सोमवार, 27 जुलाई 2009

सच का सामना :लाइव विथ मोचीराम


साथियों ,सच का सामना में आज हमारे सामने हैं मोचीराम ,हंसिये मत यही नाम है इनका |इनको विश्वास है कि ये सच का सामना कर सकेंगे |हम हमेशा की तरह पूछेंगे २१ सवाल ,सही जवाब देने पर इन्हेमिलेंगे १ करोड़ रुपए |हमारा पहला सवाल मोचीराम आपके लिए , तुमने कितने दिन से खाना नहीं खाया ?'साहब दो दिन हो गए ,घर में एक दाना नहीं है ,पूरी फसल सूखे की भेंट चढ़ गयी ,क्या करूँ ?कहाँ जाऊं ?सही जवाब तुम जीतते हो दस हजार |बीस हजार रुपयों के लिए दूसरा सवाल 'क्या तुमने कभी चोरी की है ?.....................................चुप्पी.....................,जी की है | देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है ?..ये जवाब सच है ,क्यूँ की थी चोरी ? भूख लगी थी तो पंसारी की दूकान से आटा और उस आते से रोटी पकाने के लिए जंगल से लकडी चोरी की थी सरकार ,लेकिन पुलिस रिकार्ड में ७० चोरियां दर्ज हैं.|.................... |अब हम पूछते हैं तीसरा सवाल ,तैयार हो तुम ?'जी हाँ ,सरकार ,पूछें '|ठीक है ,ये बताओ क्या तुमने कभी अपने ३ साल के बच्चे को पीटा है ?सवाल बेहद मुश्किल है सरकार ,जी हाँ पीटा है ,'जिदिया गया था हाट में बिस्कुट के लिए ,लेकिन पीटने के बाद घर आकर हम भी रोये थे साहब '|बिलकुल सही जवाब ,बेहद शानदार खेल रहे हो तुम मोचीराम अब बताओ चौथे सवाल का जवाब "तुम्हारे सामने अगर गाँव का कलेक्टर खाना खा रहा हो तो क्या करोगे ?अरे साहब ये कैसा सवाल ?सच कहूँ तो थाली छीन लूँगा |पोलीग्राफ मशीन क्या कहती हो तुम ??सही जवाब अब एक लाख रूपए से तुम सिर्फ एक सवाल दूर हो तुम मोचीराम ,पांचवां सवाल .'तुमने अपनी बीबी को रोटी के लिए बेचा की नहीं ?ब्लागरों आप बजर दबा सकते हो |हाँ बताओ 'जी हाँ बेचा था ',देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है ? |ये जवाब सच है .तुम जीत गए हो एक लाख रूपए मोचीराम |बताओगे क्यूँ बेचना पड़ा था ?जमीन रेहन रखे रहे सरकार पैसा नाही दे पाए ,तो साहूकार घर पर चढाई आकर दिया रहा ,क्या करते इज्जत बचाने के लिए इज्जत बेचनी पड़ी.|ब्लॉगर साथियों बहुत अच्छा खेल रहे हैं मोचीराम .देखते हैं वो सच का सामना कहाँ तक कर पाते हैं ,आगे मंजिल मुश्किल है राहें कठिन ,ब्रेक के बाद एक बार फिर हम उनसे मुखातिब होंगे |


...............कैडबरी सेलेब्रेशन यानी प्यार का सगुन.......... केलोक्स कोर्न्फ्लेक्स ६ अलग अलग स्वादों में ,अब सबके लिए अलग अलग स्वाद ..........वैरी वैरी सेक्सी .................................आज रात देखिये राखी का स्वयंबर ,तीन दुल्हों के बीच फंसी राखी आखिर किसके गले में वरमाला डालती है |..........|

