पिछले दस वर्षों में हिंदी पत्रकारिता का स्वरुप तेजी से बदला है ,वेब पत्रकारिता के आने के साथ साथ पूरे परिदृश्य में आश्चर्यजनक ढंग से प्रगतिशील पत्रकारों का जमघट सा लग गया है ,कुछ ऐसी वेबसाइट्स , पत्रिकाएं और अखबार देखने को मिल रहे हैं जिनमे मौजूदा व्यवस्था और व्यवस्था को लागू करने वाले संसाधनों के प्रति विद्रोह के साथ -साथ इस विद्रोह को सफल बनाने के लिए गंभीर चितन भी है |मगर अफ़सोस प्रगतिशीलता के इस नए चेहरे के साथ सिगरेट जलाकर बगलियाँ झाँक रहे इन पत्रकारों के एक वर्ग ने समूची हिन्दुस्तानी मिडिया के खिलाफ भी विद्रोह शुरू कर दिया है| एक ऐसे दौर में जब समूचा मीडिया जगत खुद को कटघरे में खड़ा करके ,खुद के खिलाफ गवाही दे रहा है और खुद ही जिरह भी कर रहा है ,प्रगतिशीलता के ये नए प्रतीक, डेस्क पर बैठकर ,ख़बरों की एक एक लाइन के लिए जान जोखिम में डालने वाले कलम के सिपाहियों के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं | वैचारिक तौर पर खुद को महान समझने का मुगालता पाले हुए इन प्रगतिशील पत्रकारों की ये कोशिश उस एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है ,जिसके अंतर्गत समूचे देश की मीडिया को नकारा साबित कर और मीडिया एवं आम आदमी के बीच के संवाद को ख़त्म कर, संसद के गलियारों से लेकर नुक्कड़ों पर मौजूद चाय की दूकानों तक केवल खुद को स्थापित करना है |
हिंदी भाषा की एक पत्रिका है "समकालीन तीसरी दुनिया ",मैंने अपने एक मित्र के घर में ये पत्रिका देखी ,पत्रिका में एक लेख प्रकाशित है "चीन के खिलाफ भारत का मीडिया युद्ध "जिसे किन्ही भारत भूषण जी ने लिखा है जो मेल टुडे के सम्पादक भी हैं ,ये लेख मेल टुडे से साभार प्रकाशित है |बेहद आपत्तिजनक शीर्षक वाले इस लेख में हिदुस्तानी मीडिया द्वारा हाल के दिनों में चीन द्वारा भारत के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान की कोव्रिज को पूरी तरह से प्रायोजित बताते हुए कहा गया है कि मीडिया युद्ध सरीखा माहौल बाना रहा है ,साथ ही इन प्रायोजित ख़बरों ने खुद भारत के सामने भी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर डी है ,इस लेख में जानकारी डी गयी है कि गृह मंत्रालय ने ऐलान किया है कि "टाईम्स ऑफ़ इण्डिया "के उन दो पत्रकारों के खिलाफ एफ.आई.आर भी दर्ज किया जायेगा ,जिन्होंने खबर दी थी कि चीनी सैनिकों कि गोली से सीमा सुरक्षा बल के दो जवान घायल हुए हैं,गृह मंत्रालय ने ये आदेश कब दिया इसका संज्ञान न तो उन पत्रकारों को होगा न मुझे है ||पत्रिका के सम्पादक आननद स्वरुप वर्मा जी कि टिप्पणी के साथ लिखे गए इस लेख को पढ़कर यूँ लगता है कि भारत भूषण जी का बस चलें तो समूची हिन्दुस्तानी मीडिया को एक साथ खड़ा करके गोली मार दे |
एक ऐसे देश में जहाँ कहीं कभी भी बम विस्फोट होते हों ,एक ऐसे देश में जिसने गुलामी की एक बड़ी जिंदगी बसर की है ,एक ऐसे देश में जहाँ सत्ता ,समाधान के बजाय समीकरणों में उलझी रहती हो और पडोसी हमें हर पल नंगा करने की कोशिश कर रहा हो ,वहां मीडिया को क्या करना चाहिए ?अगर ताज पर हमले के दौरान या बाद में ,लालगढ़ या छत्तीसगढ़ में में सत्तासमर्थित गण हत्या के दौरान या फिर अब चीन द्वारा भारतीय भू भाग पर कब्जे की कोशिश के खिलाफ अगर कलम या फिर की -बोर्ड हथियार बन जाते हो और देश की मीडिया अपने इस अनूठे हथियार से सोयी हुई सत्ता को जगाने,और आम जनता को देश की आत्मा से जोड़ने की कोशिश करता हो तो इसमें गलत क्या है ?ऐसे में निरपेक्ष होकर रहा भी नहीं जा सकता ,और शायद रहना भी नहीं चाहिए |क्या ये इमानदारी होगी कि हम भी सरकार की तरह चीन के साथ संबंधों में मुलायमियत का तब तक ढिंढोरा पीटते रहें ,जब तक चीनी ड्रैगन हमारी जमीन पर कब्जे के साथ साथ हिन्दुस्तानी सेना को भी अपना निशाना न बना दे ? ये शायद उन तथाकथित प्रगतिशील पत्रकारों की जमात का ही कमाल था कि इतने वर्षों से एक चौथाई पश्चिम बंगाल निरंकुश सत्ता के जुल्मो सितम तले र कराहता रहा मगर पूरा देश अनजान रहा |ये वही लोग हैं जो झारखण्ड ,बिहार ,छत्तीसगढ़ ,पूर्वी उत्तर प्रदेश , के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आम आदिवासी गिरिजन की बुनियादी जरूरतों को लेकर हो रहे निरंतर संघर्ष से अनजान रहे या कहें आँख मूंदे रहे ,मगर अब रक्त क्रांति को सही ठहराते हैं |
