बुधवार, 15 जुलाई 2009

शर्म शर्म शर्म शर्म शर्म ...............


क्या आप किसी गैर पुरुष के साथ सोयी हैं ?क्या आपने कभी अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ सम्भोग किया है ?क्या आपने अपने कभी अपने पिता को थप्पड़ मारा है ?क्या ये सवाल आपके मनोरंजन की वजह हो सकते हैं ?क्या आपको एक करोंड़ रूपए दिए जाएँ तो आप टीवी पर सबके सामने नंगे हो सकते हैं? अगर नहीं हो सकते हैं तो या तो आप निरा गंवार हैं या फिर आप मनोरंजन का मतलब नहीं समझते ,शायद यही सन्देश दे रहा है स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहा धारावाहिक 'सच का सामना ' | आम आदमी की विवशता और उसके रुदन पर थोड़े से पैसे देने और ज्यादा से ज्यदा बटोरने को एक अमेरिकन धारावाहिक की हुबहू नक़ल करके बनाया गया ये हाई प्रोफाइल रियलिटी शो दरअसल रियलिटी शो नहीं रेप शो साबित होने जा रहा है ,आम आदमी की निजता को खुलेआम भरी भीड़ में नंगा कर देना और उसे दिखाकर ठहाके लगवाना ही इस रियलिटी शो का मकसद है ,ये मानवीय संवेदनाओं का खुलेआम बलात्कार करेगा और बार बार करेगा |आप में जिसके पास साहस हो वो ये सब कुछ देख सकता है, वैसे परम्पराओं और मूल्यों को एकता कपूर स्टाइल में टूटते देख रहे लोगों के लिए ये सब कुछ देखना बेहद आसान है | इस धारावाहिक में अब तक अपराधियों पर इस्तेमाल की जाने वाली पोलिग्रफिक मशीन जिंदगी की तमाम चुनौतियों से जूझते हुए आम इंसान के भीतर छुपे सच का पता लगायेगी | आपमें से जिसने भी १५ जुलाई के एपिसोड को देखा होगा ,वो शायद स्मिता को कभी जिंदगी में नहीं भुला पायें ,पोलिग्रफिक मशीन ने स्मिता के उस सवाल को झूट बताया जिसमे उसने अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ सोने की इच्छा न होने की बात कही थी ,स्मिता अवाक थी उसके पति की आँखों में आंसू थे और दो जिंदगियों की तबाही की पटकथा लिख दी गयी थी |मैं थूकता हूँ हिंदी टेलीविजन इंडस्ट्री पर ,मुझे शर्म है सुचना एवंप्रसारण मंत्रालय की बुजदिली पर ,जो मत्रालय कम भाठियारखाना अधिक नजर आता है ,जिसके पास बार बार सब्र और शर्म की हदे तोड़ रहे इन चैनलों के ऊपर लगाम कसने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही साहस ,,वो अपनी आँखों के सामने चैनलों पर जब छोटे बच्चों की कोमल मनोवृतियों को छिन्न भिन्न होते और बेहूदगी से एक बेहूदा अभिनेत्री को स्वयम्बर रचाते देख सकता है तो उसे ये सब देखने में क्यूँकर शर्म आएगी ? और माफ़ करिये मुझे शर्म खुद पर और आप पर भी है ,जो अपनी आँखों का सारा शील और सारी शर्म को ख़त्म करके कुछ भी देख सकते हैं ||
आइये अब वो देखने की बारी है जो अब तक आप नहीं देख सके ,एक देश की पूरी पीढी को धारावाहिकों के माध्यम से जिंदगी जीने का तथाकाथित सलीका सिखाने के बाद ये चैनल अब आपके भीतर छुपे सच को सबके सामने उगलवाएँगे,वो सच जो हर इंसान के भीतर छुपा होता है ,वो सच जो जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्तों पर पैदल चलते हुए पैदा होता है ,कभी कभी जीता है ,कभी कभी मर जाता है |अक्सर हम ख्यालों में बहुत कुछ ऐसा सोच लेते हैं जिन्हें सबके सामने कहना संभव नहीं होता वो सोच किसी भी नजदीकी के सम्बन्ध में हो सकती है परन्तु इसका मतलब ये तो नहीं की उसे व्यक्त किया जाए |हम सच कहते हैं कि जब मैं छोटा था तो खुद को पिता के हांथों पिटते देख मेरे मन में कई बार ख्याल आया की उठाऊं पत्थर, मार दूँ उन्हें ?परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया ,वो क्षणिक था और आज मैं अपने पिता को शायद दुनिया में किसी भी बेटे से अधिक प्यार करता हूँ ,आज जो कुछ में हूँ उनकी वजह से हूँ ||शायद ऐसे सच की अभिव्यक्ति न करना ही हमें विक्षिप्तता से बचता है ,एक पागल इंसान और आम इंसान में यही फर्क होता है |मौजूदा समय में विवाहेतर सम्बन्ध ,विवाहपूर्व यौन सम्बन्ध आधुनिक भारतीय समाज का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं ,ये सही हैं या गलत लेकिन आप इनसे समाज को अलग करके नहीं देख सकते ,समाज के हर वर्ग के स्त्री पुरुष इसमें शामिल हैं ,ये स्वाभाविक है | इसे मर्यादा के विरूद्व भले मन जाए लेकिन अपराध कहना उचित नहीं होगा ,ये खुद को १०० फीसदी न उडेल पाने से उपजी कुंठा का प्रतिफल है जिसमे कभी भी जीवन के किसी भी मोड़ पर , किसी के साथ भी मन की कोमल भावनाएं जुड़ जाती है ,इसका विवाह से कोई ताल्लुक नहीं होता ,लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम भीड़ के बीच इन संबंधों का ढिंढोरा पीटें और पैसे की वसूली करें |उफ्फ्फ ,कैसे कर सकते हैं आप ऐसा ?

