रविवार, 17 मई 2009

सेक्स क्रांति में तब्दील हो रही रक्त क्रांति



-नक्सली संगठनों में यौन उत्पीडन का भयावह दौर
-पुलिस और नक्सलियों के बीच पीस रही महिला गुरिल्लायें


नक्सली संगठनों ने सामाजिक राजनीतिक बदलाव की मुहिम छोड़ कर महिलाओं का बर्बर उत्पीड़न शुरू कर दिया है उत्तर प्रदेश,बिहार झारखण्ड और छतीसगढ़ के सीमावर्ती आदिवासी इलाकों में जहाँ इंसान का वास्ता या तो भूख से पड़ता है या फिर बन्दूक से ,नक्सलियों ने यौन उत्पीडन की सारी हदें पार कर दी हैं |माओवादी , भोली भाली आदिवासी लड़कियों को बरगलाकर पहले उनका यौन उत्पीडन कर रहे हैं फिर उन्हें जबरन हथियार उठाने को मजबूर किया जा रहा है वहीँ संगठन में शामिल युवतियों का ,पुरुष नक्सलियों द्वारा किये जा रहे अनवरत मानसिक और दैहिक शोषण बेहद खौफनाक परिस्थितियां पैदा कर रहा है वो चाहकर भी न तो इसके खिलाफ आवाज उठा पा रही है और न ही अपने घर वापस लौट पा रही हैं |इस पूरे मामले का सर्वाधिक शर्मनाक पहलु ये है कि जो भी महिला कैडर इस उत्पीडन से आजिज आकर जैसे तैसे संगठन छोड़कर मुख्यधारा में वापस लौटने की कोशिश करती हैं ,उनके लिए पुलिस बेइन्तहा मुश्किलें पैदा कर दे रही है ।शांति, बबिता, आरती, चंपा, संगीता...ये वो नाम हैं जिनसे चार -चार राज्यों की पुलिस भी घबराती थी। लेकिन आज पीडब्ल्यूजी एवं एमसीसी की ये सदस्याएं, पुरूष नक्सलियों के दिल दहलाने वाले उत्पीड़न का शिकार हैं। समूचे रेड कॉरिडोर में अनपढ़ आदिवासी महिलाओं को बिन ब्याही मां बनाया जा रहा है वहीँ मुख्य धारा में शामिल होने को लेकर उठी उनकी आवाज लाठियों से बर्बरतापूर्वक कुचल दी जा रही है। आलम यह कि माओवादियों और पुलिस के बीच की चक्की में पिस रही महिला कैडर न संगठन छोड़ पा रही हैं और न ही अपने गांव वापस लौट पा रही हैं। जो महिलाएं सजा काट कर जेलों से अपने घर लौटी हैं उनका कभी नक्सली तो कभी पुलिस दोहन करती है।माओवादियों के जुल्मोसितम की शिकार सरिता कहती है, अब मरने के अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं।’प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश -बिहा-झारखण्ड सब जोनल कोमेटी में मौजूदा समय में लगभग ७५० महिला नक्सली शामिल हैं और सबकी कहानी लगभग एक जैसी है , नक्सलियों की चहेती कैडर चंपा ने जब यौन उत्पीड़न से आजिज आकर साथ चलने से मना कर दिया तो नक्सलियों ने उस पर हमला बोल दिया। खूब शौर्य दिखाया। माओ जिंदाबाद के नारे लगाए और चंपा को इतना पीटा कि वह लाश की तरह गिर पड़ी और बहादुर नक्सली उसे मरा समझ कर वहां से चले गए। । बबिता ने गिरफ्तारी के बाद एक जोनल कमांडर से पैदा हुई अपने नवजात बच्चे को जेल के शौचालय में ही मिटटी के घडे में बंद करके मार डाला |पिछले एक वर्ष के दौरान रेड कॉरिडोर का मुख्यद्वार कहे जाने वाले इन राज्यों में संगठन में रहते हुए सैकडों की संख्या में महिला नक्सली बिनब्याही माँ बन गयी वहीँ तमाम जेलों में बंद महिला नक्सालियों के भी जेल में ही गर्भवती हो जाने की भी जानकारी मिली है , हालाँकि यह खौफनाक सच्चाई कभी जेल की दीवारों में तो कभी बीहडों में ही दम तोड़ देती है |