एक बार फिर हाजिर हैं हम सच का सामना में |आपके सामने हॉट सिट पर बैठे हुए हैं मोचीराम ,जिन्होंने अब तक शानदार खेला है ,मोचीराम अब आगे सवाल और भी कठिन होते जायेंगे ,आप किसी भी वक़्त खेल छोड़कर जा सकते हैं ,अगला सवाल मोचीराम क्या आपने कभी आत्महत्या करने को सोचा है ? जी हां सोचा है ,बार बार सोचता हूँ |देखते हैं पोलीग्राफ मशीन का जवाब, ये जवाब सच है ,क्यूँ सोचते हैं ऐसा मोचीराम ?सरकार न घर ,न छत ,न रोटी छोटे बच्चे और उस पर कमर तोड़ता कर्ज ,क्या करूँ सरकार और कोई चारा नहीं |हमारे सामने बैठी हैं मोचीराम की पत्नी .क्या उन्होंने आपको कभी बताया कि वो आत्महत्या करना चाहते थे ?जी हाँ हम पूरे परिवार के साथ मरना चाहते थे |सातवाँ सवाल मोचीराम आपने कभी बन्दूक उठाने को सोचा है ?जी हाँ .लाल सलाम कहकर और बन्दूक उठाकर रोटी मिल जाये तो क्यूँ न कहूँ ?ये जवाब सच है |आपका जवाब सच है मोचीराम ,कुछ कहना चाहेंगे इसके बारे में ,साहब नक्सली नहीं बनेंगे तो पुलिस बना देगी ,बन ही जाएँ तो बेहतर है |मोचीराम आप चुनावों में वोट देते हैं की नहीं ?जी साहब ,वोट तो पड़ता है ,जो पैसा दे देता है २००-४०० ,उसी के नाम पर बटन दबा देते हैं ,अगला सवाल मोचीराम ,आपकी बहन का बलात्कार जब विधायक के बेटे ने किया था क्या आप वहां मौजूद थे ?.....................................जी हाँ ,था मैं ,पोलीग्राफ मशीन ,ये जवाब .................सच है |,क्या हुआ था 'सरकार घर से काम करने निकल थी मेरे साथ, रास्ते में पकड़ लिया नेता जी के बेटा ने ,हमें बहुत मारा था ,हम कुछ नहीं कर पाए बाद में बहन भी बयान से पलट गयी |क्या खूब खेल रहे हैं मोचीराम आप अब १० लाख रूपए से महज २ कदम दूर हैं |अगला सवाल क्या आपको यकीं है कि आपकी पत्नी से पैदा हुए बच्चे आपके अपने हैं ?जी हाँ यकीं है ,पोलीग्राफ मशीन जवाब दो ,|ये जवाब................ सच है ,वाह मोचीराम ,क्यों तुम्हे यकीं है सच में ?जी हाँ |झूट गाँव के लिए है ,पर मेरे लिए सच है |तुम ये खेल बीच में छोड़कर जा सकते थे, खैर |तुम देश का मतलब समझते हो मोचीराम ?जी हाँ समझता हूँ |मोचीराम ये है १० लाख रुपये के लिए अगला सवाल ,क्या तुम्हे यकीं है कि तुम आजाद देश के नागरिक हो ?जी हाँ ,है यकीं |देखते हैं पोलीग्राफ मशीन क्या कहती है |ये जवाब ..................................................अरे ये तो कुछ भी नहीं बोल रही !मोचीराम ,तुम्हे क्या हुआ ,कुछ तो बोलो ,ब्लॉगर साथियों आप ,आप भी चुप हैं !

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

हमने मरना सिख लिया है !



