शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

तमगों के लिए हत्याएं



माफियाओं और गुंडों के आतंक से कराह रहे प्रदेश में पुलिस का एक नया और खौफनाक चेहरा सामने आया है ,आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन पाने और अपनी पीठ खुद ही थपथपाने की होड़ ने हत्या और फर्जी गिरफ्तारियों की नयी पुलिसिया संस्कृति को पैदा किया है ,नक्सल फ्रंट पर हालात और भी चौंका देने वाले हैं ,नक्सलियों की धर पकड़ में असफल उत्तर प्रदेश पुलिस या तो चोरी छिपे नक्सलियों का अपहरण कर रही है या फिर ऊँचे दामों में खरीद फरोख्त करके उनका फर्जी इनकाउन्टर कर रही है,डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट आज आपको ऐसी ही सच्चाई से रूबरू करा रहा है |सोनभद्र में विगत नौ नवम्बर को नक्सली कमांडर कमलेश चौधरी के साथ हुई मुठभेड़ पूरी तरह से फर्जी थी ,उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुरी तरह से बीमार कमलेश को चंदौली जनपद स्थित नौबतपुर चेकपोस्ट से अपह्त किया और फिर गोली मार दी ,खबर ये भी है कि सोनभद्र पुलिस ने इस पूरे कारनामे को अंजाम देने के लिए अपहरण की सूत्रधार बकायदे चंदौली पुलिस से सवा लाख रूपए में कमलेश का सौदा किया था | नक्सली आतंक का पर्याय बन चुके कमलेश चौधरी की हत्या मात्र एक प्रतीक है जो बताती है की तमगों और आउट ऑफ़ टार्न प्रमोशन के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस क्या कुछ कर रही है ,और परदे के पीछे क्या प्रहसन चल रहा है |
चलिए पूरी कहानी को फिर से रिवर्स करके सुनते हैं ये पूरी कहानी बिहार पुलिस को इस घटना से जुड़े लोगों के द्वारा दिए गए कलमबंद बयानों और पीपुल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टी के सदस्यों की छानबीन पर आधारित है |ये किसी पिक्चर की स्टोरी नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश पुलिस के नक्सल फ्रंट पर की जा रही कारगुजारियों का बेहद संवेदनशील दस्तावेज है , |ताजा घटनाक्रम में और भी चौंका देना वाले तथ्य सामने आये हैं इस पूरे मामले में बेहद महत्वपूर्ण गवाह और इस अपहरण काण्ड का मुख्य गवाह धनबील खरवार पिछले ढाई महीनों से लापता है ,महत्वपूर्ण है कि धनबील फर्जी मुठभेड़ के इस मामले में बिहार पुलिस को अपना बयान देने वाला था |यहाँ ये बात भी काबिलेगौर है कि जिस गाडी से कमलेश चौधरी और अन्य चार को अपह्त किया गया था उस गाडी के लापता होने और अपहरण को लेकर रोहतास के पुलिस अधीक्षक द्वारा एस .पी चंदौली को प्राथमिकी दर्ज करने को लिखा गया था ,लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की ,जो इस पूरे मामले का सच बयां करने को काफी है |चंदौली के नवागत एस .पी का कहना है कि पिछले रिकार्ड्स की जांच के बाद ही कहा जा सकेगा कार्यवाही किन परिस्थितियों में नहीं की गयी |

