 से 16 साल कि लड़कियों के चेहरे पर चमकते हुए मेरे साथी पत्रकार मित्रों के कैमरे के फ्लैश ,शायद मुझे और मेरी कलम दोनों को गाली दे रहे थे | लगभग 400-500 ग्रामीणों की भीड़ के बीच जब चंदा ने बिलखते हुए गांव वालों से पूछा कि 'हमारी क्या गलती थी ?हमें क्यूँ निकाल दिया गया गाँव से बाहर ?'तो इस सवाल के जवाब में जो हमने सुना वो अब तक मेरी रातों की नींद उडा देता है |ग्रामीणों ने इन तीनो आदिवासी दलित लड़कियों पर हुए सामूहिक बलात्कार के बाद इन्हें अस्पृश्य घोषित कर दिया था ,और इसकी सजा उन्हें गांव से बाहर करके दी गयी थी |इन लड़कियों का कहना था हमें पुलिस वालों ने कहा कि किसी से मत कहना तुम लोगों का बलात्कार हुआ है ,हमारे बाबा को बन्दूक की नोक पर धमकाया गया|फिर गांव के ही ग्राम प्रधान ने जो बसपा का नेता भी है अपने तीन बेटों के दुष्कर्म की कीमत लगाकर हमसे छुटकारा पा लिया |आप यकीं नहीं करेंगे मुख्यमंत्री मायावाती का प्रिय और इस बलात्कार की घटना पर पर्दा डालने में मुख्य भूमिका निभाने वाला आई पी एस रघुबीर लाल आज राष्ट्रपति पदक से सुशोभित होकर उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एस एस पी है , वही ये खबर कवरेज करने वाले पत्रकार मानहानि के मामले में अदालत का चक्कर काट रहे हैं |मानहानि का ये मुकदमा उत्तर प्रदेश पुलिस के इस नामचीन आई .पी ,एस के व्यक्तिगत खर्चे से पीड़ित बालिकाओं के अनपढ़ परिजनों द्वारा लड़ा जा रहा था ..रूपा का पिता कहता है अगर नहीं लडेंगे,तो वो हमें नक्सली बताकर जेल भेज देंगे |
लगभग तीन साल पहले २३ अप्रैल २००६ को जब ये घटना घटी मैं उस वक़्त देश के नंबर वन अखबार ' दैनिक जागरण ' का संवाददाता हुआ करता था |अति नक्सल प्रभावित सोनभद्र जनपद में पुलिस का दमन चक्र जोरों पर था ,वहीँ सड़कों और अखबार के पन्नों पर दलाल पत्रकारों और नेताओं के साथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश दिखाने के लिए हाई प्रोफाइल ड्रामा खेला जा रहा था |शाम को तकरीबन ७ बजे मुझे ये जानकारी मिली कि बेहद दुर्गम आदिवासी गांव बीरपुर में तीन आदिवासी लड़कियों के साथ २४ घंटे पहले गैंग रेप हुआ है ,और पुलिस ने सुचना के बावजूद उस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की है |मैंने जब इस बेहद संगीन मामले के सन्दर्भ में पुलिस से जानकारी मांगी तो उनके होंश फाकता हो गए ,तत्काल गाडी भेजकर जैसे तैसे लड़कियों को और उन्के परिजनों को बुअलाया गया |चूँकि १० बजे के बाद अखबार के क्षेत्रीय संस्करण छूटने लगते हैं सो मैं ऍफ़ .आई ,आर दर्ज होने का लम्बे समय तक इन्तजार नहीं कर सकता था मैंने लड़कियों और उनके पिता का बयान रिकॉर्ड किया जो कि आज भी मेरे पास सुरक्षित है और खबर भेज दी |अपने बयां में इन लड़कियों ने बताया था कि पिछली रात जब हम तीनो गाँव की ही एक शादी से लौट रहे थे,गाँव के ही तीन लड़कों ने चाकू के बल पर हमें अँधेरे सुनसान रास्ते में उठा लिया ,और हम सबका बारी- बारी से बलात्कार किया ,ये लड़के बसपा के एक नेता और ग्राम प्रधान के बेटे थे , दुष्कर्म की शिकार लड़कियों के परिजनों ने बताया कि उन लोगों ने हमें गांव में ही बंधक बना लिया था ,वो तो हमने जैसे तैसे पुलिस को सुचना दी ,नहीं तो वो तो आने ही नहीं दे रहे थे |कल्पित नामों के साथ अगले दिन ये खबर जागरण के अलावा एक दो अन्य अखबारों में प्रकाशित हुई थी |

