शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

खामोश !अदालत जारी है


अगर आपको सच कहने की आदत है तो फिलहाल अपने होंठ सी लीजिये , राजसत्ता के दांव-पेंचों में उलझ कर कराह रही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस बार कानून का हथौडा पड़ा है | देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ब्लॉग की सामग्री को लेकर किसी की खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही की जा सकती है |न्यायालय का ये आदेश केरल के युवा अजित डी द्वारा शिवसेना के खिलाफ बनायीं गयी एक कम्युनिटी और उसमे की गयी टिप्पणियों के अनुक्रम में दिया गया है ,अजित ने सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र न्यायालय द्वारा लगातार भेजे जा रहे सम्मन के खिलाफ याचिका दायर की थी |उसके खिलाफ ठाणे में सेक्शन ५०६ एवं ५०६ -अ के तहत मुकदमा पंजीकृत किया गया है ,आरोप ये है कि उसने अपनी पोस्टिंग में ,शिवसेना पर धर्म की आड़ में देश को विभाजित करने का आरोप लगाया था |न्यायालय के इस आदेश के उपरांत उन लोगों का मार्ग प्रशस्त हो गया है जो ब्लोगिंग की ताक़तसे खौफजदा थे और उसे शिकंजे में कसने की हर सम्भव कोशिश कर रहे थे | यह पोस्ट लिखने की वजह सिर्फ ब्लोगिंग पर अंकुश लगाने की कवायद नहीं है बल्कि वह कानून भी है जिसकी आलोचना तो दूर विवेचना करने का भी साहस नहीं किया जाता|,हम कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का न सिर्फ पोस्टमार्टम करते हैं बल्कि न्यायपालिका के द्वारा इन दोनों अंगो पर लगायी गयी फटकारों का भी गुणगान करते हैं ,लेकिन हद तो तब हो जाती है जब अनवरत असहमति और संविधान संशोधन की पुरजोर वकालत करने के बावजूद हम कानून के कड़वे और अव्यवहारिक परिणामों का विश्लेषण भी नहीं कर पाते |
ब्लोगिंग पर अंकुश लगाने की कोई भी कोशिश न सिर्फ इन्टरनेट की माध्यम से किये जा रहे विचारों की साझेदारी पर अतिक्रमण है ,बल्कि ये आम आदमी की बौद्धिकता पर अपनी सार्वभौमिकता साबित करने की कोशिश है | एक ऐसे देश में जहाँ मुक़दमे किसी परजीवी की तरह आम आदमी से चिपक जाते हैं एक ऐसे देश में जहाँ अदालतों की चौखट पर ही तमाम जिंदगियां दम तोड़ देती हैं एक ऐसे देश में जहाँ न्याय पाना उतना ही कठिन है जितना मृत्यु शय्या पर दो साँसे पाना ,एक ऐसे देश में जहाँ आतंकवाद,भ्रष्टाचार और राजनैतिक मूल्यों का अवमूल्यन चरम सीमा पर है |उस देश में व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को बंधक बनाने की कवायद किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र में वैचारिक स्वतंत्रता पर किया गया अब तक का सबसे घोर अतिक्रमण साबित होगा ,जिसे कानून के उन गणितीय समीकरणों जैसे तर्कों से सही नहीं ठहराया जा सकता जिनमे सब कुछ पूर्वनिर्धारित होता है | |ये पोस्टिंग लिखते वक़्त मुझे मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की ६ फ़रवरी को एक जनहित याचिका कि सुनवाई के दौरान की गयी वो टिप्पणी याद आ रही है जिसमे उन्होंने स्वीकार किया था कि देश की जनता का एक बड़ा वर्ग आज भी न्याय पाने के लिए अपनी आवाज नहीं उठा पाता ,और न ही खुद को अभिव्यक्त कर पाता है |उन्होंने इस दौरान देश में १०,००० अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना की आवश्यकता जताई थी ,आश्चर्य है कि एक तरफ हमारा न्यायालय अभिव्यक्ति की पराधीनता को लेकर बेहद चिंतित नजर आता है दूसरी तरफ मौजूदा कानून उसे कैदखाने में ड़ाल रहे हैं |हमें न्यायालय के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में तमाम भविष्यगत चिंताएँ हैं साथ ही उस मीडिया के लिए अफ़सोस है जो कि इलेक्ट्रानिक्स चैनल्स पर लगाम कसने की राजनैतिक कोशिशों के लिए तो काफी हो हल्ला मचाता है ,लेकिन ब्लागिंग को लेकर उसकी जुबान नहीं खुलती |इसकी वजह साफ़ है मीडिया भी जानती है की आने वाले कल में ब्लोगिंग का अस्त्र उसकी आर्थिक और उपनिवेशवादी सोच पर भारी पड़ने जा रहा है |

