शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

राम नाम सत्य है


यह शर्म से मुँह ढकने का वक्त है पत्रकारिता के नैतिक दायित्वों का सरेआम सरेआम कत्ल करके उसे बाजार में नंगा लटका दिया गया है देश के एक बड़े उद्योगपति घराने की बपौती में चल रहे व राष्ट्र का नाम बेच रहे एक अखबार ने माफियाओं के साथ अपने रिश्ते की खुले आम नुमाइश लगनी शुरू कर दी है अखबार ने अपने २ जनवरी के अंक में कुख्यात माफिया डॉन बृजेश सिंह के एक का तस्वीर सहित शुभकामना संदेश प्रकाशित किया है इसके पहले भी कई बार ब्रिजेश सिंह उर्फ़ अरुण कुमार सिंह ,प्रदेश की जनता को अपनी बधाइयाँ दे चुके हैं ये कुछ ऐसा है कि अगर आज अब्दुल कसाब ,दाउद इब्राहीम या फ़िर अबू सलेम कुछ पैसे खर्च कर दे तो अखबार उन्हें हीरो बनाकर ससस्मान आपके सामने प्रस्तुत कर देगायह सिर्फ़ शुभकामना संदेश नही है बल्कि मीडिया और माफियाओं के नव गठजोड़ का एक काला सच है साथ ही उन जुबानों को काट देने का शगल है ,जो अराजकता की स्थिति से उब चुकी थी और अखबारों को तलवार की धार की तरह इस्तेमाल कर हल्ला बोल रही थी

आतंकवाद की आग में झुलस कर राख हो रहे भारतवर्ष में अगर आप राजनीति से उब चुके हैं और मीडिया से परिवर्तन लाने की उम्मीद कर रहे हैं तो फिलहाल ये विचार त्याग दीजिये वो आपकी उम्मीदों के साथ बलात्कार करेंगे और उसे विज्ञापन में तब्दील कर देंगेअब तक नेताओं और अपराधियों की मिलीभगत को लेकर हो हल्ला मचाने वाला एक अखबार यह काम बिना किसी शर्म के अंजाम दे रहा है उक्त मीडिया हाउस ने ब्रिजेश सिंह को बसपा के टिकेट पर लोकसभा चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है ख़बर है की यह सौदा करोडो में हुआ है समाचार पत्र ने पूर्वांचल के अपने सभी संवाददाताओं को माफिया डॉन की पर्सनालिटी मेकिंग का काम सोंप दिया है यह वही अखबार है जिसने अपने मालिक के निधन पर पहले उनकी ग़लत तस्वीर प्रकाशित की अवाम पार्टी कर उस दिन जम कर दारूबाजी की जब इस सम्बन्ध में वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह ने अपनी वेबसाइट गॉसिप अड्डा डॉट कॉम पर ख़बर प्रकाशित की तो उनके ख़िलाफ़ प्रदेश सरकार की मिलीभगत से फर्जी मुकदमा दर्ज करा दिया गया अब आप ख़ुद अंदाजा लगाइए जिसे अपनी मालिक की मौत का शोक न हो वो अपराधियों से त्राहि-त्राहि कर रही देश की जनता के शोक पर क्यूँ कर संताप करेगी

माफिया डॉन के शुभकामना संदेश को जिन अखबारों ने प्रकाशित नही किया वे धन्यवाद के पात्र हैं लेकिन दुखद ये है कि वे भी अपने बीच पनप रही इस अपसंस्कृति का विरोध करने का साहस नही करते ,इसकी भी अपनी वजह है नाम न छापने कि शर्त पर एक बड़े अखबार के विज्ञापन प्रबंधक कहते हैं 'माफिया डॉन के लोगों ने कई जनपदों से हम पर यह शुभकामना संदेश प्रकाशित करने का दबाव बनाया था व इसके लिए हमें निर्धारित दरों से काफ़ी अधिक भुगतान भी दिया जा रहा था ,लेकिन हमने इसे नही छापा क्यूंकि हमारी जनता के प्रति भी जवाबदेही है एवं मूल्यों से समझौता नही किया जा सकता वो कहते हैं लेकिन हम किसी अखबार को ऐसा विज्ञापन प्रकाशित करने पर कटघरे मे खड़ा नही कर सकते'

देश कि एक नामचीन लेखिका के संपादन में चलाये जा रहे इस समाचारपत्र से आत्म्मुल्यांकन कि उम्मीद तो फिलहाल नही है ,क्यूंकि अब तक सत्ताधारी दलों कि सरपरस्ती में अखबार चलने कि उनकी व्यावसायिक अनिवार्यता के दायर में अब माफिया भी शामिल हो गए हैं वो दिन दूर नही जब माफिया ही अखबार चलाएंगे और ख़बरों का चुनाव करेंगे,अगर आप अपना माथा पीटना चाहते हैं तो पीटे पर अब चुप रहने की आदत डाल लीजिये