मुझे आश्चर्य होता है उन स्त्री पुरुषों पर जो इस तरह के धारावहिकों में शामिल होने के लिए सहर्ष राजी भी हो गए ,अपना अपना पोलिग्राफिक टेस्ट कराया ,और जिंदगी के सच की लड़ाई में तार तार होने के बावजूद बैठ गए हॉट सीट पर, धरावाहिक के प्रोमो में अब तक जिन चेहरों को दिखाया गया वो सिनेमा ,टी वी और खेल के क्षेत्र से जुडी हस्तियाँ थी ,जिनके लिए निजता भी प्रदर्शन की चीज होती है और जिसे वो बार बार पब्लिसिटी पाने के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं,उन्हें फर्क नहीं पड़ता किबेहद व्यक्तिगत सच के प्रदर्शन से बेहद कोमल मानवीय संबंधों पर क्या असर पड़ने वाला है ,हाँ पहले एपिसोड को सनसनीखेज बनाने के लिए स्मिता को जरुर सामने बैठा लिया गया ,क्यूंकि इस एपिसोड में ऐसे सवाल थे जो अगर सामान्य जिंदगी में कोई किसी से पूछे तो वो जूता उठाकर मारने दौड़ा लेगा ,खैर वहां उत्तर के बदले पैसे थे |स्मिता अपने जीवन में किसी वक़्त अपने पति की हत्या कर देना चाहती थी ,उसके मन में एक बार बेवफाई का ख्याल आया था ,उसे लगता था की उसकी माँ उसके भाई को अधिक चाहती है न की उसे |जहाँ तक मैं सोचता हूँ मध्यमवर्गीय परिवारों में ,पति के साथ कड़वे संबंधों का बोझ उठा रही कोई भी महिला किसी एक वक़्त में उसकी हत्या के बारे में सोच सकती है जहाँ तक बेवफाई का सवाल है हमने पहले भी कहा बेवफाई के मायने अब बदल चुके हैं ,खैर स्मिता ने स्वीकार किया कि किसी एक वक़्त वो ऐसा कर सकती थी ,आने वाले एपिसोड में लोगों से ये भी पूछा जायेगा की क्या आप विवाह के बाद खुद को बंधा हुआ महसूस करते हैं ,शादी के बाद अपने किसी गैर मर्द से प्रेम किया की नहीं और आप अपने बेटे को अधिक प्यार करते हैं या बेटी को |जिंदगी की लड़ाई में बार बार हार रहे हम और आप, सामने बैठे स्त्री पुरुष की निजी जिंदगी के पन्नों को चाय की चुस्कियों के साथ आँख गडा कर देखेंगे,और उधर सच का सामना करने के नाम पर जिंदगी की सबसे बड़ी बेवकूफी कर रहे लोग आंसू बहा रहे होंगे ,जो शायद आने वाले कल में भी उनकी आँखों से बहता रहेगा |