२४ अप्रैल को सबेरे ७ बजे सोकर उठने के तत्काल बाद जब मैंने स्थानीय एस.एच ओ को इस मामले में की गयी कार्यवाहियों को जानने के लिए फ़ोन किया तो मेरे पैरों के नीचे की जमीं खिसक गयी , एस.एस.पी रघुबीर लाल का बेहद ख़ास और अभी हिरासत में एक दलित की मौत के मामले में जांच का सामना कर रहे एस. एच .ओ ने मुझे बताया कि 'कहाँ कुछ हुआ है ?वो लड़कियां तो कुछ भी होने से साफ़ इनकार कर रही हैं' .|पूरी तरह से स्तब्ध मैं जब तैयार होकर थाने पहुंचा तो पाया बेहद डरे और सहमे हुए पीडितों के परिजनों और खुद दुष्कर्म की शिकार लड़कियों के बयान बदले हुए हैं| मैं इसके पहले की कुछ समझ पता जागरण के ब्यूरो चीफ का मेरे पास फ़ोन आया कि 'आप इस मामले में ज्यादा रूचि मत लीजिये कप्तान साहब ने व्यक्तिगत तौर पर इस मामले को ज्यादा तवज्जो नहीं देने को कहा है ',मैं सारी हकीकत समझ गया था ,इधर तब तक पुलिस ने पूरे मामले को झूठा साबित करने के लिए इन लड़कियों के बयान की विडियो रिकॉर्डिंग करा ली थी |शाम को एक रेस्ट हाउस में दारू और मुर्गे की दावत में हमारे ब्यूरो चीफ के अलावा सभी बड़े अखबारों के प्रमुख और तमाम पत्रकारों एवं पुलिस के अधिकारियों की मौजूदगी से ये तय हो गया कि उन आदिवासी लड़कियों के बाद अब ख़बरों का बलात्कार होना तय है |
मैं अब भी उन लड़कियों के बयान से पलटने की बात पर यकीं नहीं कर पा रहा था ,मुझे अपने सूत्रों से ये मालूम हुआ कि इनसे डरा धमकाकर और पैसे का लालच देकर ये बयान लिया गया है तो मैं अपने कुछ इमानदार पत्रकार मित्रों को लेकर दो दिन बाद बैरपुर गांव जा पहुंचा ,गांव में घुसते ही हमें डर और दहशत का माहौल देखने को मिला,गाँव के ही एक युवक अरविन्द जिसने पुलिस को इस मामले की इतिल्ला दी थी ,४ दिनों से बिना किसी जुर्म के हिरासत में था ,उसके छोटे भाई ने बताया कि हमारे भाई को बुरी तरह से पुलिस ने पिटा है वे उसे झूठे जुर्म में जेल भेज देंगे |दुष्कर्म की शिकार लड़कियों से मिलने से पहले हमने उनकी माताओं से बात की ,दिन भर जैसे तैसे मजदूरी करके पेट भरने वाली उन महिलाओं ने कहा कि 'साहब ,हम कहाँ तक लड़ पाएंगे ,अगर उफ़ भी करेंगे तो पुलिस जीने नहीं देगी ,हमारी लड़कियों को पंचायत ने गाँव से बाहर कर दिया हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते |
बैरपुर से वापस लौटने के तत्काल बाद मुझे जागरण प्रबंधन ने इस खबर की सत्यता को प्रकाशित करने के बजाय कवरेज को लेकर मुझे १० दिनों तक निलंबित करने का आदेश दे दिया ,अखबार ने एक खंडन भी प्रकाशित किया जिसमे एस.एस .पी के हवाले से कहा गया था कि 'उन लड़कियों ने बलात्कार के पीड़ित को मिलने वाले मुआवजे के लालच में पूर्व में झूठे बयान दिए थे ,अब अगर किसी को ऐसा करते पाया गया तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी ',वहीँ न्यूज़ चैनल 'सहारा समय ' और कुछ एक साप्ताहिक पत्रों ने पुलिस की लीपापोती पर खबरें प्रसारित की |कहानी सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं हुई ,इस घटना के महज १५ दिनों बाद मुझे आगजनी के एक मामले में अभियुक्त बना दिया गया ,हालांकि प्रेस काउंसिल के कड़े तेवरों की वजह से महज २४ घंटे में मेरा नाम पुलिस को हटाना पड़ा ,उधर बलात्कार की शिकार लड़कियों को मोहरा बनाकर 'राष्ट्रीय महिला आयोग ' में मेरे साथ -साथ अन्य तीन पत्रकारों के खिलाफ मानहानि कि शिकायत दर्ज करायी गयी |,हालाँकि बाद में हमने आयोग के पत्र के जवाब में उन्हें सीधे तौर पर कहा कि 'ये बेहद शर्मनाक है कि शहरी महिलाओं के उत्पीडन पर आयोग के सदस्य फौरी तौर पर सक्रिय हो जाते हैं क्यूंकि वहां मीडिया होती है ,लेकिन तीन आदिवासी लड़कियों के मामले में वास्तविकता जाने बगैर ,नोटिस जारी कर दी गयी , ,आयोग महिलाओं को लेकर देश में दोहरे मापदंड अपना रहा है ' |अब तक अविवाहित और गांव से निकाले जाने का संताप झेल रही लड़कियों के पिता अपने इस्तेमाल किये जाने से थक चुके हैं ,रूपा का पिता कहता है 'भैया ,हमको तो न कोर्ट मालूम है न थाना न कचहरी ,हमसे जो कहा उन लोगों ने हम किये ,अब वो मुकदमा लड़वा रहे हैं 'हमें मार दिए होते तो अच्छा था '|चंदा ,रूपा और तारा की आँखों में अब सपने नहीं सिर्फ बादल हैं |