बुधवार, 23 जून 2010

अभिशप्त एक और भोपाल! एंडरसन भागा नहीं है !!!!





ये देश में हर जगह पैदा हो रहे भोपाल का किस्सा है ,ये हिंदुस्तान के स्विट्जरलेंड की तबाही का किस्सा है ,ये रिहंद बाँध में अपने महल के साथ डूब गयी रानी रूपमती का किस्सा है ये मंजरी के डोले का किस्सा है और ये लोरिक की बलशाली भुजाओं को आज तक महसूस कर रहे चट्टानों का किस्सा है ,ये किस्सा इसलिए भी है क्यूंकि हम एक ऐसे देश में जी रहे हैं जहाँ मौजूद मीडिया को ये मुगालता है कि वो देश,समय,काल को बदलने का दमखम रखता है |हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की ! हम इसे देश की उर्जा राजधानी भी कहते हैं ये क्षेत्र देश का सबसे बड़ा एनर्जी पार्क है सोनभद्र सिंगरौली पट्टी के लगभग ४० वर्ग किमी क्षेत्र में लगभग १८००० मेगावाट क्षमता के आधा दर्जन बिजलीघर मौजूद हैं जो देश के एक बड़े हिस्से को बिजली मुहैया करते हैं ,अगले पांच वर्षों में यहाँ रिलायंस और एस्सार समेत निजी व् सार्वजानिक कंपनियों के लगभग २० हजार मेगावाट के अतिरिक्त बिजलीघर लगाये जायेंगे ,बिरला जी का अल्युमिनियम और कार्बन ,जेपी का सीमेंट और कनोडिया का रसायन कारखाना यहाँ पहले से मौजूद है ,यह इलाका स्टोन माइनिंग के लिए भी पूरे देश में मशहूर है ,यहाँ पांच लाख आदिवासी भी मौजूद हैं जिन्हें दो जून की रोटी भी आसानी से मयस्सर नहीं होती |सोनभद्र की एक और पहचान भी है यहाँ आठ नदियाँ भी हैं जिनका पानी पूरी तरह से जहरीला हो चुका है . यह इलाका देश में कुल कार्बन डाई ओक्साइड के उत्स्सर्जन का १६ फीसदी अकेले उत्सर्जित करता है, |सीधे सीधे कहें तो यहाँ चप्पे चप्पे पर यूनियन कार्बाइड जैसे दानव मौजूद हैं इसके लिए सिर्फ सरकार और नौकरशाही तथा देश के उद्योगपतियों में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए मची होड़ ही जिम्मेदार नहीं है ,सोनभद्र को जन्पदोध्वंस के कगार पर पहुँचाने के लिए बड़े अखबारी घरानों और अखबारनवीसों का एक पूरा कुनबा भी जिम्मेदार है ,कैसे पैदा होता है भोपाल ,क्यूँकर मरते हैं बेमौत लोग अब तक वारेन एंडरसन के भागे जाने पर हो हल्ला मचाने वाला मिडिया कैसे नए नए भोपाल पैदा कर रहा है ,आइये हम आपको इसकी एक बानगी दिखाते हैं |
कनोडिया केमिकल देश में खतरनाक रसायनों का सबसे बड़ा उत्पादक है ,कनोडिया के जहरीले कचड़े से प्रतिवर्ष औसतन ४० से ५० मौतें होती हैं ,वहीँ हजारों की संख्या में लोग आंशिक या पूर्णकालिक विकलांगता के शिकार होते हैं मगर खबर नहीं बनाती क्यूंकि कनोडिया अख़बारों की जुबान बंद करने का तरीका जनता है ,पिछले वर्ष दिसंबर माह में उत्तर प्रदेश -बिहार सीमा पर अवस्थित सोनभद्र के कमारी डांड गाँव में कनोडिया द्वारा रिहंद बाँध में छोड़ा गया जहरीला पानी पीकर २० जाने चली गयी उसके पहले विषैले पानी की वजह से हजारों पशुओं की मौत भी हुई थी ,मगर अफ़सोस जनसत्ता को छोड़कर किसी भी अखबार ने खबर प्रकाशित नहीं कि जबकि जांच में ये साबित हो चुका था मौतें प्रदूषित जल से हुई है ,हाँ ये जरुर हुआ कि इन मौतों के बाद सभी अख़बारों ने कनोडिया के बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित किये थे ,ऐसा पहली बार नहीं हुआ था इसके पहले २००५ जनवरी में भी कनोडिया के अधिकारियों की लापरवाही से हुए जहरीली गैस के रिसाव से पांच मौतें हुई ,लेकिन मीडिया खामोश रहा |मीडिया अब भी ख़ामोश है जब सोनभद्र के गाँव गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आकर विकलांग हो रहे हैं यहाँ के पडवा कोद्वारी ,कुसुम्हा इत्यादि गाँवों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो फ्लोरोसिस का शिकार न हो ,जांच से ये बात साबित हो चुकी है कि फ्लोराइड का ये प्रदूषण कनोडिया और आदित्य बिरला की हिंडाल्को द्वारा गैरजिम्मेदाराना तरीके से बहाए जा रहे अपशिष्टों की वजह से है |बिरला जी के इस बरजोरी के खिलाफ लिखने का साहस शायद किसी भी अखबार ने कभी नहीं किया ,हाँ वाराणसी से प्रकाशित "गांडीव " ने एक बार हिंडाल्को द्वारा रिहंद बाँध में बहाए जा रहे कचड़े पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी |,आखिर करता भी कैसे? जब दैनिक जागरण समेत अन्य अख़बारों में नौकरी भी हिंडाल्को के अधिकारियों के रहमोकरम पर टिकी होती है |
शायद ये विश्वास करना कठिन हो मगर ये सच है कि आज तक हिंदी दैनिकों ने अपने सोनभद्र के कार्यालयों पर सालाना विज्ञापन का लक्ष्य एक से डेढ़ करोड़ निर्धारित कर रखा है ,इनमे वो विज्ञापन शामिल नहीं हैं जो जेपी और हिंडाल्को समेत राज्य या केंद्र सरकार की कमानियां सीधे या एजेंसियों के माध्यम से देती हैं ,अगर इन सबको शामिल कर लिया जाए तो सोनभद्र से प्रत्येक अखबार को सालाना ८ से १० करोड़ रूपए का विज्ञापन मिलता है,इन अतिरिक्त विज्ञापनों का लक्ष्य यहाँ के गिट्टी बालू के खनन क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है ,ये खनन क्षेत्र जिन्हें “डेथ वेळी “कहते हैं और जो सरकार प्रायोजित भ्रष्टाचार और वायु एवं मृदा प्रदुषण का पूरे देश में सबसे बड़ा उदाहरण बने हुए हैं पर कोई भी अखबार कलम चलने का साहस नहीं करता जबकि ये अकाल मौतों की सबसे बड़ी वजह है ,और तो और यहाँ की खदानों से निकलने वाली भस्सी ने हजारों एकड़ जमीन को बंजर बना डाला ख़बरें न छापने की वजह भी कम खौफनाक नहीं है ,ये आश्चर्यजनक लेकिन सच है कि सोनभद्र में ज्यादातर पत्रकारों की अपनी खदाने और क्रशर्स हैं जिनकी नहीं हैं उनकी भी रोजी रोटी इन्ही की वजह से चल रही हैं ,ख़बरें ना छापने की कीमत वसूलना अखबार भी जानते हैं ,पत्रकार भी |