जहाँ तक ब्लागिंग कि सामग्री का प्रश्न है हम ये दावे के साथ कह सकते हैं कि सीमित संख्याओं के बावजूद हिन्दुस्तानी ब्लॉगर सर्वश्रेस्ठ कर रहे हैं ,उन तमाम मुद्दों पर खुली चर्चाएँ हो रही हैं जो कि समानांतर मीडिया के लिए वर्जित रहे हैं |लेकिन ये सच है कि हमने न्यायालय के किसी आदेश कि प्रतीक्षा किये बिना खुद के लिए सीमायें बना ली हैं विचारों के आत्मनियंत्रण का इससे अच्छा उदहारण बहुत कम देखने को मिलेगा |,यहाँ दिल्ली के एक बड़े मुस्लिम अखबार नवीस कि चर्चा करना जरुरी है जो कि मेरा मित्र भी है ,बटाला हाउस के इन्कोउन्टर के बाद वहीँ के रहने वाले मेरे मित्र ने इस पूरे इनकाउन्टर की एक तफ्तीश रिपोर्ट अपने ब्लॉग पर डालने की सोची ,लेकिन उसने नहीं डाला ,जानते हैं क्यूँ ?क्यूंकि उसे डर था कि पोस्टिंग आने के बाद पुलिस उसके खिलाफ कार्यवाही कर देगी |वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो मुसलमान है |अभी कुछ दिनों पहले मशहूर ब्लॉगर और गासिप अड्डा
डॉट कॉम के सुशील सिंह के खिलाफ इसलिए मुकदमा दर्ज कर दिया गया क्यूंकि उनहोंने अपनी पोस्टिंग में हिन्दुस्तान अखबार के लखनऊ संस्करण के उस अंक की चर्चा कर दी थी जिसमे खुद अखबार के मालिक बिरला जी के निधन के उपरांत उनकी गलत तस्वीर प्रकाशित कर दी गयी थी |अब वो दिन दूर नहीं जब आपकी कवितायेँ ,आपकी टिप्पणियां ,आपके व्यक्तिगत विचार आपको जेल की सलाखों में कस देंगे |

ब्लागिंग को हम व्यक्तिगत कुंठाओं के परिमार्जन का जरिया कह सकते हैं ,निश्चित तौर पर इसके माध्यम से न हम खुद को अभिव्यक्त करते हैं बल्कि खुद को पूरी तरह से उडेल देते हैं ,शायद इसलिए ये अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम बनते जा रहा है ,हाँ ये जरुर है कि हर इंसान कि तरह अभिव्यक्ति और उसको प्रर्दशित करने के तरीके भी अलग अलग होते हैं ,ऐसे में अगर न्यायालय ब्लागरों से अमृत वर्षा की उम्मीद करता है तो नहीं करना चाहिए |हाँ ये जरुर है कि अभिव्यक्ति ,निजी तौर पर किसी को आह़त करने वाली नहीं होनी चाहिए|,हम इससे इनकार भी नहीं करते कि ब्लोग्स के माध्यम से न सिर्फ भड़ास निकली जा रही है इसे दूसरो के मान-मर्दन के अस्त्र के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है ,लेकिन ये बहुत छोटे पैमाने पर हो रहा है ,और इसको नियंत्रित करने के लिए कानून का इस्तेमाल करने के बजाय,परम्पराओं का निर्माण करना ज्यादा जरुरी है |दुनिया के सबसे बड़े हिंदी ब्लॉग भड़ास को चला रहे मेरे मित्र यशवंत सिंह को इन्ही परम्पराओं को स्थापित करने के लिए तमाम झंझावातों से जूझना पड़ रहा है ,उनकी समस्या तब शुरू हुई जब उनहोंने अपने ब्लॉग पर खुलेआम गाली गलौज और अर्थं टिप्पणियों को रोकने के लिए कुछ लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया अब वही लोग अलग -अलग फोरम से यशवंत के खिलाफ अभियान चला रहे हैं|