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की महौली निवासी चंपा [19 वर्ष] कुछ वर्ष पूर्व सहेलियों के उकसावे में नक्सलियों के साथ जंगलों में कूद गई। कुछ ही दिनों में वह एसएलआर चलाने में माहिर हो गई।एम .सी.सी में शामिल होने के तीन वर्ष बाद जब एक दिन पुलिस ने उसकी मां को 15 दिनों तक बंधक बना रखा तो उसे मजबूरन हाजिर होना पड़ा। फिर एक साल की जेल। छूट कर आई तो घर वालों ने पड़ोस के गांव में उसका ब्याह कर दिया। यह शादी नक्सलियों को रास नहीं आई। उसका दो माह का बेटा गोद में था जब एक रात 150 नक्सलियों ने उसके घर हमला बोल दिया।नक्सली उसे जबरन घर से बाहर निकाल लाये और उसे साथ चलने को कहा। चंपा के इंकार करने पर गांव वालों के सामने ही उस पर अनगिनत लाठियां बरस पड़ीं। चंपा बताती है मैं चीखती रही पर कोई बचाने नहीं आया ,लगभग दो घंटे तक उसे बर्बरतापूर्वक पीटने के बाद नक्सली उसे मरा समझ वापस चले गए। चम्पा आज भी जिंदा है, लेकिन मुर्दे की तरह। डॉक्टर बताते हैं कि चंपा का गर्भाशय क्षतिग्रस्त हो गया है। अगर जल्दी ऑपरेशन नहीं किया गया तो उसकी जान कभी भी जा सकती है। चंपा मजदूरी कर मुश्किल से अपना और अपने बच्चे का पेट पाल रही है, इलाज क्या कराए?घर वालों ने पहले ही बाहर कर दिया अब कोई न आगे ना पीछे ,कहीं से से कोई उम्मीद नहीं |

18 वर्ष की सविता अपने आठ माह के बच्चे को गोद में लिए जिन्दगी की दुश्वारियां झेल रही है। माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर में पांच साल पहले शामिल सविता का प्यार एक नक्सली से हुआ। एरिया कमांडर ने दोनों की शादी करने का फरमान जारी कर दिया। ब्याह के कुछ ही दिन बीते थे कि अलग-अलग मुठभेड़ में दोनों पुलिस की गिरफ्त में आ गये। सविता को मिर्जापुर और अजय को बिहार के भभुआ जेल में बंद कर दिया। पिछले साल जेल से छूट कर आई सविता दुधमुंहे बच्चे को लेकर ससुराल पहुंची तो ससुराल वालों ने उसे नक्सली बताकर अपनाने से इंकार कर दिया बहुत सारी कोशिशें करके उसने अपने पति से संपर्क किया तो उसने भी दो टूक जवाब दे दिया ,सविता कहाँ जाये उसे कुछ भी समझ में नहीं आता , अब पहाड़ जैसी अकेली जिन्दगी और पुलिस की रोज की धमकी|सविता बताती है 'पुलिस जब नहीं तब हमसे नक्सलियों का सुराग मांगती है ,मैं भला कहाँ से बताऊँ कहाँ है वो सब ?अगर कुछ मालूम होता तो भी शायद नहीं बताती नक्सली मुझे और मेरे बच्चे दोनों को मार डालेंगे |
बिहार सीमा के निकट तेलाड़ी की रहने वाली बबिता [18 वर्ष] ने कभी पुलिस की नाक में दम कर रखा था। माओवादी बेहद खुबसूरत बबिता से मुखबिरी के अलावा रंगदारी भी वसूल करते थे बताते हैं कि एक बार जब बबिता ने पार्टी छोड़ने की सोची नक्सली उसे जबरन उठा ले गए और फिर उसके साथ दुष्कर्म भी किया ,उसके बाद जैसे तैसे बबिता पकडी गयी और लगभग डेढ़ साल तक जेल में बंद रही। अपनी गिरफ्तारी के दौरान इस अविवाहित महिला नक्सली ने जब