दैनिक जागरण के संस्थापक स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन को आपमें से बहुतेरे लोग जानते होंगे एक अखबार के संस्थापक सम्पादक और राज्य सभा के पूर्व सदस्य के रूप में मैं भी उनको जानता हूँ मैं उन्हें एक प्रखर चिन्तक और दार्शनिक कवि के रूप में भी जानता हूँ मुझे ये भी पता है कि उनका अखबार अपने साप्ताहिक अंक में उनकी कवितायेँ नियम प्रकाशित करता था ,लेकिन एक बात मुझे अभी मालूम हुई वो ये कि नरेन्द्र मोहन समकालीन हिंदी साहित्यकारों के अगुवा थे ,ये बात मुझे अखबारी दुनिया के बहुरूपिये के रूप में चर्चित होते जा रहे दैनिक जागरण से ही मालूम हुई |खुद को देश में हिंदीभाषियों में सर्वश्रेष्ठ कहने वाले जागरण ने कल नरेन्द्र जी के जन्मदिवस पर जबरियन प्रेरणा दिवस मनाया ,पूरे देश में जागरण समूह ने स्वयंसेवी संगठनों और एजेंसियों से मान -मनोव्वल करके और लालच देकर उन्हें आयोजक बना दिया ,और आज के अखबार के मुख्य पृष्ठ और अन्दर के पेजों पर 'पूरे देश में मनाया गया प्रेरणा दिवस 'शीर्षक से खबर चस्पा कर दी ये किसी भी व्यक्ति को जनप्रिय बनाने के अखबारी फान्देबाजी का सबसे बड़ा उदाहरण है ,ऐसा नहीं है कि जागरण ये प्रयोग सिर्फ स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन के लिए कर रहा है ,पूर्व के लोकसभा चुनाव और अब होने जा रहे विधान सभा चुनावों में प्रोफाइल मेकिंग का ये काम करोडो रूपए लेकर किया जा रहा है |नरेन्द्र जी की खूबियों और उनकी रचनाधर्मिता को साबित करवाने के लिए इस अवसर पर जो भी आयोजन किये गए ,उनमे नामचीन साहित्यकारों को बुलवाकर स्वर्गीय नरेन्द्र जी का महिमा गान करवाया गया ,चूँकि छोटे बड़े साहित्यकारों में से ज्यादातर अभी तक अखबारी छपास की खुनक से मुक्त नहीं हो पाए हैं तो सभी ने नरेन्द्र जी का जम कर यशोगान किया ,जागरण की बेबाकी और निष्पक्षता की शर्मनाक किस्सागोई की गयी वहीँ ख़बरों की हनक से हड़कने वाले तमाम नौकरशाहों ने भी इस आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अखबार को सलामी ठोकी
इस पोस्टिंग को लिखने की वजह कहीं से भी नरेन्द्र जी की काबिलियत और उनकी विद्वता पर अंगुली उठाना नहीं है यहाँ हम सिर्फ और सिर्फ बड़े अखबारों की साम दाम दंड भेद के बल पर प्रोफाइल मेकिंग के राष्ट्रीय कार्यक्रम से आपको रूबरू कराना चाहते हैं ,हम चाहते हैं आप भी इस छद्म को पहचाने| नाम नहीं लूँगा लेकिन आज देश में कई नामचीन सिर्फ इसलिए नामचीन हैं क्यूंकि मीडिया ने उन्हें सारे मूल्यों को ताक पर रखकर अवसर दिया ,और कई योग्यता के बावजूद सिर्फ इसलिए हाशिये पर हैं क्यूंकि उन्होंने अखबारी साहूकारों की दलाली नहीं की |दैनिक जागरण का प्रेरणा दिवस बहुत कुछ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिवस की याद दिलाता रहा ,जहाँ पैसा बटोरकर जन्मदिवस मनाया जाता है ,गनीमत बस इतनी रही कि अन्य अवसरों की तरह इस मौके पर विज्ञापन नहीं वसूले गए
आजकल मीडिया से जुड़े तमाम ब्लागों ,गोष्ठियों में अखबारों के बाजारुपना की चर्चाएँ जोरों पर हैं ,मगर अफ़सोस इस बाजारुपन के चरित्र में किनकी बोली लगायी जा रही है इस पर बहुत कम बात होती है यकीन करना कठिन है मगर सच है कि मीडिया छोटे कस्बों से लेकर जनपदों ,फिर बड़े शहरों ,राज्यों और फिर अंत में राष्ट्रीय स्तर पर बेहद गुपचुप ढंग से लोकप्रिय बनाने का कारखाना चला रहा है ,इस कारखाने में थानेदारों से लेकर नेताओं ,साहित्यकारों ,पत्रकारों और समाजसेवियों सभी का निर्माण हो रहा है ,ये हिदुस्तान की आजादी के बाद मीडिया के चरित्र में आई गिरावट का सबसे बड़ा उदाहरण है ,अफ़सोस ये है की इन्फेक्शन बहुत तेजी से अब संचार के नया माध्यमों यहाँ तक की ब्लागर्स पार्क में भी घुस रहा है मुझे उत्तर प्रदेश के एक बड़े आई .