हम सब बच्चे पैदा करने से डरते हैं क्यूंकि हम जानते हैं हम उन्हें बेबसी और आंसू के सिवा कुछ नहीं दे सकते |चौंकिए मत ये किसी पिक्चर का डायलाग नहीं ,जिंदगी से बुरी तरह थक चुकी उन औरतों की जुबान है ,जिनके लिए न सिर्फ सरकार बल्कि हम सबकी आँख का पानी मर चूका है इस पोस्ट को लिखते वक़्त हम ५ राज्यों की सीमा पर स्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के दक्षिणांचल में हैं ,अभाव,उपेक्षा और सरकारी अक्षमता की बानगी बन चुके इस जनपद मे शासन एवं सत्ता की काली हकीकत एक त्रासदी पर परदा डालकर एक समूची पीढ़ी को विकलांग,नपुंसक और नेस्तनाबूद करने जा रही है यहाँ के चोपन ,दुद्धी व म्योरपुर ब्लाक के आधा दर्जन गाँव मे फ्लोराइड प्रदूषित जल के चपेट मे आकर हजारों आदिवासी स्त्री पुरूष व बच्चे स्थायी विकलांगता के शिकार हो रहे हैं ,माताओं की कोख सुनी पड़ी है ,वहीं तमाम जिंदगियों मे छाया अँधेरा अनवरत गहराता जा रहा है |राज्य पोषित विकलांगता का हाल ये है की जलनिधि समेत तमाम योजनाओं मे करोडो रुपए खर्च किए जाने के बावजूद यहाँ के आदिवासी गिरिजनों के हिस्से मे एक बूँद भी स्वच्छ पानी मयस्सर नही है फ्लोराइड रूपी जहर न सिर्फ़ इनकी नसों मे घूल रहा है ,बल्कि निर्बल व निरीह आदिवासियों के सामाजिक -आर्थिक ढाँचे को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है |
सोनभद्र के आदिवासी बाहुल्य पूर्वी इलाकों मे फ्लोरोसिस का कहर अपाहिजों की बस्ती तैयार कर रहा है ,यहाँ के पड़वा-कोदवारी ,पिपरहा ,कथौदी ,कुस्मुहा ,रासपहरी ,भात्वारी,राजो,नेमा ,राज मिलन ,बिछियारी समेत २ दर्जन गावों मे आदित्य बिरला की हिंडालको,कनोडिया केमिकल व एन.टी,पी.सी से निकलने वाले प्रदूषित जल का भयावह असर देखने को मिल रहा है ,आलम ये है कि लगभग १०० परिवारों के टोले पड़वा-कोद्वारी मे हर एक स्त्री -पुरूष व बच्चे को फ्लोराइड रूपी विष रोज बरोज मौत की और धकेल रहा है ,केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा विगत पाँच वर्षों में इस समूचे क्षेत्र मे फ्लोराइड मेनेजमेंट के नाम पर करोडो रुपये खर्च किए जाने के बावजूद न तो ओद्योगिक प्रदुषण पर लगाम लगाई जा सकी और न ही स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता को लेकर कोई कवायद की गई |,इस वर्ष भी अप्रैल माह मे कहने को तो फ्लोराइड मुक्त जल की व्यवस्था के नाम पर ५० लाख रुपए खर्च किए जाने का प्रशासन दावा करता रहा ,परन्तु जमीनी हकीकत ये है की कुछ भी नही बदला |हाँ,ये जरुर है कि इलाकों के सैकडों ,तालाबों व कुओं पर लाल रंग का निशान लगाकर लोगों को पानी न पीने देने की चेतावनी देने का थोथा प्रयास जरुर किया गया,मगर जबरदस्त पेयजल संकट से जूझ रहे इस जनपद मे नौकरशाही से थकहार चुके आदिवासियों ने अन्य कोई समानांतर व्यवस्था के अभाव में प्रदूषित जल का पीना जारी रखा |कहा जा सकता है की इस गंभीर रोग के साथ साथ मौत को भी अनवरत गले लगाया जा रहा है तमाम टोलों में स्थिति इस हद तक गंभीर है की हर एक परिवार के सारे लोग फ्लुओरोसिस की अन्तिम अवस्था से जूझ रहे हैं |कोद्वारी के रामप्रताप का सरीर इस कदर अकडा की वो चारपाई से कभी उठ नही पाते ,वहीं उनकी पत्नी व लड़का भी इस भयावह रोग की चपेट मे आकर रोज बरोज मर रहे हैं
कमोवेश यही हाल रामवृक्ष ,चन्द्रभान ,हरिकिशन समेत अन्य परिवारों का है |बच्चों मे जहाँ फ्लोराइड की वजह से विषम अपंगता,व आंशिक रुग्णता देखने को मिल रहा है ,वहीं गांव के विवाहितों ने अपनी प्रजनन व कामशक्ति खो दी है |गांव के रामनरेश,कैलाश आदि कहते हैं कि अब कोई भी अपने लड़के लड़कियों की शादी हमरे गांव मे नही करना चाहता ,देखियेगा एक दिन हमारे गांव टोलों का नामो,निशाँ मिट जाएगा |गांवों के हैंडपंप से निकल रहा लाल पानी हम लोगों को रोज बर्ज मौत की और धकेल रहा है |
महिलाओं मे फ्लोराइड का विष कहर बरपा रहा है ,इलाके मे गर्भस्थ शिशुओं के मौत के मामले सामने आ रहे हैं ,स्त्रियाँ मातृत्व सुख से वंचित हैं,वहीं घेंघा ,गर्भाशय के कैंसर समेत अन्य रोगों का भी शिकार हो रहे हैं ,लगभग ८० फीसदी औरतों ने शरीर के सुन्न हो जाने की शिकायत की है ,नई बस्ती की लीलावती,शांति,संतरा इत्यादी महिलाएं कहती हैं कि हम बच्चे पैदा करने से डरते हैं हमें लगता हैं कि वो भी कहीं इस रोग का शिकार न हो जाए ,फ्लुओरोसिस ने आदिवासी-किसानों को पूरी तरह से तबाह कर डाला है अपंगता की वजह से स्त्री पुरूष काम पर नही जा पाते हजारों हेक्टेयर परती भूमि कौडी के भाव बेची जा रही है ,नक्सल प्रभावित इन गांव मे अब तक प्राथमिक चिकित्सा की भी सुविधा उपलब्ध नही है ,पीडितों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्बारा एक टेबलेट भी मुहैया नही करायी गई |पिपरहवा के रामधन कहते हैं की अब हमें कुछ नही चाहिए हमने मरना सिख लिया है |