पिछले वर्ष जेल में ही एक बच्चे को जन्म दिया तो समूचे प्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प मच गया। बाद में पट चला कि उसके पेट में पल रहा बच्चा एक कुख्यात नक्सली सरगना कमलेश का था ,जिसे अपनाने से उसने इनकार कर दिया था | बबिता के साथ जेल में अपने कुछ दिन बिताने वाली समाजसेवी रोमा बताती हैं कि वो एक रात हम नहीं भूलते जब दर्द से बबिता ने अपने आंसुओं से अपनी प्रसव -पीडा को मात दे दी थी ,सबेरे जब हमने और हमारे साथ कि महिला कैदियों ने घडे में बंद मृत बचे को देखा तो हम अवाक रह गए ,जैसे तैसे बात खुली ,बबिता ने कैसे बिना किसी कि मदद के वो बच्चा जना होगा ,जब हम ये सोचते हैं तो आज भी हमारी रूह काँप जाती है ,शायद माओवादियों द्वारा दी गयी यंत्रणा ने उसे अन्दर से मजबूत कर दिया था |
छत्तीसगढ़ के थाना प्रतापपुर की रहने वाली लीलावती पी ,डबल्यू ,जी की एक शानदार शार्प शूटर तो थी ही ,उसे आदिवासियों के करमा नृत्य में भी महारत हासिल थी ,मगर अफ़सोस उसकी आँखें एक गैर नक्सली से चार हुई ,उसका चोरी छिपे प्रेमी से मिलना पुरुष नक्सलियों को नहीं भाया और एक रात उन्होंने उसके प्रेमी विश्वम्भर की हत्या कर दी |प्रेमी की हत्या के बाद संगठन छोड़कर दर दर भटक रही लीलावती बताती है कि 'पार्टी में महिलाओं स्थिति सबसे खराब होती है ,पुरुष नक्सली हमें सिर्फ सेक्स की वस्तु समझते हैं , बिना कोई शिकवा शिकायत किये सब कुछ सहना और चुप रहना ही महिला नक्सलियों की नियति बन जाती है ,शादी करना तो पहले प्रतिबंधित कर दिया था ,लेकिन अब वो कहते हैं कि संगठन के लोगों से शादी की जा सकती है जब कोई भी सदस्य किसी गैर नक्सली से ब्याह करना चाहता है या फिर उसके प्यार में पड़ता है तो उसे अक्षम्य अपराध माना जाता हैं | जिसकी सजा सिर्फ मौत होती है '|लीलावती बताती है इस स्थिति का फायदा उठाकर पुरुष नक्सली महिलाओं का अनवरत यौन शोषण करते हैं |

कभीकभार की जाने वाली औपचारिक पूछताछ को छोड़ दिया जाए तो महिला नक्सलियों के मुख्यधारा में वापस लौटने पर उन्हें शासकीय या कानूनी सहायता न के बराबर ही मिलती है.अगर संगठन से उकता कर उन्होंने आत्मसमर्पण कर भी दिया तो भी पुलिस उसे एनकाउंटर में की गयी गिरफ्तारी दिखाकर तमगा हासिल करने में जुट जाती है |ऐसे में इन महिलाओं का रिहा होना बेहद कठिन हो जाता है |ज्यादातर मामलों में वकील की मदद लेने के लिए आरोपी महिला अपने परिवारवालों पर आश्रित होती है. चूंकि उनमें से अधिकतर इसका खर्चा नहीं उठा सकते इसलिए उनका केस सालों तक घिसटता रहता है.पहले नक्सलियों और फिर समाज की जिल्लत से परेशान महिला कैदी अक्सर अवसाद और दूसरी मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं. सबसे बुरा तो ये होता है कि एक बार नक्सली होने का दाग लग जाए तो अलग हो जाने के बाद भी जिंदगी भर के लिए उस महिला का सामाजिक जीवन तबाह होकर रह जाता है.|