पिछले ९ नवम्बर को बीमार कमलेश को बिहार के चेनारी थाना अंतर्गत करमा गाँव से मुनीर सिद्दीकी नामक एक ड्राइवर अपनी मार्शल गाडी से लेकर बनारस निकला था ,गाडी में उस वक़्त चार अन्य व्यक्ति सवार थे|चंदौली पुलिस ने नौबतपुर चेक पोस्ट के पास तो बोलेरो गाड़ियों से ओवर टेक करके मुनीर की मार्शल को रोक लिया ,वहां मुनीर को गाडी से से उतार कर दूसरी गाडी में बैठा लिया गया ,और अन्य पांच को भी अपह्त कर घनघोर जंगलों में ले जाया गया इन पांचों व्यक्तियों में कमलेश चौधरी के अलावा भुरकुरा निवासी मोतीलाल खरवार, धनवील खरवार, करमा गांव निवासी सुरेन्द्र शाह व भवनाथपुर निवासी कामेश्वर यादव भी थे | जिस पुलिस इन्स्पेक्टर ने कमलेश की गिरफ्तारी की थी उसने इसकी सूचना अपने उच्च अधिकारीयों को न देकर सोनभद्र पुलिस के अपने साथियों को दी ,आनन् फानन में सवा लाख रुपयों में मामला तय हुआ ,सोनभद्र पुलिस द्वारा थोड़ी भी देरी न करते हुए नौगढ़ मार्ग से कमलेश और अन्य चार को ले आया गया ,मुनीर ने अपने लिखित बयान में कहा है कि मुझे तो चौबीस घंटे के बाद छोड़ दिया गया वहीँ पुलिस ने बिना देरी किये हुए कमलेश को जंगल में ले जाकर गोली मार दी,वहीँ अन्य चार को बैठाये रखा ,कमलेश की मुठभेड़ में मौत की खबर जंगल में आग की तरह फैली और वही कमलेश के साथ अपह्त चार अन्य को लेकर उनके परिजनों और मानवाधिकार संगठनों के तेवर से सकते में आई पुलिस ने बिना देरी किये हुए अन्य चार को १४ नवम्बर को छोड़ दिया |
इस घटना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गवाह धनविल खरवार कैसे और किन परिस्थितियों में गायब हुआ,ये भी बेहद चर्चा का विषय है ,धनबली ही एकमात्र वो गवाह था जिसने अपहत लोगों में कमलेश चौधरी के शामिल होने की शिनाख्त की थी ,एस पी रोहतास विकास वैभव से जब धनबली के गायब होने के सम्बन्ध में जानकारी मांगी गयी तो उन्होंने कहा कि वो जिस स्थान भुर्कुरा का रहने वाला था वो घोर नक्सल प्रभावित है पुलिस का वहां जाना संभव नहीं ,हम फिर भी उसका पता लगाने की यथासंभव कोशिश कर रहे हैं |ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कमलेश चौधरी के फर्जी मुठभेड़ पर पर्दा डालने कि कोशिश नहीं की गयी,इलाहाबाद से सीमा आजाद की गिरफ्तारी को भी इसी मामले से जोड़ कर देखा जा सकता है ,गौरतलब है कि कमलेश चौधरी की हत्या के मामले में पी यु सी एल कि तरफ से बनाये गए पैनल में सीमा आजाद भी शामिल थी और उनके द्वारा मानवाधिकार आयोग को इस पूरे मामले की जांच के लिए लिखा गया था |खरीद फरोख्त की बात और उससे जुड़े प्रमोशन के लालच का सच इस बात से भी जाहिर होता है कि पिछले एक दशक के दौरान उत्तर प्रदेश में जितने भी नक्सली पकडे गए या मारे गए उनमे से ज्यादातर बिहार या अन्य पडोसी राज्यों में सक्रिय थे,खबर है कि जब नहीं तब उत्तर प्रदेश पुलिस ,बिहार पुलिस से भी नक्सलियों की खरीद फरोख्त करती रही है