बुधवार, 22 जुलाई 2009

बलात्कार का दलित मतलब







ये मेरे अखबारी जीवन का शायद सबसे खराब दिन था ,बरसात की बूंदें चेहरे पर थप्पड़ जैसे लग रही थी ,गाँव के बाहर बिना छप्पर की एक झोपडी में पूरी तरह से भीगी चंदा ,रूपा और तारा (काल्पनिक नाम )एक कोने में सिमटी हुई थी,महज 5000 रुपयों में उन नाबालिग़ लड़कियों के साथ बीती काली रात पर, हमेशा के लिए पर्दा डाल दिया था |ये मेरी नजर में पुलिस प्रेस और पोलीटीशियंस के छुपे हुए गठजोड़ का अब तक का सबसे पुख्ता प्रमाण और हिंदुस्तान के इतिहास में बलात्कार का दलित मतलब बताती हुई सबसे प्रामाणिक घटना थी|लगभग 14 से 16 साल कि लड़कियों के चेहरे पर चमकते हुए मेरे साथी पत्रकार मित्रों के कैमरे के फ्लैश ,शायद मुझे और मेरी कलम दोनों को गाली दे रहे थे | लगभग 400-500 ग्रामीणों की भीड़ के बीच जब चंदा ने बिलखते हुए गांव वालों से पूछा कि 'हमारी क्या गलती थी ?हमें क्यूँ निकाल दिया गया गाँव से बाहर ?'तो इस सवाल के जवाब में जो हमने सुना वो अब तक मेरी रातों की नींद उडा देता है |ग्रामीणों ने इन तीनो आदिवासी दलित लड़कियों पर हुए सामूहिक बलात्कार के बाद इन्हें अस्पृश्य घोषित कर दिया था ,और इसकी सजा उन्हें गांव से बाहर करके दी गयी थी |इन लड़कियों का कहना था हमें पुलिस वालों ने कहा कि किसी से मत कहना तुम लोगों का बलात्कार हुआ है ,हमारे बाबा को बन्दूक की नोक पर धमकाया गया|फिर गांव के ही ग्राम प्रधान ने जो बसपा का नेता भी है अपने तीन बेटों के दुष्कर्म की कीमत लगाकर हमसे छुटकारा पा लिया |आप यकीं नहीं करेंगे मुख्यमंत्री मायावाती का प्रिय और इस बलात्कार की घटना पर पर्दा डालने में मुख्य भूमिका निभाने वाला आई पी एस रघुबीर लाल आज राष्ट्रपति पदक से सुशोभित होकर उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एस एस पी है , वही ये खबर कवरेज करने वाले पत्रकार मानहानि के मामले में अदालत का चक्कर काट रहे हैं |मानहानि का ये मुकदमा उत्तर प्रदेश पुलिस के इस नामचीन आई .पी ,एस के व्यक्तिगत खर्चे से पीड़ित बालिकाओं के अनपढ़ परिजनों द्वारा लड़ा जा रहा था ..रूपा का पिता कहता है अगर नहीं लडेंगे,तो वो हमें नक्सली बताकर जेल भेज देंगे |
लगभग तीन साल पहले २३ अप्रैल २००६ को जब ये घटना घटी मैं उस वक़्त देश के नंबर वन अखबार ' दैनिक जागरण ' का संवाददाता हुआ करता था |अति नक्सल प्रभावित सोनभद्र जनपद में पुलिस का दमन चक्र जोरों पर था ,वहीँ सड़कों और अखबार के पन्नों पर दलाल पत्रकारों और नेताओं के साथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश दिखाने के लिए हाई प्रोफाइल ड्रामा खेला जा रहा था |शाम को तकरीबन ७ बजे मुझे ये जानकारी मिली कि बेहद दुर्गम आदिवासी गांव बीरपुर में तीन आदिवासी लड़कियों के साथ २४ घंटे पहले गैंग रेप हुआ है ,और पुलिस ने सुचना के बावजूद उस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की है |मैंने जब इस बेहद संगीन मामले के सन्दर्भ में पुलिस से जानकारी मांगी तो उनके होंश फाकता हो गए ,तत्काल गाडी भेजकर जैसे तैसे लड़कियों को और उन्के परिजनों को बुअलाया गया |चूँकि १० बजे के बाद अखबार के क्षेत्रीय संस्करण छूटने लगते हैं सो मैं ऍफ़ .आई ,आर दर्ज होने का लम्बे समय तक इन्तजार नहीं कर सकता था मैंने लड़कियों और उनके पिता का बयान रिकॉर्ड किया जो कि आज भी मेरे पास सुरक्षित है और खबर भेज दी |अपने बयां में इन लड़कियों ने बताया था कि पिछली रात जब हम तीनो गाँव की ही एक शादी से लौट रहे थे,गाँव के ही तीन लड़कों ने चाकू के बल पर हमें अँधेरे सुनसान रास्ते में उठा लिया ,और हम सबका बारी- बारी से बलात्कार किया ,ये लड़के बसपा के एक नेता और ग्राम प्रधान के बेटे थे , दुष्कर्म की शिकार लड़कियों के परिजनों ने बताया कि उन लोगों ने हमें गांव में ही बंधक बना लिया था ,वो तो हमने जैसे तैसे पुलिस को सुचना दी ,नहीं तो वो तो आने ही नहीं दे रहे थे |कल्पित नामों के साथ अगले दिन ये खबर जागरण के अलावा एक दो अन्य अखबारों में प्रकाशित हुई थी |