नक्सलियों में पैदा हुई इस अपसंस्कृति के नतीजे भी सामने आ रहे हैं | माओ के नाम पर व बंदूकों के दम पर समता पूंजीवाद के खात्मे और साम्यवाद की स्थापना का सपना संजोये नक्सली एड्स समेत तमाम यौन जनित रोगों के शिकार हो रहे हैं ,और महिला नक्सलियों में बाँट रहे हैं |छत्तीसगढ़ स्थित अंबिकापुर के एक बड़े फिजीसियन ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि मार्च के महीने में ,मेरे क्लीनिक पर इलाज करने आये ३ नक्सलियों में एच आई वी रिपोर्ट पोजिटिव आई है |उक्त चिकित्सक ने बताया कि नक्सली ,बन्दूक की नोक पर मुझे जंगल ले गए थे और मुझे बीमार नक्सलियों का इलाज करने को कहा गया | सूत्र बताते हैं कि विगत ५ वर्षों में नक्सली गुरिल्लाओं में यौन जनित रोग तेजी से बढे हैं इसकी एक बड़ी वजह नक्सालियों द्वारा किया जाने वाला व्यभिचार भी हैं | हाल में ही छतीसगढ़ पुलिस के गिरफ्त में आई सोनू गौड ने बताया कि मैंने संगठन में रहते ही अपने एक पुरुष साथी दिलीप से शादी कर ली थी एक इनकाउन्टर में दिलीप मारा गया और उसके बाद मुझे पार्टी के पुरुष सदस्यों द्वारा जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने को मजबूर किया जाता रहा |सोनू बताती है कि 'वो बंदूकों की नोक पर हमसे यौन सम्बन्ध बनाते थे ,कई बार तो हमें पता ही नहीं होता था कि आज की रात हमें किस पुरुष नक्सली के सामने परोसा जाना है |जानकारी ये भी मिली है कि अनवरत हो रहे इस यौन उत्पीडन से आजिज आकर तमाम महिला गुरिल्ला खुद को पुलिस के सुपुर्द कर दे रही हैं ,वहीँ अपनी पहचान छुपाकर भाग खड़ी हो रही हैं ,इन सबके बीच माओवाद का ये चेहरा और भी सुर्ख होता जा रहा है |

शुक्रवार, 8 मई 2009

पाकिस्तान से आखिरी ट्रेन(last train from pakistan)

-आवेश तिवारी
मरघट में तब्दील हो चुकी स्वात घाटी में रहने वाले तमाम हिन्दू और सिख परिवार ,तालिबानियों के उत्पीडन और जजिया कर से आजीज आकर अपना घर -बार छोड़ कर जा चुके हैं |उन घरों में जहाँ कभी ठहाके गूंजा करते थे वहां अब या तो तालिबानी लडाकों के जेहादी स्वर गूंजा करते हैं या फिर मलबों और धुओं का गुबार उड़ता दिखाई पड़ता है ,स्वात के कबाल गाँव में नामचीन हज्जा अबुल फजीक की दुकान पर ताला लटका हुआ है वहां लिखे तालिबानी नारे से साफ़ जाहिर है कि अब ये दुकान दुबारा नहीं खुलेगी | वहीँ गांव के उस पुराने स्कूल में जहाँ फजीक और तमाम गांव वालों की बेटियाँ पढ़ा करती थी ,आधी से अधिक इमारत गिर गयी है |पिछले एक साल के दौरान चरमपंथियों ने 150 सरकारी स्कूलों को नष्ट किया है, जिनमें से ज़्यादातर लड़कियों के स्कूल थे. कुछ ऐसा ही नजारा सिंगोर ,बुनेर,दिर आदि इलाकों में भी देखने को मिल रहा है |पाकिस्तान का स्विट्जर्लैंड हे जाने वाली स्वात घाटी में बर्फ के ऊँचे पहाड़ हरी भरी वादियाँ और बौध स्तूप जाने क्यूँ खामोश हैं? ऐसा लगता है जैसे सब कुछ चुपचाप सहने को तैयार हैं ,एक निकम्मे और धूर्त राष्ट्रपति को ,एक नपुंसक कौम को और एक ऐसे पडोसी को जो आतंकवाद की बार बार चोट खाने के बावजूद या तो आहें भरता है या फिर हवा में गोलियां दागने लगता है |क्या करे स्वात ?क्या करे बुद्ध की ये धरती ?