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

सत्ता,साजिश और सीमा आजाद


जब कभी लोकतंत्र में सत्ता के चरित्र पर से पर्दा उठता है उस वक़्त शर्मिंदगी नहीं साजिशें होती हैं ,उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से शनिवार शाम पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता सीमा आजाद एवं उनके पति विश्व विजय की गिरफ्तारी इसी साजिश का हिस्सा है ,उन्हें माओवादी बताकर गिरफ्तार किया गया है |ये दलितों के नाम पर चुनी गयी सरकार द्वारा उन्ही दलित आदिवासियों और किसानों के खिलाफ चलायी जा रही मुहिम को सफल बनाने का एक शर्मनाक तरीका है |ये घटना बताती है कि उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार आहत और लहुलुहान है |ये घटना ये भी बताती है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भी एक लालगढ़ साँसे ले रहा है वो भी सरकार और उसके कारिंदों के जुल्मो सितम से उतना ही आहत है जितना वो लालगढ़,| जिस एक वजह से सीमा विश्वास और उनके पति की गिरफ्तारी की गयी ,उस एक वजह का यहाँ हम खुलासा करेंगे ,लेकिन उसके पहले ये बताना बेहद जरुरी है कि अगर अभिव्यक्ति को सलाखों में कसने के सरकार के मंसूबों को सफल होने दिया गया ,तो वो दिन दूर नहीं जब सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि समूचे देश में सत्ता खुद बखुद आतंक का पर्याय बन जाएगी|ऐसे में ये जरुरी है कि इस रतंत्रता के खिलाफ अभी और इसी वक़्त से हल्ला बोला जाए|
एक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी सरकार से इससे अधिक उम्मीद कि भी नहीं जा सकती थी ,जिस वक़्त सीमा आजाद को गिरफ्तार किया गया ठीक उसी वक़्त पूर्वी उत्तर प्रदेश के अति नक्सल सोनभद्र जनपद में सोन नदी के किनारे बालू के अवैध खनन को लेक सरकार के विधायक विनीत सिंह और उदयभान सिंह उर्फ़ डॉक्टर के समर्थकों के बीच गोलीबारी हो रही थी ,इस गोलीबारी से डरकर तमाम आदिवासी अपने घरों से भाग खड़े हुए थे ,घटनास्थ पर पुलिस पहुंची ,गोली के खोखे भी बरामद किये लेकिन किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी|ये घटना कोई नयी नहीं है ,समूचे प्रदेश में खनन मंत्री बाबु सिंह कुशवाहा और उनके कारिंदों के द्वारा अवैध खनन का जाल बिछाकर अरबों रूपए की काली कमाई की जा रही है ,और इसको अंजाम तक पहुँचाने के लिए प्रदेश के तमाम माफियाओं ,हिस्ट्रीशीटरों को बेनामी ठेके दिए जा रहे हैं ,निस्संदेह ऐसी स्थिति में आम मजदूर ,आदिवासी और किसान का शोषण होना लाजिमी है ,सीमा आजाद इन्ही मजदूरों के हक़ की लड़ाई लड़ रही थी ,अकेले लड़ रही थी ,वो भी हम जैसी पत्रकार थी लेकिन उसने पैसों के लिए अपने जमीर को नहीं बेचा | इलाहाबाद-कौशाम्बी के कछारी क्षेत्र में अवैध वसूली बालू खनन के खिलाफ संघर्षरत मजदूरों के दमन पर उन्होंने बार बार लिखा , जबकि किसी भी बड़े अखबार ने हिम्मत नहीं की , नंदा के पूरा गांव में पिछले ही माह जब पुलिस पीएसी के जवान ग्रामीणों पर बर्बर लाठीचार्ज कर रहे थे ,सीमा अकेले उनसे इन बेकसूरों को बक्श देने के लिए हाँथ जोड़े खड़ी थी ,उस वक़्त भी किसी अखबार ने इस बर्बरता की एक लाइन खबर नहीं छापी |सीमा की यही जंगजू प्रवृति सरकार को नहीं भायी ,खनन माफियाओं को खुश करने और अपनी झोली भरने के लिए सीमा को रास्ते से हटाना जरुरी था इलाहाबाद के दी.आई जी ने ऊपर रिपोर्ट दी कि सीमा माओवादियों का जत्था तैयार कर रही है .और अब नतीजा हमारे सामने हैं |
ऐसा नहीं है कि सरकार समर्थित अवैध खनन के गोरखधंधे को अमली जामा पहनाने के लिए सीमा से पहले फर्जी गिरफ्तारी नहीं की गयी है ,कैमूर क्षेत्र मजदूर ,महिला किसान संघर्ष समिति की रोमा और शांता पर भी इसी तरह से पूर्व में रासुका लगा दिया गया था,क्यूंकि वो दोनों भी आदिवासियों की जमीन पर माफियाओं के कब्जे और पुलिस एवं वन विभाग के उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठा रही थी हालाँकि काफी हो हल्ला मचने के बाद सरकार ने सारे मुक़दमे उठा लिए गए ,इन गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने सोनभद्र जनपद से ही गोडवाना संघर्ष समिति की शांति किन्नर को भी आदिवासियों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया ,शांति एक वर्ष बीतने के बाद जैसे तैसे जमानत पर रिहा हुई ,मायावती सरकार का जब कभी दलित आदिवासी विरोधी चेहरे पर से नकाब उठता है इस तरह की घटनाएँ सामने आती हैं |
हो सकता है कि सीमा की गिरफ्तारी पर भी मीडिया अपने चरित्र के अनुरूप अपने होठों को सिये रखी है , विभिन्न चैनलों पर चल रहे न्यूज फ्लैश जिसमे नक्सलियों की गिरफ्तारी की बात कही गयी थी को देखकर हमें लग गया था कि टी.आर.पी और नंबर की होड़ में पहलवानी कर रहे मीडिया के पास सच कहने का साहस नहीं है ,लेकिन मै व्यक्तिगत तौर पर मीडिया और मीडिया के लोगों को अलग करके देखता हूँ ,सीमा ,विश्व विजय और आशा की गिरफ्तारी का विरोध हम सबको व्यक्तिगत तौर पर करना ही होगा ,माध्यमों की नपुंसकता का रोना अब और नहीं सहा जायेगा ,वर्ना आइना भी हमें पहचानने से इनकार कर देगा |