इस पोस्ट को लिखने की वजह न्यायालय की अवमानना करना कदापि नहीं है ,हम सिर्फ ये कहना चाहते हैं की हमें कहने दीजिये ,हमारे होठों को मत सिलिये हमारी अँगुलियों में जुम्बिश होने दीजिये ,हमारे पास सिर्फ शब्द हैं उन शब्दों को हथियार बनाकर लड़ाई करना हमेशा कठिन होता है ,अगर हम चुप रहे तो हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों की आत्मा का तिरस्कार होगा |हमें चुप करना उनके हाथों हमारी वैचारिक हत्या कराने की वजह बनेगा ,जो हर पल संघर्ष कर रही जनता की चुप्पी की बदौलत ही उसके सीने पर चढ़कर राज कर रहे हैं |हमें चुप करना हमारी आदमियत को ख़त्म करने जैसा होगा |हमने कभी लिखा था-
कौन पूछेगा हवाओं से सन्नाटों का सबब ,शहर तो यूँही हर रोज मरा करते हैं
कभी दीवारों में कान लगाकर तो सुनो ,कलम के हाँथ भी स्याही से डरा करते हैं
अगर ब्लॉग पर अंकुश लगाने की कोशिश की गयी तो इस बार शहर हमेशा के लिए मर जायेंगे ,और निसंदेह ये एक लोकतान्त्रिक देश में किया गया हालोकोस्ट होगा |

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपका लेख चिंतनीय है .एक प्रश्न सर उठा रहा है .....क्या हम लोकतंत्र में सांसें ले रहे हैं ?
    अब हमें अपने विचारों को भी व्यक्त करने से पहले ये सोचना होगा की हम उन्हें व्यक्त करें या न करें ....

    हमारे होठों को मत सिलिये हमारी अँगुलियों में जुम्बिश होने दीजिये ,हमारे पास सिर्फ शब्द हैं उन शब्दों को हथियार बनाकर लड़ाई करना हमेशा कठिन होता है ,अगर हम चुप रहे तो हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों की आत्मा का तिरस्कार होगा |हमें चुप करना उनके हाथों हमारी वैचारिक हत्या कराने की वजह बनेगा ,जो हर पल संघर्ष कर रही जनता की चुप्पी की बदौलत ही उसके सीने पर चढ़कर राज कर रहे हैं |

    आपकी कलम में सदैव ऐसी ताकत बनी रहे .......
    शुभकामनाएं........

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  2. अभिव्यक्ति की स्वंत्रता के मुलभुत अधिकार पर अंकुश लगाने की अदालती मुहीम के विरुद्ध आपका यह लेख काफी सशक्त है | विचारो के दमन के इस घृणित प्रयास का पुरजोर विरोध होना चाहिए और इसके साथ साथ अभिव्यक्ति की स्वंत्रता की भी एक सीमा जरुर निर्धारित करनी चाहिए ताकि वेवजह की छीटाकशी पर भी लगाम लगाई जा सके |

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  3. आवेश जी,
    भारत जैसे प्रजातान्त्रिक देश के बुद्धजीवियों और विचारशील जनता की सोच की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाना एक साजिश है, ताकि सत्ता के विरुद्ध कोई भी आवाज़ बुलंद न कर सके और अदालत के खौफ़ से लोग खामोश हो जाएँ | ये मुद्दा सिर्फ बहस के लिए नहीं है बल्कि एक जन-आन्दोलन केलिए प्रेरित कर रही है | आम जनता के साथ हीं मीडिया के दोनों स्तंभों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक, को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा | व्यक्तिगत आक्षेप का जरिया अगर कोई इसे बनाता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाई न्यायसंगत है | परन्तु विचारों पर प्रतिबन्ध लगाना निश्चित हीं व्यक्ति की मानसिक हत्या होगी, और इसे बर्दाश्त करना प्रजातंत्र का अंत |
    आपका यह लेख निश्चित हीं नागरिक अधिकारों के प्रति जन-चेतना और जन-आन्दोलन का आगाज़ करेगा | शुभकामनायें |

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  4. हाँ यह खबर पढ़ी और विस्तार में आपने जो कुछ रखा है,वह प्रशंसनिए और गौर करने की बात है.....संविधान में जो स्वतंत्रता दी गई,उसे छिनने का प्रयास क्यूँ?

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  5. Awesh ji aapne ye bilkul thik kaha hai ki vicharo ko vyakt akrne se pehale hume soch lena chahiye or ek jimmedar nagrik ki tarah hi vyvhar karna chahiye , magar fir bhi humari aazadi humara janmsidh adhikar hai or koi ise kaise chhen sakta hai.....hume apne desh me apne vicharo ko vyakt karne se rokna galat hi nahi ek jaghany apradh mana jana chahiye,magar afsos ye apradh karne wala or koi nahi humari khud ki sarkar hai..
    aapko is sashakt lekhan ke liye bahut-bahut badhaiyan........

    dwara

    -----anu sharma

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  7. khamoshi jab hadd se zyada ho jaaye to ghutaan ban jaya karti hai,
    is liye humese bolne ka,vicharon ko wyakt kane ka haq na cheena jae

    March 8, 2009 1:03 AM

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