गुरुवार, 6 अगस्त 2009

ब्लागर्स पार्क में रिसते रिश्ते

वो डरते हैं कि रिश्तों के रिसाव से जुडा सच, उनकी निजता को भंग कर देगा |वो डरते हैं अपनी पहचान बताने में !उन्हें डर हैं अभिव्यक्ति पर रिश्तों के गहराते असर से !उन्हें लगता है सच के सामने आने से उनकी बेबाकी ,बेईमानी में तब्दील होकर सबके सामने आ जायेगी !मुझे आज ब्लोगिंग करते करीब ६ महीने हो गए ,.पिछले ३-४ दिनों से पहले मित्र सुरेश चिपलूनकर के अपने ब्लॉग और फिर विवेक भाई की चिटठा चर्चा में की गयी पोस्टिंग प्रकाशित होने के बाद ,यहाँ इन्टरनेट पर और इन्टरनेट के बाहर मेरी अपनी दुनिया में जो जो मैंने सुना ,समझा और पढ़ा ,यकीं मानिए मुझे बेहद हताश करता है |हमने कभी कहा नहीं लेकिन ये सच है कि यहाँ हिंदी ब्लाग्स की दुनिया में भी ,समय के साथ साथ नए नए किस्म के रिश्ते ,समुदाय और ग्रुप पनप रहे हैं ,ये रिश्ते उन रिश्तों से अलग हैं जिनकी चर्चा विवेक सिंह ने की है | ये सिर्फ दुनिया से अलग गांव बसाने वाली जैसी बात नहीं है बल्कि उन गांवों में कई टोले बनाने जैसा है ,इसके बावजूद टुकडों टुकडों में बटें टोलों के लोग जो आज लिख रहे हैं वो हिंदुस्तान के इतिहास में अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली अध्याय है ,यहाँ न सिर्फ बेहद साफगोई से निजता बांटी जा रही है ,बल्कि खुद को १०० फीसदी उडेला जा रहा है |मगर ये भी सच है कि इन रिश्तों ने समय के साथ साथ संगठित होकर दूसरे टोलों पर वार करने का शर्मनाक तरीका सीख लिया है,पहले समानांतर मीडिया में और हिंदी साहित्यकारों के बीच ही ऐसा होता था |

अगर आज किसी को निजता के सामने आने से डर है तो उसकी वजह भी सिर्फ यही प्रतिघात है |ऐसे में होता ये है कि बहुत कुछ ऐसा पढ़ा नहीं जा पाता जिनको पढना और न सिर्फ पढना बल्कि उन ब्लाग्स के कंटेंट में खुद को शामिल करना ,हमारी नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए थी |मैं नाम नहीं लेना चाहूँगा अभी पिछले दिनों एक ब्लॉगर साथी की एक अश्लील पोस्टिंग पर को लेकर जबरदस्त अभियान छेड़ दिया गया ,हुआ यहाँ तक कि पहले काउंटर पोस्टिंग छपी गयी फिर फ़ोन कर करके उस ब्लॉगर के खिलाफ कमेन्ट मांगे गए ,मैं भी वैसी पोस्टिंग से दुखी हुआ था ,पर क्या ये ठीक नहीं होता कि उन्हें एक मेल करके उनसे पोस्टिंग हटा लेने को कहा जाता न कि तथाकथित तौर पर खुद को नारीवादी साबित करने के लिए उसे बहिष्कृत करने की साजिश की जाती |अगर चिटठा चर्चा में छपी विवेक सिंह की चर्चा निजी है तो उस ब्लोगर के खिलाफ छेडा गया अभियान उसकी निजता के साथ किया गया बलात्कार था |
मैं अपने एक ब्लोगर साथी को कभी भूल नहीं पाता जिसने मुझे मेरी पहली पोस्टिंग के वक़्त कहा था कि 'अगर तलवार न हो मुनासिब तो ब्लॉग निकालो '|मुझे याद है मेरा वो मुस्लिम दोस्त बटाला हाउस काण्ड के बाद निर्दोषों के खिलाफ की गयी कार्यवाही को लेकर अपने ब्लॉग पर की गयी पोस्टिंग का जिक्र करते वक़्त रो पड़ा था ,उसने कहा था कि हमने अपने ब्लॉग में कुछ भी निजी नहीं रखा ,मेरा सब कुछ सबके लिए है ,लेकिन शायद अब ये संभव न होसके ,ऐसे में अब ब्लॉग लिखना इमानदारी नहीं होगी ,आज उसने पिछले ६ महीने से एक भी पोस्टिंग नहीं की |मेरा मानना है कि अगर आप अपनी निजता के खोने के खतरे से इनते चिंतित हो तो घर बैठकर विभिन्न विषयों पर अपने मित्रों और रिश्तेदारों से चचाएँ कर लो ,ब्लॉग लिखने की आखिर क्या जरुरत ?वैसे ये भी बड़ा आश्चर्य है कि मित्र को मित्र ,पति को पति भाई को भाई और प्रेमी को प्रेमी मानना तमाम खतरे खडा कर देता है |अब ये तो मुनासिब नहीं है कि आप रिश्तों को बदल दोगे ,क्या फर्क पड़ जाता है अगर कविता वाचक्नवी की जगह रचना सिंह नारी को अपना ब्लाग कहती हैं या फिर रवि रतलामी ब्लागर्स के भीष्म पितामह हैं यहाँ समस्या सिर्फ निजता की नहीं है बल्कि ब्लागवाणी में खुद की टी.आर.पी और ब्लागरों के बीच मची घुड़दौड़ से भी जुडी हुई है |जिन में सभी खुद को और अपने टोलों को विजयी देखना चाह्ते हैं |आत्मप्रशंसा और अपने टोलों की प्रशंसा में अभिव्यक्ति ,अधूरी रह जाती है ,अगर मसला सिर्फ यहीं तक रहता तो ठीक था लेकिन उसके बाद शुरू होने वाला मल्लयुद्ध हमेशा निराशाजनक रहता है |