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

हम अमेरिकी दलाल नहीं हैं भारत भूषण

पिछले दस वर्षों में हिंदी पत्रकारिता का स्वरुप तेजी से बदला है ,वेब पत्रकारिता के आने के साथ साथ पूरे परिदृश्य में आश्चर्यजनक ढंग से प्रगतिशील पत्रकारों का जमघट सा लग गया है ,कुछ ऐसी वेबसाइट्स , पत्रिकाएं और अखबार देखने को मिल रहे हैं जिनमे मौजूदा व्यवस्था और व्यवस्था को लागू करने वाले संसाधनों के प्रति विद्रोह के साथ -साथ इस विद्रोह को सफल बनाने के लिए गंभीर चितन भी है |मगर अफ़सोस प्रगतिशीलता के इस नए चेहरे के साथ सिगरेट जलाकर बगलियाँ झाँक रहे इन पत्रकारों के एक वर्ग ने समूची हिन्दुस्तानी मिडिया के खिलाफ भी विद्रोह शुरू कर दिया है| एक ऐसे दौर में जब समूचा मीडिया जगत खुद को कटघरे में खड़ा करके ,खुद के खिलाफ गवाही दे रहा है और खुद ही जिरह भी कर रहा है ,प्रगतिशीलता के ये नए प्रतीक, डेस्क पर बैठकर ,ख़बरों की एक एक लाइन के लिए जान जोखिम में डालने वाले कलम के सिपाहियों के खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं | वैचारिक तौर पर खुद को महान समझने का मुगालता पाले हुए इन प्रगतिशील पत्रकारों की ये कोशिश उस एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है ,जिसके अंतर्गत समूचे देश की मीडिया को नकारा साबित कर और मीडिया एवं आम आदमी के बीच के संवाद को ख़त्म कर, संसद के गलियारों से लेकर नुक्कड़ों पर मौजूद चाय की दूकानों तक केवल खुद को स्थापित करना है |
हिंदी भाषा की एक पत्रिका है "समकालीन तीसरी दुनिया ",मैंने अपने एक मित्र के घर में ये पत्रिका देखी ,पत्रिका में एक लेख प्रकाशित है "चीन के खिलाफ भारत का मीडिया युद्ध "जिसे किन्ही भारत भूषण जी ने लिखा है जो मेल टुडे के सम्पादक भी हैं ,ये लेख मेल टुडे से साभार प्रकाशित है |बेहद आपत्तिजनक शीर्षक वाले इस लेख में हिदुस्तानी मीडिया द्वारा हाल के दिनों में चीन द्वारा भारत के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान की कोव्रिज को पूरी तरह से प्रायोजित बताते हुए कहा गया है कि मीडिया युद्ध सरीखा माहौल बाना रहा है ,साथ ही इन प्रायोजित ख़बरों ने खुद भारत के सामने भी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर डी है ,इस लेख में जानकारी डी गयी है कि गृह मंत्रालय ने ऐलान किया है कि "टाईम्स ऑफ़ इण्डिया "के उन दो पत्रकारों के खिलाफ एफ.आई.आर भी दर्ज किया जायेगा ,जिन्होंने खबर दी थी कि चीनी सैनिकों कि गोली से सीमा सुरक्षा बल के दो जवान घायल हुए हैं,गृह मंत्रालय ने ये आदेश कब दिया इसका संज्ञान तो उन पत्रकारों को होगा मुझे है ||पत्रिका के सम्पादक आननद स्वरुप वर्मा जी कि टिप्पणी के साथ लिखे गए इस लेख को पढ़कर यूँ लगता है कि भारत भूषण जी का बस चलें तो समूची हिन्दुस्तानी मीडिया को एक साथ खड़ा करके गोली मार दे |
एक ऐसे देश में जहाँ कहीं कभी भी बम विस्फोट होते हों ,एक ऐसे देश में जिसने गुलामी की एक बड़ी जिंदगी बसर की है ,एक ऐसे देश में जहाँ सत्ता ,समाधान के बजाय समीकरणों में उलझी रहती हो और पडोसी हमें हर पल नंगा करने की कोशिश कर रहा हो ,वहां मीडिया को क्या करना चाहिए ?अगर ताज पर हमले के दौरान या बाद में ,लालगढ़ या छत्तीसगढ़ में में सत्तासमर्थित गण हत्या के दौरान या फिर अब चीन द्वारा भारतीय भू भाग पर कब्जे की कोशिश के खिलाफ अगर कलम या फिर की -बोर्ड हथियार बन जाते हो और देश की मीडिया अपने इस अनूठे हथियार से सोयी हुई सत्ता को जगाने,और आम जनता को देश की आत्मा से जोड़ने की कोशिश करता हो तो इसमें गलत क्या है ?ऐसे में निरपेक्ष होकर रहा भी नहीं जा सकता ,और शायद रहना भी नहीं चाहिए |क्या ये इमानदारी होगी कि हम भी सरकार की तरह चीन के साथ संबंधों में मुलायमियत का तब तक ढिंढोरा पीटते रहें ,जब तक चीनी ड्रैगन हमारी जमीन पर कब्जे के साथ साथ हिन्दुस्तानी सेना को भी अपना निशाना बना दे ? ये शायद उन तथाकथित प्रगतिशील पत्रकारों की जमात का ही कमाल था कि इतने वर्षों से एक चौथाई पश्चिम बंगाल निरंकुश सत्ता के जुल्मो सितम तले कराहता रहा मगर पूरा देश अनजान रहा |ये वही लोग हैं जो झारखण्ड ,बिहार ,छत्तीसगढ़ ,पूर्वी उत्तर प्रदेश , के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आम आदिवासी गिरिजन की बुनियादी जरूरतों को लेकर हो रहे निरंतर संघर्ष से अनजान रहे या कहें आँख मूंदे रहे ,मगर अब रक्त क्रांति को सही ठहराते हैं |