२४ अप्रैल को सबेरे ७ बजे सोकर उठने के तत्काल बाद जब मैंने स्थानीय एस.एच ओ को इस मामले में की गयी कार्यवाहियों को जानने के लिए फ़ोन किया तो मेरे पैरों के नीचे की जमीं खिसक गयी , एस.एस.पी रघुबीर लाल का बेहद ख़ास और अभी हिरासत में एक दलित की मौत के मामले में जांच का सामना कर रहे एस. एच .ओ ने मुझे बताया कि 'कहाँ कुछ हुआ है ?वो लड़कियां तो कुछ भी होने से साफ़ इनकार कर रही हैं' .|पूरी तरह से स्तब्ध मैं जब तैयार होकर थाने पहुंचा तो पाया बेहद डरे और सहमे हुए पीडितों के परिजनों और खुद दुष्कर्म की शिकार लड़कियों के बयान बदले हुए हैं| मैं इसके पहले की कुछ समझ पता जागरण के ब्यूरो चीफ का मेरे पास फ़ोन आया कि 'आप इस मामले में ज्यादा रूचि मत लीजिये कप्तान साहब ने व्यक्तिगत तौर पर इस मामले को ज्यादा तवज्जो नहीं देने को कहा है ',मैं सारी हकीकत समझ गया था ,इधर तब तक पुलिस ने पूरे मामले को झूठा साबित करने के लिए इन लड़कियों के बयान की विडियो रिकॉर्डिंग करा ली थी |शाम को एक रेस्ट हाउस में दारू और मुर्गे की दावत में हमारे ब्यूरो चीफ के अलावा सभी बड़े अखबारों के प्रमुख और तमाम पत्रकारों एवं पुलिस के अधिकारियों की मौजूदगी से ये तय हो गया कि उन आदिवासी लड़कियों के बाद अब ख़बरों का बलात्कार होना तय है |
मैं अब भी उन लड़कियों के बयान से पलटने की बात पर यकीं नहीं कर पा रहा था ,मुझे अपने सूत्रों से ये मालूम हुआ कि इनसे डरा धमकाकर और पैसे का लालच देकर ये बयान लिया गया है तो मैं अपने कुछ इमानदार पत्रकार मित्रों को लेकर दो दिन बाद बैरपुर गांव जा पहुंचा ,गांव में घुसते ही हमें डर और दहशत का माहौल देखने को मिला,गाँव के ही एक युवक अरविन्द जिसने पुलिस को इस मामले की इतिल्ला दी थी ,४ दिनों से बिना किसी जुर्म के हिरासत में था ,उसके छोटे भाई ने बताया कि हमारे भाई को बुरी तरह से पुलिस ने पिटा है वे उसे झूठे जुर्म में जेल भेज देंगे |दुष्कर्म की शिकार लड़कियों से मिलने से पहले हमने उनकी माताओं से बात की ,दिन भर जैसे तैसे मजदूरी करके पेट भरने वाली उन महिलाओं ने कहा कि 'साहब ,हम कहाँ तक लड़ पाएंगे ,अगर उफ़ भी करेंगे तो पुलिस जीने नहीं देगी ,हमारी लड़कियों को पंचायत ने गाँव से बाहर कर दिया हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते |
बैरपुर से वापस लौटने के तत्काल बाद मुझे जागरण प्रबंधन ने इस खबर की सत्यता को प्रकाशित करने के बजाय कवरेज को लेकर मुझे १० दिनों तक निलंबित करने का आदेश दे दिया ,अखबार ने एक खंडन भी प्रकाशित किया जिसमे एस.एस .पी के हवाले से कहा गया था कि 'उन लड़कियों ने बलात्कार के पीड़ित को मिलने वाले मुआवजे के लालच में पूर्व में झूठे बयान दिए थे ,अब अगर किसी को ऐसा करते पाया गया तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी ',वहीँ न्यूज़ चैनल 'सहारा समय ' और कुछ एक साप्ताहिक पत्रों ने पुलिस की लीपापोती पर खबरें प्रसारित की |कहानी सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं हुई ,इस घटना के महज १५ दिनों बाद मुझे आगजनी के एक मामले में अभियुक्त बना दिया गया ,हालांकि प्रेस काउंसिल के कड़े तेवरों की वजह से महज २४ घंटे में मेरा नाम पुलिस को हटाना पड़ा ,उधर बलात्कार की शिकार लड़कियों को मोहरा बनाकर 'राष्ट्रीय महिला आयोग ' में मेरे साथ -साथ अन्य तीन पत्रकारों के खिलाफ मानहानि कि शिकायत दर्ज करायी गयी |,हालाँकि बाद में हमने आयोग के पत्र के जवाब में उन्हें सीधे तौर पर कहा कि 'ये बेहद शर्मनाक है कि शहरी महिलाओं के उत्पीडन पर आयोग के सदस्य फौरी तौर पर सक्रिय हो जाते हैं क्यूंकि वहां मीडिया होती है ,लेकिन तीन आदिवासी लड़कियों के मामले में वास्तविकता जाने बगैर ,नोटिस जारी कर दी गयी , ,आयोग महिलाओं को लेकर देश में दोहरे मापदंड अपना रहा है ' |अब तक अविवाहित और गांव से निकाले जाने का संताप झेल रही लड़कियों के पिता अपने इस्तेमाल किये जाने से थक चुके हैं ,रूपा का पिता कहता है 'भैया ,हमको तो न कोर्ट मालूम है न थाना न कचहरी ,हमसे जो कहा उन लोगों ने हम किये ,अब वो मुकदमा लड़वा रहे हैं 'हमें मार दिए होते तो अच्छा था '|चंदा ,रूपा और तारा की आँखों में अब सपने नहीं सिर्फ बादल हैं |

