सोमवार, 3 अगस्त 2009

हत्याओं के बीच तुम्हारी हत्या


प्रमिला के पेट पर पुलिस की लाठियों की चोट अब एक बड़ा घाव बन गयी है ,डॉक्टर कहते हैं कि अब वो जीवन में कभी दुबारा माँ नहीं बन सकेगी,पुलिस ने प्रमिला के साथ साथ उसके पांच साल के बेटे के हाथों को भी पीट-पीट कर लहू लुहान कर दिया था |रामसकल अब सपने देखने से डरता है,उसे डर है कि अब अगर उसने सपने में भी वो वाकया देखा तो वो मर जायेगा लगभग ५ साल पहले अरबपति आदित्य बिडला के अतिथिगृह में आलोक सिंह नाम के उत्तर प्रदेश के एक नामचीन आई.पी,एस ने उसे छत से उल्टा लटकाकर पहले ४ घंटे तक बेरहमी से पीटा फिर उसके कनपटी पर रिवाल्वर लगाकर उससे फर्जी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए,सिर्फ इतना ही नहीं बन्दूक की नोक पर उन लाशों की शिनाख्त करवा दी गयी जिनकी हत्या का आरोप उसके सर पर मढा जाना था ,उसका कसूर सिर्फ और सिर्फ इतना था कि उसने पुलिस कि मुखबिरी करने से साफ़ इनकार कर दिया था | आप यकीं करें न करें छत्तीसगढ़,उत्तर प्रदेश ,बिहार और झारखण्ड समेत देश के सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सली उन्मूलन की कवायद बेकसूरों की हत्याओं का जरिया बन गया है। माओवादियों द्वारा मुखबिरों की हत्या का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। वहीं मुखबिरी से इंकार करने वालों के खिलाफ पुलिसिया दमन चक्र सारी हदें तोड़ रहा है। उत्तर प्रदेश ,जहाँ नक्सलवाद कि पैदावार पिछले एक दशक के दौरान तेजी से बढ़ी है वहां स्थिति और भी गंभीर है शिवजी व उसके बेटे को नक्सलियों ने गोली मार दी तो वहीं नौगढ़ की गर्भवती फुलझड़ी व प्रमिला को पुलिस ने लाठियों से पीट बेदम कर दिया। हाल यह है कि नक्सलवाद के खात्मे के लिए हर वर्ष करोड़ों रूपए खर्च किए जाने के बावजूद नतीजा सिफर है।

  • नक्सली संगठनों की मुखबिरी के लिए ग्रामीणों पर पुलिस का आपराधिक दबाव


  • 4 साल में 14 हत्याएं और खर्च 140 करोड़ रूपए। यह है पूर्वी उ.प्र. में नक्सली उन्मूलन का लेखा-जोखा। अफसोस, ये हत्याएं हुई हैं जिन्हें कभी धमकी तो कभी पैसे का लालच देकर माओवादियों की मुखबिरी में इस्तेमाल किया गया। तथाकथित नक्सलियों की गिरफ्तारी का दावा कर खुद अपनी पीठ ठोक रही पुलिस, निरीह ग्रामीणों की बलि चढ़ा रही है।
    हाल यह है कि चन्दौली, सोनभद्र व मीरजापुर के घोर नक्सल प्रभा
    वित इलाकों में आदिवासी गिरिजनों के सिर पर हर वक्त मौत का साया मंडरा रहा है। अगर मुखबिरी से इंकार करते हैं तो पुलिस उन्हें नक्सली घोषित कर देती है और अगर नक्सलियों की मुखालफत की तो किसी भी वक्त उन्हें छह इंच छोटा कर दिया जाता है। इस मामले का अमानवीय पहलू यह है कि पुलिस द्वारा इस खतरनाक काम में न सिर्फ युवाओं का बल्कि छोटे बच्चों व महिलाओं का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

    बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पूर्व में उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुखबिरों की बकायदा मोबाइल गैंग बना रखी थी जिसमें 100 से अधिक लोग शामिल थे। उन निरक्षर आदि
    वासियों को जासूसी के लिए मोबाइल देने का कितना फायदा हुआ यह तो पता नही, पर उनमें से कुछ को तो नक्सलियों ने बेदर्दी से जरूर मार डाला, वहीं ज्यादातर ने दहशत में खुद ही जिला बदर कर लिया। पूर्वी उ.प्र. में नक्सली उन्मूलन के नाम पर बेगुनाहों की बलि चढ़ाई जा रही है। शिवजी सिंह, भोला नरेश अगरिया, राधेश्याम, देवेन्द्र, लल्लन कुशवाहा इत्यादि वो नाम है जिन्हें मुखबिरी के शक में नक्सलियों ने बेरहमी से मार डाला।

    सोनभद्र के पन्नूगंज स्थित केतारगांव के ग्रामीण बताते हैं कि पुलिस ने हमारे गांव के शिवजी को जबरन मुखबिर बनाया था। जयराम बेहद डरा हुआ था आखिर वही हुआ जि
    सका भय था। संजय कोल के गिरोह ने न सिर्फ शिवजी बल्कि उसके बेटे का भी बेरहमी से कत्ल कर दिया। गांव वाले कहते हैं कि अब फिर पुलिस वाले हमसे मुखबिरी करने को कह रहे हैं। शाम ढलने के बाद कोई भी पुलिस टीम जंगल में नहीं रहती लेकिन हमें माओवादियों की टोह लेने जंगल में ढकेल दिया जाता है। चिचलिया के राम बदन कहते हैं कि माओवादियों ने पूरे कैमूर के इलाके में मोबाइल रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है। परन्तु पुलिस हम पर मोबाइल देकर जासूसी करने का दबाव डाल रही है, साहब पार्टी वाले हमें मार डालेंगे।’

    मुखबिरी के इस खेल में पुलिस का अमानवीय रवैया सारी हदें तोड़ रहा है, जो भी ग्रामीण सहयोग से इंकार करता है उसे या तो झूठे मुकदमे में फंसा दिया जाता है या फिर उसका शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न प्रारम्भ हो जाता है। नौगढ़ की लक्ष्मी बताती है कि पुलिस द्वारा हमसे लगातार नक्सलियों के लोकेशन के बारे में जानकारी मांगी जा रही थी। जब हमने इनका किया तो उन्होंने न सिर्फ लाठी से दौड़ा-दौड़ा कर पीटा बल्कि मेरे बेटे को भी नक्सली बताकर गिरफ्तार कर लिया। वो कहती है, 'मैं कहां से पता लगाऊं नक्सलियों का? अब ईश्वर भी हमारी नहीं सुनता।’नौगढ़ की ही विमला की कहानी और भी दिल दहला देने वाली है वो बताती है कि मुखबिरी से इंकार करने पर मेरी गर्दन और बाल पकड़ कर पुलिस के जवान मुझे घर से बाहर निकाल लाए। मुझे तब तक पीटा गया जब तक लाठी टूट नहीं गई। विमला की साथी फुलझड़ी जो कि गर्भवती थी के पेट पर लाठियां बरसाई गईं वहीं उसे बचाने पहुंचे उसके पांच साल के बेटे के हाथों को लहुलूहान कर दिया गया। कसूर सिर्फ इतना कि इन महिलाओं ने मुखबिरी से इनकार कर दिया था।