सोमवार, 28 दिसंबर 2009

आवेश को जो याद है..... ...


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आज मै ३७ साल का हो गया ,पापा की साईकिल पर आगे बैठ पूरा बनारस शहर घूमते ,छत की मुंडेर से स्कूल से पढ़कर लौट रही माँ की बाट जोहते और मिठाइयों के लिए देर रात तक जागने वाले आशु ने आज अपने बचपन को बहुत पीछे छोड़ दिया है ,सच कहूँ तो मुझे अपने हर जन्मदिन पर अपना बचपन बहुत याद आता है ,वैसे तो मेरा जन्मदिन भी और दिनों की तरह हमेशा से आम रहा न उत्सव ना कोई और आयोजन, लेकिन इस वक़्त मुझे उम्र के साठवें वर्ष में भी हम बच्चों के लिए हमसे दूर रह रही माँ याद आती है , मुझे आपातकाल का वो दिन याद आता है जब मेरे पिताजी को पॉवर हाउस उड़ाने का आरोपी बनाकर जेल भेज दिया गया था और मै जेलर के दरवाजे पर चिल्ला रहा था 'जेल का फाटक छूटेगा,मेरा पापा छूटेगा| वो कुछ दोस्त याद आते हैं जिनका नाम याद है चेहरा नहीं वो भी याद आते हैं जिनका चेहरा याद है नाम नहीं |मुझे अपना वो पुराना स्कूल याद आता है जहाँ फिर से कक्षा एक में नाम लिखाने का मेरा आज भी मन करता है ,अपने उन टीचरों की याद आती है जो मुझे बहुत प्यार किया करते थे ,मुझे अपनी प्रिसिपल सिस्टर नोयेला के दिए अनार याद हैं ,मुझे दाढ़ी बाबा का रिक्शा याद है जिसपर हमारे घर के सारे बच्चे स्कूल जाया करते थे |मुझे अपने मोहल्ले की मिर्जा चाचा की बेटी रूबी की याद आती है जो मुझे भैया कहती थी और जिसकी कटोरी से में अक्सर खीर चुरा लेता था ,मुझे स्काई लैब गिरने का वक़्त याद है जब हम लोग कई दिनों तक दिन रात आसमान को देखते रहे थे |मुझे याद आती है बबलू की जिसे मेरे घर में सब लोग चेलवा कहते थे ,सबके लिए नौकर मगर मेरा पक्का दोस्त ,मुझे आज भी याद है कि जब हम बिस्तर पर सोते थे तो वो जमीन पर सोता था ,मुझे ये भी याद है कि उस दिन वो बहुत डांट खाया था जब घर के बाहर सोयी मेरी तीन साल की छोटी बहन चीनू के पास बैठा वो ऊँघ रहा था तब तक वहां पर भेड़िया आ गया ,हालाँकि शोर मचाने पर भेड़िया तो भाग गया ,लेकिन बबलू फिर चला गया जब २२ साल बाद एक बार फिर हमारे शहर लौटा तो वो एक दुर्घटना के बाद अपना आत्मसंतुलन खो बैठा था ,लेकिन उसे मेरी याद थी , वो अचानक जो फिर गायब हुआ दुबारा नहीं लौटा |मुझे अपने मित्र विद्यासागर की याद आती है जो कक्षा का सबसे तेज बच्चा था जिसकी लिखावट पर हम बहुत नाज करते थे .कुछ दिन पहले वो मिला था मुझसे ,बेरोजगारी से जूझता और मुझसे कहीं नौकरी लगाने की गुजारिश करता हुआ |हाँ ,मुझे पड़ोस में रहने वाली त्रिवेणी की अम्मा कि भी याद है जिनका भी मैंने दूध पिया है | जब मै बीते हुए कल के आईने मे आज को देखता हूँ तो मेरा मौजूदा चेहरा धुंधला सा हो जाता है |फिर सोचता हूँ क्यूँकर नहीं हुई जिंदगी उतनी ही जितना बचपन था|