बेशर्मी की हदें यही नहीं टूटती ,बेहद उच्च गुणवत्ता के पेपर पर प्रिंटेड समकालीन तीसरी दुनिया के सम्पादक की माने तो हिन्दुस्तानी मीडिया द्वारा चीन के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान ,अमरीकी साजिश का हिस्सा है ,सपाट कहें तो पत्रिका कहना चाहती है की ये खबर कवरेज करने वाले पत्रकार अमरीका के दलाल हैं |सम्पादक आनंद स्वरुप वर्मा इस लेख पर अपनी टिप्पणी में कहते हैं ""मीडिया को अपने अनुसार ढालने और "डिसइम्फोर्मेशन "अभियान चलने में अमरीका को महारत हासिल रही है क्या ये प्रायोजित ख़बरें भी दक्षिण एशिया के किसी भूभाग में किसी अमरीकी योजना का हिस्सा है "?सम्पादक जी आगे कहते हैं की इन प्रायोजित खबरों ने खुद भारत सरकार के सामने भी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर दी है |सम्पादक महोदय अगर कल को यह कह दें कि ताज पर हमला भी हिन्दुस्तानी मीडिया ने करवाया तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए, |इसी रिपोर्ट में आगे आश्चर्यजनक ढंग से कहा गया है कि भारत चीन सीमा पर किसी भी समाचार चैनल/पत्र का कोई संवाददाता मौजूद नहीं है,इन ख़बरों के प्रस्तुतीकरण में छोटी छोटी बातों का जिस तरह उल्लेख है वह इनके गलत होने की पृष्टि करता है |हम नहीं जानते भारत भूषण ,आनंद स्वरुप वर्मा जैसे लोगों ने खबरनवीसों के चरित्र (खबर का चरित्र ही खबरनवीस का चरित्र होता है )का खुलासा किस आधार पर किया है लेकिन एक बात तो साफ़ दिखती है की खुद को प्रगतिशील कहलाने में सम्मान की अनुभूति करने वाले लोगों ने देश की मीडिया के खिलाफ इस तरह की रिपोर्टिंग कर अपना वास्तविक चेहरा सबके सामने ला खड़ा किया है |जहाँ तक मै जानता हूँ मेरे ही दर्ज़न भर मित्र पत्रकार आज भी भारत चीन सीमा पर तमाम झंझावातों को सहते हुए अपने काम को अंजाम दे रहे हैं,उनके लिए परिस्थितियां देश के किसी भी दूसरे हिस्से से ज्यादा प्रतिकूल हैं |दुनिया से अलग गाँव बसाना अच्छा है लेकिन एक ऐसे गाँव पर हल्ला बोलना जहाँ के लोग लड़ते हुए ,भिड़ते हुए झगड़ते हुए भी देश की आत्मा से सीधा सम्बन्ध रखते हों ,कभी भी सफल नहीं होने वाला ,समकालीन हिंदी पत्रकारिता एक गाँव हैं ,और इस गाँव में रहने वालों को पता है कि देश और देश के प्रति सरोकार कैसे होने चाहिए |और हाँ भारत भूषण हम अमरीकी दलाल नहीं हैं |