सच तो ये है सभी ब्लॉगर जानते हैं किसकी रीढ़ कितनी सीधी है ,जब कभी आप निजता को बचाने की कोशिश करते हैं तो वो कभी उदय प्रकाश ,कभी पिंक चड्ढी तो कभी आपकी टिप्पणियों के बहाने उघड जाती है और ऐसे किसी बहाने से निजता पर से पर्दा हटता रहता है |सभी अपनों और अपने जैसों को जानते हैं ,जो नहीं जानते हैं उन्हें जाने की कोशिश करनी चाहिए ,स्वतंत्रता और निजता दोनों साथ साथ नहीं रह सकते |और हाँ सुरेश जी इलेक्ट्रोनिक मीडिया के जिन नामचीन चेहरों के रिश्तों का अपने ब्लॉग में खुलासा किया है वो हिन्दू विरोधी हैं कि नहीं मैं ये नहीं जानता ,लेकिन हाँ उनके चेहरों से रिसती हुई पिब देख सकता हूँ ,जिस वक़्त महाराष्ट्र का सिरफिरा नेता हिंदी भाषियों को लाठी ,जूतों से पिटवाता है ठीक उस वक़्त राजदीप सरदेसाई मराठी भाषा में 'लोकमत 'चैनल शुरू कर देते हैं |खुद को निरपेक्ष और लिक से अलग दिखाने की निरंतर कोशिश में लगे प्रणब राय हिंदी ,हिन्दीभाषी पत्रकारों , हिंदी पढने वालों और हिंदी के कार्यक्रमों को देखने वालों पर अपनी अंग्रेजी सोच जबरन थोपकर और उन्हें दूसरे दर्जे पर रखकर ,अब तक की सबसे बड़ी सांस्कृतिक हत्या करते हैं |ये सब इसलिए है कि मीडिया का हिस्सा होकर भी इन लोगों ने खुद को भीड़ का हिस्सा नहीं बनाया |आज अगर वो हिस्सा होते तो शायद उनके रिश्तों से उनकी पहचान नहीं होती |ब्लॉगर साथियों ,हिंदी भाषियों की एक भारी भीड़ हमारे पीछे खड़ी है ,वो जरुरी नहीं कोई साहित्यकार ,कवि ,पत्रकार या लेखक हों ,उनमे वो लोग भी शामिल हैं ,जिनके होंठ अब तक सिले हुए थे और खुद को अभिव्यक्त न कर पाना उन्हें तिल तिल कर मार रहा था ,आइये उनको भी साथ लेकर चलें ,अपना सब कुछ बांटते हुए |जिनमे आपकी निजता भी शामिल है |