सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

सत्ता,साजिश और सीमा आजाद


जब कभी लोकतंत्र में सत्ता के चरित्र पर से पर्दा उठता है उस वक़्त शर्मिंदगी नहीं साजिशें होती हैं ,उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से शनिवार शाम पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्त्ता सीमा आजाद एवं उनके पति विश्व विजय की गिरफ्तारी इसी साजिश का हिस्सा है ,उन्हें माओवादी बताकर गिरफ्तार किया गया है |ये दलितों के नाम पर चुनी गयी सरकार द्वारा उन्ही दलित आदिवासियों और किसानों के खिलाफ चलायी जा रही मुहिम को सफल बनाने का एक शर्मनाक तरीका है |ये घटना बताती है कि उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार आहत और लहुलुहान है |ये घटना ये भी बताती है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में भी एक लालगढ़ साँसे ले रहा है वो भी सरकार और उसके कारिंदों के जुल्मो सितम से उतना ही आहत है जितना वो लालगढ़,| जिस एक वजह से सीमा विश्वास और उनके पति की गिरफ्तारी की गयी ,उस एक वजह का यहाँ हम खुलासा करेंगे ,लेकिन उसके पहले ये बताना बेहद जरुरी है कि अगर अभिव्यक्ति को सलाखों में कसने के सरकार के मंसूबों को सफल होने दिया गया ,तो वो दिन दूर नहीं जब सिर्फ उत्तर प्रदेश में बल्कि समूचे देश में सत्ता खुद बखुद आतंक का पर्याय बन जाएगी|ऐसे में ये जरुरी है कि इस रतंत्रता के खिलाफ अभी और इसी वक़्त से हल्ला बोला जाए|
एक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी सरकार से इससे अधिक उम्मीद कि भी नहीं जा सकती थी ,जिस वक़्त सीमा आजाद को गिरफ्तार किया गया ठीक उसी वक़्त पूर्वी उत्तर प्रदेश के अति नक्सल सोनभद्र जनपद में सोन नदी के किनारे बालू के अवैध खनन को लेक सरकार के विधायक विनीत सिंह और उदयभान सिंह उर्फ़ डॉक्टर के समर्थकों के बीच गोलीबारी हो रही थी ,इस गोलीबारी से डरकर तमाम आदिवासी अपने घरों से भाग खड़े हुए थे ,घटनास्थ पर पुलिस पहुंची ,गोली के खोखे भी बरामद किये लेकिन किसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी|ये घटना कोई नयी नहीं है ,समूचे प्रदेश में खनन मंत्री बाबु सिंह कुशवाहा और उनके कारिंदों के द्वारा अवैध खनन का जाल बिछाकर अरबों रूपए की काली कमाई की जा रही है ,और इसको अंजाम तक पहुँचाने के लिए प्रदेश के तमाम माफियाओं ,हिस्ट्रीशीटरों को बेनामी ठेके दिए जा रहे हैं ,निस्संदेह ऐसी स्थिति में आम मजदूर ,आदिवासी और किसान का शोषण होना लाजिमी है ,सीमा आजाद इन्ही मजदूरों के हक़ की लड़ाई लड़ रही थी ,अकेले लड़ रही थी ,वो भी हम जैसी पत्रकार थी लेकिन उसने पैसों के लिए अपने जमीर को नहीं बेचा | इलाहाबाद-कौशाम्बी के कछारी क्षेत्र में अवैध वसूली बालू खनन के खिलाफ संघर्षरत मजदूरों के दमन पर उन्होंने बार बार लिखा , जबकि किसी भी बड़े अखबार ने हिम्मत नहीं की , नंदा के पूरा गांव में पिछले ही माह जब पुलिस पीएसी के जवान ग्रामीणों पर बर्बर लाठीचार्ज कर रहे थे ,सीमा अकेले उनसे इन बेकसूरों को बक्श देने के लिए हाँथ जोड़े खड़ी थी ,उस वक़्त भी किसी अखबार ने इस बर्बरता की एक लाइन खबर नहीं छापी |सीमा की यही जंगजू प्रवृति सरकार को नहीं भायी ,खनन माफियाओं को खुश करने और अपनी झोली भरने के लिए सीमा को रास्ते से हटाना जरुरी था इलाहाबाद के दी.आई जी ने ऊपर रिपोर्ट दी कि सीमा माओवादियों का जत्था तैयार कर रही है .और अब नतीजा हमारे सामने हैं |
ऐसा नहीं है कि सरकार समर्थित अवैध खनन के गोरखधंधे को अमली जामा पहनाने के लिए सीमा से पहले फर्जी गिरफ्तारी नहीं की गयी है ,कैमूर क्षेत्र मजदूर ,महिला किसान संघर्ष समिति की रोमा और शांता पर भी इसी तरह से पूर्व में रासुका लगा दिया गया था,क्यूंकि वो दोनों भी आदिवासियों की जमीन पर माफियाओं के कब्जे और पुलिस एवं वन विभाग के उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठा रही थी हालाँकि काफी हो हल्ला मचने के बाद सरकार ने सारे मुक़दमे उठा लिए गए ,इन गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने सोनभद्र जनपद से ही गोडवाना संघर्ष समिति की शांति किन्नर को भी आदिवासियों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया ,शांति एक वर्ष बीतने के बाद जैसे तैसे जमानत पर रिहा हुई ,मायावती सरकार का जब कभी दलित आदिवासी विरोधी चेहरे पर से नकाब उठता है इस तरह की घटनाएँ सामने आती हैं |
हो सकता है कि सीमा की गिरफ्तारी पर भी मीडिया अपने चरित्र के अनुरूप अपने होठों को सिये रखी है , विभिन्न चैनलों पर चल रहे न्यूज फ्लैश जिसमे नक्सलियों की गिरफ्तारी की बात कही गयी थी को देखकर हमें लग गया था कि टी.आर.पी और नंबर की होड़ में पहलवानी कर रहे मीडिया के पास सच कहने का साहस नहीं है ,लेकिन मै व्यक्तिगत तौर पर मीडिया और मीडिया के लोगों को अलग करके देखता हूँ ,सीमा ,विश्व विजय और आशा की गिरफ्तारी का विरोध हम सबको व्यक्तिगत तौर पर करना ही होगा ,माध्यमों की नपुंसकता का रोना अब और नहीं सहा जायेगा ,वर्ना आइना भी हमें पहचानने से इनकार कर देगा |