बेशर्मी की हदें यही नहीं टूटती ,बेहद उच्च गुणवत्ता के पेपर पर प्रिंटेड समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक की माने तो हिन्दुस्तानी मीडिया द्वारा चीन के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान ,अमरीकी साजिश का हिस्सा है ,सपाट कहें तो पत्रिका कहना चाहती है की ये खबर कवरेज करने वाले पत्रकार अमरीका के दलाल हैं |सम्पादक आनंद स्वरुप वर्मा इस लेख पर अपनी टिप्पणी में कहते हैं ""मीडिया को अपने अनुसार ढालने और "डिसइम्फोर्मेशन "अभियान चलने में अमरीका को महारत हासिल रही है क्या ये प्रायोजित ख़बरें भी दक्षिण एशिया के किसी भूभाग में किसी अमरीकी योजना का हिस्सा है "?सम्पादक जी आगे कहते हैं की इन प्रायोजित खबरों ने खुद भारत सरकार के सामने भी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर दी है |सम्पादक महोदय अगर कल को यह कह दें कि ताज पर हमला भी हिन्दुस्तानी मीडिया ने करवाया तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए, |इसी रिपोर्ट में आगे आश्चर्यजनक ढंग से कहा गया है कि भारत चीन सीमा पर किसी भी समाचार चैनल/पत्र का कोई संवाददाता मौजूद नहीं है,इन ख़बरों के प्रस्तुतीकरण में छोटी छोटी बातों का जिस तरह उल्लेख है वह इनके गलत होने की पृष्टि करता है |हम नहीं जानते भारत भूषण ,आनंद स्वरुप वर्मा जैसे लोगों ने खबरनवीसों के चरित्र (खबर का चरित्र ही खबरनवीस का चरित्र होता है )का खुलासा किस आधार पर किया है लेकिन एक बात तो साफ़ दिखती है की खुद को प्रगतिशील कहलाने में सम्मान की अनुभूति करने वाले लोगों ने देश की मीडिया के खिलाफ इस तरह की रिपोर्टिंग कर अपना वास्तविक चेहरा सबके सामने ला खड़ा किया है |जहाँ तक मै जानता हूँ मेरे ही दर्ज़न भर मित्र पत्रकार आज भी भारत चीन सीमा पर तमाम झंझावातों को सहते हुए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं,उनके लिए परिस्थितियां देश के किसी भी दूसरे हिस्से से ज्यादा प्रतिकूल हैं |दुनिया से अलग गाँव बसाना अच्छा है लेकिन एक ऐसे गाँव पर हल्ला बोलना जहाँ के लोग लड़ते हुए ,भिड़ते हुए झगड़ते हुए भी देश की आत्मा से सीधा सम्बन्ध रखते हों ,कभी भी सफल नहीं होने वाला ,समकालीन हिंदी पत्रकारिता एक गाँव हैं ,और इस गाँव में रहने वालों को पता है कि देश और देश के प्रति सरोकार कैसे होने चाहिए |और हाँ भारत भूषण हम अमरीकी दलाल नहीं हैं |
आपके धारदार कलम को हमारा सलाम. आवेश भाई बहुत सटीक लिखा है आपने, भारत भूषण के एसे उकसाउ लेखन का पुरजोर विरोध होना चाहिये.
जवाब देंहटाएंawesh ji,
जवाब देंहटाएंbuddhijiwion ka do khema bat chuka hai, ek jo buddhi ke sath apni jujhaaru jang bhi jaari rakhen hue hai taaki desh pragati kare, aur dusre aise tathakathit buddhijiwi jo naasamjhi ya jaanbujhkar aisi bhoomika nibhate ki aam janta bhi aahat ho jati hai. bahut achhi tarah aapne apne aalekh mein likha hai, ek vaichaarik kraanti ki behad zarurat hai, jiski shuruaat aapke lekh se ho chuki hai. badhai aur shubhkamnayen.
आवेश जी ! क्या स्वरुप हो गया है पत्रकारिता का और क्या उसके रहनुमाओं का.. देखते, पड़ते हुए शर्म आती है......आपकी कलम से सटीक बात निकली है....भगवन उसे और धार प्रदान करे
जवाब देंहटाएंbahut hi sochniye prashn aapne uthaya hai,
जवाब देंहटाएंpatrkarita ka ye swaroop dekhkar to sharm hi
aati hai, baise aajkal professionalism jyada hawi hai, khabr hit honi chahiye, chahe uske liye kisi ko bhi hit karna pade.
Awesh ji aapki baat se me purntaya sehmat hun,
badhaie ...
kaphi achchhi tarah se pit ptrakarita ko aap ne uthaya....
जवाब देंहटाएंDhanyawad