मुझे अपनी अम्मी दादी की बहुत याद आती है .मुझे आज भी कहने में गर्व होता है कि मै अपनी माँ का बेटा कम अपनी दादी का बेटा ज्यादा हूँ |,मुझे याद आती है दादी के हाँथ की बनायीं हुई गुझिया और मेरा बार बार कहना अम्मी दादी एक दे दे ,दादी किसी को न दे पर मुझे दे देती थी |माँ नौकरी के लिए जब मुझे लेकर दूसरे शहर चली आई तो मेरी दादी एक प्लास्टिक के बैग में ढेर सारा समान लेकर मेरे पास आ जाती,मुझे याद है कि दादी जब कैंसर से मरी तो मै ६ साल का था उस वक़्त मुझे बार बार बताया जा रहा था दादी मर गयी पर में समझ नहीं पा रहा था ,शायद सोचता था दादी भी भला कभी मरती हैं? मुझे अपने इन्टू चाचा की बहुत याद आती है जो मेरे लिए आज भी दुनिया का सबसे खुबसूरत आदमी है ,मुझे सिर्फ चार साल बड़ा इन्टू चाचा मुझे साईकिल पर पीछे बिठा गुल्ली डंडा बनवाने बहुत दूर चला जाता था ,और आता तो दादा की गाली सुनता ,मुझे याद है कैसे अनु दीदी और मेरे इन्टू चाचा ने मेरी आँखों में कोलतार पोत दिया था |मुझे ये भी याद है कैसे इन दोनों लोगों ने गर्मी के दिनों में घर के सारे तकिये पानी में डाल दिया थे और निकलकर सर के नीचे लगाकर सो गए थे ,मुझे अब भी याद है कैसे मै और मेरा चाचा छत पर साथ सिगरेट पीते थे |एक बात जो मै अब भी समझ नहीं पाता हूँ वो ये है कि कैसे अचानक एक दिन मेरा इन्टू चाचा ,मेरा इन्टू चाचा कम सबका इन्टू अधिक हो गया था|मुझे कभी -कभी शाम को स्कूल से लौटने पर सरसों के तेल ,नमक और प्याज में सना चावल का खाना भी याद है | मुझे अपने दादा जी की बहुत याद आती है कि उन्होंने ग़जब का दुस्साहस करते हुए कैसे मेरा सीधे कक्षा ३ से नाम कटवाकर कक्षा ६ में लिखवा दिया था और घर में सभी लोग अपना माथा पीट रहे थे,मुझे अपने मिलिटरी ऑफिसर दादा का हारमोनियम पर गूंजता स्वर 'वर दे वीणा वादिनी वर दे 'भी बहुत याद आता है |मुझे अपनी मीरा बुआ की याद आती है ,जो मेरी द्वारा गाली देने की शिकायत लेकर आये मेरे दोस्तों को ये कहा करती थी ,कि मेरे यहाँ ये गाली नहीं मानी जाती |मुझे याद है वो कई साल जब पीएमटी का रिजल्ट आने के बाद मेरी छोटी बहन अकेले में फूट फूट कर रोया करती थी और माँ कहा करती थी कि क्या पढ़ती है पता नहीं ,,वो दिन भी याद है जब बहन ने पीएमटी में टॉप किया था और उस वक़्त मै अकेले में रो रहा था |मुझे छोटे भाई तन्मय का वो झूठ भी याद है जब उसके झूठ बोलनेकी वजह से पिता के हांथों निरपराध पीटा गया था |मुझे याद है कि कैसे बचपन में मै एक बार घर से बिना बताये बहुत दूर घूमने चला गया था और घर वापस आने पर माँ ने मुझसे सारे बर्तन मजवाये थे |मुझे 'अनामदास का पोथा 'बाणभट्ट की आत्मकथा "और "लोपामुद्रा "की भी याद है