जिस वक़्त ब्लॉग पर ये पोस्टिंग लिखी जा रही थी उस वक़्त स्वात घाटी के सिंगोरा शहर में तालिबानियों और सुरक्षाबलों के बीच घमासान छिड़ा हुआ था ,गौरतलब है कि तालिबान का स्वात घाटी के ९० फीसदी से अधिक हिस्से पर कब्जा है सिंगोरा और अन्य इलाकों से लाखों लोग पलायन कर चुके थे ,जिनमे लगभग १५०० सिख परिवार भी शामिल हैं ,तालेबान ने सिखों के कई घरों को आग के हवाले भी कर दिया ,ये नजारा कुछ कुछ भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय की याद दिला रहा था
,सिखों के पवित्रतम स्थलों में से एक, पंजासाहिब में शरण लेने वाले प्रेम सिंह कपड़ों का व्यापार करते हैं, उन्होंने को बताया, "हम बहुत डर गए थे, गोले हमारे घरों के पास फट रहे थे और हेलिकॉप्टर हमारे सिर पर मँडरा रहे थे, ऐसी हालत में हमें लगा कि वहाँ से निकलने में ही भलाई है.|कहने को तो सुरक्षाबल, पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बुनेर, दीर और स्वात जिलों में तालिबान के खिलाफ संघर्ष में बंदूकों, तोप युक्त हेलिकॉप्टरों और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तानी फौज का एक बड़ा हिस्सा तालिबान से सहानुभूति रखती है पाकिस्तान के चाहने पर ही स्वात में शरियत लागू की गयी, हकीकत ये भी है कि सिर्फ पाकिस्तान में सत्ता में बैठे लोग तालिबानियों को प्रश्रय दे रहे हैं क्यूंकि वो जानते हैं कि तालिबानियों की बिगडैल मानसिक स्थिति का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा सकता है | ये हना अतिश्योतिपूर्ण नहीं होगा कि आने वाले दिनों में राजधानी इस्लामाबाद पर भी तालिबान का कब्जा हो जाये या फिर जरदारी उनके सामने घुटने टक्कर उन्हें सरकार में हिस्सेदार बना दें |
पाकिस्तान में कट्टरपंथ का मजबूत होना हमेशा भारत के लिए सिरदर्दी की वजह बनता है अगर लश्कर और जैश - -मोह
म्मद ताक़तवर होते हैं तो सिर्फ पाकिस्तान बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत विरोधी देशों का खेमा खुद को मजबूत पाता है |और ये सच है कि सिर्फ पाकिस्तान बल्कि ये तमा संगठन भी हिंदुस्तान के विरोध से पैदा हुई इंटरनेशनल खेमेबाजी कि रोटी खा रहे हैं |अगर हिन्दुस्तानी खुफिया एजेंसियों कि रिपोर्ट को माने तो स्वात के बाद तालिबान का अगला निशाना कश्मीर है ,पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में तो उसने पहले से ही घुसपैठ कर रखी है ,अब वो भारत के कब्जे वाले कश्मीर को कब्जे में लेने के मनसूबे बना रहा है | खुफिया जानकारी के मुताबिक तालिबान के इन आतंकियों को लश्कर--तैयबा, जैश--मोहम्मद, हूजी, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों के अलावा पाकिस्तानी कट्टरपंथी संगठन जमात--इस्लामी, जमात--उल्मा इस्लाम और जमात--अहल--हदीस का भी समर्थन हासिल है।सिर्फ इतना ही नहीं ये तालिबानी लडाके लश्कर के मुरीदके स्थित उस कैंप में ट्रेनिंग पा रहे है ,जहाँ मुंबई हमले के मास्टर माइंड अबुल कसाब और भारत के खिलाफ अभियान छेड़ने वाले अन्य जेहादी दस्तों ने ट्रेनिंग पायी है |