सोनभद्र के बिजलीघरों से प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ टन पारा निकलता है ,हालत ये हैं कि यहाँ के लोगों के बालों ,रक्त और यहाँ की फसलों तक में पारे के अंश पाए गए हैं ,इसका असर भी आम जन मानस पर साफ़ दीखता हैं ,उड़न चिमनियों की धूल से सूरज की रोशनी छुप जाती है और शाम होते ही चारों और कोहरा छा जाता है ,इस भारी प्रदुषण से न सिर्फ आम इंसान मर रहे हैं बल्कि गर्भस्थ शिशुओं की मौत के मामले भी सामने आ रहे हैं |मगर ख़बरें नदारद हैं .|वजह साफ़ है सभी अखबारों के पन्ने दर पन्ने प्रदेश के उर्जा विभाग के विज्ञापनों से पटें रहते है ,सैकड़ों की संख्या में मझोले अखबार तो ऐसे हैं जो बिजली विभाग के विज्ञापनों की बदौलत चल रहे हैं ,ये एक कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार के ओबरा और अनपरा बिजलीघरों को पिछले एक दशक से केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अन्नापत्ति प्रमाणपत्र के बिना चलाया जा रहा है जबकि बोर्ड ने इन्हें बेहद खतरनाक बताते हुए बंद करने के आदेश दिए हैं ,मगर खबर नदारद है |सिर्फ सोनभद्र में ही नहीं देश के कोने कोने में भोपाल पैदा हो रहे है ,अखबार के पन्नों पर वारेन एंडरसन सुर्ख़ियों में है ,और हम, खुश हैं कि मीडिया अपना काम कर रहा

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह रपट रोंगटे खड़े कर देती है। हमारा क्षेत्र मौत के साए तले साँस ले रहा है यह जानकर हतप्रभ और क्षुब्ध हूँ।

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  2. साथियो, आभार !!
    आप अब लोक के स्वर हमज़बान[http://hamzabaan.feedcluster.com/] के /की सदस्य हो चुके/चुकी हैं.आप अपने ब्लॉग में इसका लिंक जोड़ कर सहयोग करें और ताज़े पोस्ट की झलक भी पायें.आप एम्बेड इन माय साईट आप्शन में जाकर ऐसा कर सकते/सकती हैं.हमें ख़ुशी होगी.

    स्नेहिल
    आपका
    शहरोज़

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  3. I am not surprised after viewing your article. I know how much content to be hided by media. It is understandable by corporatisation of media houses group and their motive is only profit.

    Our challanges is many more it is not just ended with discussing how media react, how our representative work. We must accept the bitter truth of "Autocracy in our democracy" and our real challange is to getting real democracy.

    your effort to getting truth is appreciable and everyday i just pray to god give us more soldier like you.

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  4. बहुत चौंकाने वाली जानकारी। ख़तरनाक हालात यहाँ भी हैं - आपसे जानकारी मिली तो शायद कोई जागे - वर्ना सोते-सोते ही कोई रोनेवाला भी न बचे - ऐसा होने की पूरी नौबत है।

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  5. मीडिया का एक चेहरा ये भी है ...

    सब अपना अपना काम कर रहे हैं
    मक्कार अपनी मक्कारी मे व्यस्त हैं
    गद्दार अपनी गद्दारी मे सिद्धहस्त हैं
    और हम चुप्पी के अभ्यस्त हैं

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  6. मौत और कचड़े के साये में जिंदगी जीने को मजबूर है लोग फिर भी प्रकृति का दोहन करने से मन नहीं भरता और न अपनी जरुरतो पर काबू कर पाते है. श्वेताम्बरा वाली रचना भावमय दुःख-दर्द को समझती सुन्दर प्रस्तुति थी। सारगर्भित लेखन।

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