मुझे अपने से दो साल बड़ी रवि की बहुत याद आती है जिसकी शक्ल स्टेफी ग्राफ जैसी थी और जिससे मैंने उसे वक़्त प्रपोज किया था जब मै हाई स्कूल में पढ़ रहा था ,हालाँकि कुछ ही दिनों बाद वो अपने उम्र के एक दूसरे लड़के से मोहब्बत करने लगी |,मुझे १५-१६ वर्ष की उम्र में अपने मित्र पवन के साथ की गयी साहसिक यात्राओं की बहुत याद आती है ,हमें याद है ग़जलें और कवितायें लिखने वाला पवन जब कभी दूर जाता फूट फूट कर रो पड़ता था |मुझे मकर संक्रांति के तिलवों की बहुत याद आती है जो अब समयाभाव में नहीं बन पाते ,मुझे मिटटी के पुरवा ,परई और पत्तल में परोसे गए खाने की बहुत याद आती है |मुझे आदिवासी बेसाहू चाची की बहुत याद आती है जिनके यहाँ मैंने पहली बार चकवड़ का साग बनते देखा था |मुझे १७ साल की उम्र में अखबार के पाठक मंच में पिताजी के लेख के खिलाफ लिखी गयी टिप्पणी भी याद है |मुझे याद है शशि कि , जिसे मैंने भोर में ५ बजे अपना प्रेम प्रस्ताव दिया था आज १७ सालों बाद भी लगता है कि कल ही की तो बात है कि टीचर उसे डांट रहे हैं और मै उससे कह रहा हूँ "शशि तुम्हे मेरी कसम है मत रोवो" |मुझे शशि को लिखे गए वो प्रेमपत्र भी याद है जिन्हें मै कभी कभी पोस्ट ऑफिस से भेज दिया करता था और एक दिन वो उसके पिता के हाँथ पड़ गए ,और मै अपने पिता के हाथों पीटा गया ,मुझे शेक्सपियर के जुलियस सीजर का ब्रूटस भी बहुत याद आता है ,में सोच नहीं पाता उसने विश्वासघात क्यूँ किया ?
मुझे याद है डाला गोलीकांड की जब निजीकरण के खिलाफ आन्दोलन कर रहे निहत्थे मजदूरों पर पुलिस ने गोलियां बरसाई थी उसमे दर्ज़न भर मजदूरों के साथ मेरा मित्र राकेश भी मारा गया था ,मुझे याद है उस एक रात लगभग आस पड़ोस के लोग पुलिस के डर से मेरे घर की छत पर शरण लिए हुए थे ,मुझे इंदिरा गांधी और राजीव गाँधी की हत्या और उसके बाद आम लोगों का रोना भी याद है ,मुझे राजीव गोस्वामी की आरक्षण के विरोध में आत्मदाह करते हुए अखबार के पहले पन्ने पर छपी तस्वीर भी याद है ,मुझे याद है कि कैसे अचानक एक ही दिन में मै सवर्ण और दलित का मतलब जान गया था |मुझे वनवासी भालुचोथवा की याद है ज्सिने अपनी मजबूत भुजाओं से सात जंगली भालुओं को मार दिया था,और मुझे ७० की उम्र में २० वर्ष और जीने की बाद कहता था ,लेकिन अचानक एक दिन चला गया |मुझे पहले पहल अपने घर में लाये गए टीवी पर बजता हुआ 'मिले सुर मेरा तुम्हारा ' भी याद है |मुझे याद है स्कूल के साथ- साथ घर में दिन रात पिसने वाली माँ के हांथों के बने खाने की ,बेसन के हलवों की ,नाना की ,नानी की ,गंगा की ,गंगा किनारे बसे उन चेहरों की जो अब भी ख्यालों में जब नहीं तब मुझे हाँथ हिलाते दिख जाते हैं |