
आयशा आस्मिन अपने कॉलेज इसलिए नहीं जा रही हैं क्यूंकि उनके बुर्का पहनने पर प्रबंधन को ऐतराज है |'सच का सामना' में जारा अपनी अम्मी ,अब्बा और अपने मंगेतर के सामने अपने पूर्व प्रेमी के साथ शारीरिक संबंधों का सच हँसते हुए बयां कर रही हैं|शाहरुख़ नाराज हैं क्यूंकि अमेरिका को ' खान 'नाम आतंकवादियों के नाम जैसा लगता है , |ये तीन स्थितियां प्रतीक हैं हिंदुस्तान में आज के मुसलमान के सामाजिक ,मानसिक और धार्मिक मनःस्थिति की ,वो धर्म के प्रति कट्टर है भी और नहीं भी है ,कहीं कहीं उसमे हिन्दुओं से अधिक भीरुता है तो कहीं-कहीं तालिबानियों जैसी धार्मिक रुग्णता से वो अब भी बाहर नहीं आ पाया है ,देश में लगातार बदल रहे हालात ने आज मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच की दूरी को तो कम किया है ,लेकिन ये भी सच है मुसलमानों का ही एक हिस्सा इस दूरी के कम होने के खिलाफ है ,वो इस निकटता के खिलाफ खुद से भी लड़ रहा है और शेष हिन्दुतान से भी लड़ रहा है |आयशा का बुर्का पहन कर विद्यालय जाने की जिद्द एक मामूली बात नहीं है ,बल्कि ये जिद्द बतलाती है की आज भी देश के मुसलामनों की एक बड़ी तादात अपने व्यक्तिगत और सामाजिक सरोकारों को धर्म के साथ ,और बेहद कट्टरता के साथ ही पूरा करना चाहती है ,यहाँ तक की अपने मौलिक अधिकारों को भी वो धर्म की चाशनी के साथ ही लेना चाहती है |यही धार्मिक अतिवादिता मौजूदा दौर में उसकी मुश्किलें बढा रही हैं |
अगर कभी आप बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय परिसर में जायेंगे ,तो ज्यादातर अध्यापक आपको धोती कुरता और चन्दन लगाये

मेरी एक इरानी मित्र हैं अजीन घहेरी शर्गेही ,वो तेहरान के एक प्रौद्योगिकी संस्थान से इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही हैं ,वो बताती हैं कि हमारे कॉलेज प्रबंधन ने हम लड़कियों के लिए स्कूल में स्कार्फ पहनकर आना अनिवार्य कर दिया तो विद्यालय के सभी छात्र -छात्रों ने एक साथ कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया,वो कहती हैं 'जब हम इस कट्टरपंथी देश में घर और बाहर जींस पहनते हैं और वो हमारे लिए आरामदेह है तो कॉलेज में क्यूँ न पहने '?|हिंदुस्तान में मुस्लिम अविवाहित लड़कियों पर अलग से बातचीत बहुत कम की जाती है ,मेरे एक मुस्लिम मित्र अनवर ने कुछ दिनों पहले अल्पसंख्यक महिलाओं में शिक्षा की स्थिति पर एक लेख लिखा था ,और उसने इसके लिए मुस्लिम समुदाय में धर्म के नाम पर जबरन थोपी जा रही दुश्वारियों को जिम्मेदार बताया था ,ये सही भी है भारी तादात में मुस्लिम लड़कियां ऊँची तालीम हासिल सिर्फ इसलिए नहीं कर पाती क्यूंकि उन्हें बचपन से ही ताउम्र पर्दादारी के लिए तैयार किया जाता है और इस पर्दादारी के लिए पुरुषों के अपने तर्क होते हैं उन तर्कों पर की जाने वाली टिप्पणियों को वो कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते |तालिबानियों ने भी पिछले दिनों जब स्वात घाटी पर अपना कब्जा

अभी कुछ ही दिन हुए जब फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने अपने देश में बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाये जाने का ऐलान करते हुए अपने देश की संसद में कहा था की 'हम अपने देश में ऐसी महिलाओं को नहीं देख सकते जो पर्दे में कैद हों, सभी सामाजिक गतिविधियों से कटी हों और पहचान से वंचित हों। यह महिलाओं की गरिमा के हमारे विचार से मेल नहीं खाता।मगर, साथ ही, सारकोजी ने यह भी कहा कि 'हमें गलत लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए। हमें हर हाल में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फ्रांस में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का भी उसी प्रकार सम्मान हो जैसा किसी भी दूसरे धर्म के लोगों का होता है।हमारे यहाँ हिंदुस्तान में स्थिति फ्रांस से बिलकुल अलग है वहां के राष्ट्रपति को इस्लाम के सम्मान को सुनश्चित करने का वक्तव्य संसद में देना पड़ता है ,हिंदुस्तान का चरित्र ही सर्व धर्म समभाव वाला है ,मगर अफ़सोस, वहां पर कडाई से बुर्के पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं और हमारे यहाँ अगर कहीं इस पर आपति की जाती है ,तो अपने नंबर बढाने में लगे राजनैतिक दल ,खुद को मसीहा साबित करने में जी जान से जुटे धार्मिक संगठन और खुद को निरपेक्ष साबित करने का घटिया खेल - खेल रहे चैनल्स अलग अलग तरीके से इसका विरोध करने लगते हैं |ये अति है हमें कुछ भी पहनने -ओढ़ने और अपने धर्र्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल की स्वतंत्रता होनी चाहिए ,लेकिन हमें स्वतंत्रता की व्यक्तिगत और सार्वजानिक किस्मों को भी समझना होगा ,देश की महिलाओं का ,और हम सभी का भला इसी में है |