भारत के लिए स्वात घटी में तालिबा
की उपस्थिति से दोहरी दिक्कतें पैदा हो गयी हैं ,एक तरफ जहाँ सीमा के एक बार फिर संवेदनशील होने का खतरा हैं दूसरी तरफ पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं और सिखों की दुश्वारियां है ,पाकिस्तान में अपना घर बार छोड़कर भागे सिखों को २० हजार रुँपये की मदद का ऐलान करके अपनी पीठ थोक ली ,मगर अफ़सोस हम तो वहां की परिस्थितियों को लेकर कोई अन्तराष्ट्रीय दबाव बना पाए , ही शरणार्थियों को कोई सहायता पहुंचा पाए और ही पुरजोर ढंग से इस पुरे मामले पर पाकिस्तान से अपनी आपति दर्ज करा पाए |हाँ पाकिस्तान में बैठे हमारे उच्चायुक्त ने वहां के अधिकारियों से इस पुरे मामले में औपचारिक मुलाक़ात जरुर कर ली ,ये कुछ ऐसा है कि खुले आसमान की और मुँह करके ओलों के पड़ने का इन्तेजार किया जाए ,वो भी तब जबकि ये बात साबित हो चूका है कि तालिबान के दुश्मन नंबर एक हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी ही हैं |स्वात में जो हो रहा है उसको लेकर हमारे देश में भी आक्रोश खतरनाक शक्ल अख्तियार कर रहा है पोस्टिंग को लिखते वक़्त जम्मू में तालिबानियों के जुल्मो सितम के खिलाफ बंदी थी , गुरुवार को जम्मू के रियासी ज़िले में एक महिला समेत तीन लोगों को संदिग्ध चरमपंथियों ने मार दिया पुलिस का कहना है कि गुरुवार को करीब साढ़े दस बजे चार लोग अहमद मलिक के घर में घुस गए और अहमद, उनके बेटे और एक महिला को गोली मार दी.ये शर्मनाक है |आगे स्थिति और भी खराब हो सकती है ,अपने कश्मीर से बाहर कर दिए गए सिख और हिन्दू ये कत्तई बर्दास्त नहीं करेंगे कि उन्हें देश परदेश हर जगह से बेदखल किया जाए | सरकार को चाहिए था कि संयुक्त राष्ट्र में तात्कालिक तौर पर स्वात के प्रकरण को लेकर अपनी आपति दर्ज कराये ,साथ ही हमें अमेरिका को भी इस मामले में अपने प्रतिरोध से अवगत करना चाहिए था |अगर अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ संयुक्त अभियान छेडा जा सकता है तो स्वात में क्यूँ नहीं ?भारत ऐसे हमलों के लिए अपने सरोकारों का वास्ता देकर खुद लाबिंग क्यूँ नहीं करता ?मसला सिर्फ वहाँ रह रहे हिन्दू या सिख समुदाय के उत्पीडन का नहीं है ,बल्कि तालिबानियों की फितरत का है |किसी भेडिये की तरह वे गुपचुप तरीके से कहीं भी घात कर सकते हैं कंधार विमान अपहरण काण्ड में ही नही ,भारत के ख़िलाफ़ किए गए किसी आतंकी कार्यवाही में तालिबान का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन रहा है कभी भी कहीं एक और मुंबई हमले का खतरा बना हुआ है ऐसे में हमें किसी भी कट्टरपंथी ताक़त को कुचलने का पक्का इन्तजाम करना होगा , क्यूंकि अगर पड़ोस में आग लगी हो और ये आग अगर पडोसी ने खुद लगायी हो तो हमारे घरों में भी चिंगारी पहुंचना लाजिमी है |