पी,एस रघुबीर लाल का उदाहरण देना यहाँ समीचीन लगता है ,जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार से समानित कराने के लिए जागरण ने पूरी ताक़त झोंक दी निठारी की घटना के तत्काल बाद जिस वक़्त पूर्वी उत्तर प्रदेश से लापता सैकडों बच्चों के सन्दर्भ में दैनिक जागरण में ही खबर प्रकाशित हुई और अखबार को इस खबर का असर उक्त आई.पी,एस पर पड़ता दिखा ,तो अगले ही दिन हास्यास्पद तरीके से उस अधिकारी के हवाले से दैनिक जागरण में ही झूटी खबरें न प्रकाशित करने की नसीहत प्रकाशित कर दी गयी खैर अखबार सफल रहा और रघुबीर लाल अखबार की मेहरबानी से राष्ट्रपति पदक पाने में सफल रहे पिछले एक दशक से छोटे बड़े सभी चुनावों में इसी तरह से ये अखबार अपनी मेहरबानियों को बेचकर जनता के माइंड वाश का काम करते हैं मैं कई ऐसे समाजसेवियों लेखकों और साहित्यकारों को जानता हूँ जिनका नाम ये अखबार सिर्फ इसलिए प्रकाशित नहीं करते क्यूंकि उन्होंने कभी भी अखबारी दुनिया में जागरण की सत्ता को स्वीकार नहीं किया जिस तरह से राजनेता सिर्फ खुद को ही नहीं अपने पूरे कुनबे को आम जानता पर थोप रहे हैं ,अखबारों में भी ये कुनबायी संस्कृति तेजी से फल फूल रही है ,अख़बारों के प्रथम पृष्ठ से लकार सम्पादकीय तक में ये सब कुछ साफ़ नजर आ रहा है ,प्रादेशिक डेस्क से लेकर नेशनल डेस्क तक हर जगह अब इन कुनबों के लोग हैं ,ऐसे में आप इन अखबारों से किस क्रांति की उम्मीद कर सकते हैं ?ये आश्चर्यजनक लेकिन सच है कि कई बड़े अख़बार तो उन पत्रकारों की मौत की खबर भी नहीं छपते जो दूसरे अखबारों में काम करते हैं ,यही बात स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन जी के सन्दर्भ में भी है ,दैनिक जागरण को छोड़कर और किसी छोटे बड़े अखबार ने इस महायोजन के सन्दर्भ में एक शब्द भी नहीं छापा ,उत्तर प्रदेश में प्रेरणा दिवस के आयोजकों में से एक कहते हैं हम इस बहाने अगर हम नंबर एक अखबार के नजदीक आ जाते हैं तो इसमें बुरा क्या है ?अखबार वालों से नजदीकी कौन नहीं चाहता
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जवाब देंहटाएंआवेश जी,
जवाब देंहटाएंआपका लेख पढ़ी, हमेशा की तरह तथ्यपूर्ण और तर्कपूर्ण| आपका लेख सदैव सामजिक चेतना जगाने केलिए प्रतिबद्ध है| समाज के जिस सच को आप लिखते हैं बहुत कम लोग सोचना तो दूर देख भी नहीं पाते हैं| आप जैसे पत्रकारों की वजह से कुछ प्रतिष्ठा आज भी बची है, वरना मीडिया की बाहरी और भीतरी राजनीति इतनी घृणित हो चुकी है, कि समाज के सबसे बुद्दि-जीवियों में गिने जाने वाला मीडिया वर्ग अब संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है|
आपके लेख में सदैव पुरजोर ऊर्जा और आपमें कर्त्तव्यपरायणता बनी रहे, बहुत शुभकामनायें!
जी हाँ जमाना पुब्लिसिटी का है ,जो जितना छापेगा उतना यश्वास्वी बनेगा..और मीडिया ने हमेशा ही ये काम किया है फिर वो चाहे देनिक जागरण हो या कोई और.आजकल तो सभी मीडिया माध्यम इसी दिशा में चल पड़े हैं.एक और तर्कपूर्ण सामाजिक रचना आवेश जी! लगे रहिये समाज सुधार में .
जवाब देंहटाएंहमें तो पूरी उम्मीद है
जवाब देंहटाएंबल्कि उम्मीद से अधिक
विश्वास है
और हमारा विश्वास ही
आपका भी विश्वास है
कुनबायी क्रांति की आस है
उसी का पूरा विश्वास है।