बुधवार, 15 जुलाई 2009

शर्म शर्म शर्म शर्म शर्म ...............


क्या आप किसी गैर पुरुष के साथ सोयी हैं ?क्या आपने कभी अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ सम्भोग किया है ?क्या आपने अपने कभी अपने पिता को थप्पड़ मारा है ?क्या ये सवाल आपके मनोरंजन की वजह हो सकते हैं ?क्या आपको एक करोंड़ रूपए दिए जाएँ तो आप टीवी पर सबके सामने नंगे हो सकते हैं? अगर नहीं हो सकते हैं तो या तो आप निरा गंवार हैं या फिर आप मनोरंजन का मतलब नहीं समझते ,शायद यही सन्देश दे रहा है स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहा धारावाहिक 'सच का सामना ' | आम आदमी की विवशता और उसके रुदन पर थोड़े से पैसे देने और ज्यादा से ज्यदा बटोरने को एक अमेरिकन धारावाहिक की हुबहू नक़ल करके बनाया गया ये हाई प्रोफाइल रियलिटी शो दरअसल रियलिटी शो नहीं रेप शो साबित होने जा रहा है ,आम आदमी की निजता को खुलेआम भरी भीड़ में नंगा कर देना और उसे दिखाकर ठहाके लगवाना ही इस रियलिटी शो का मकसद है ,ये मानवीय संवेदनाओं का खुलेआम बलात्कार करेगा और बार बार करेगा |आप में जिसके पास साहस हो वो ये सब कुछ देख सकता है, वैसे परम्पराओं और मूल्यों को एकता कपूर स्टाइल में टूटते देख रहे लोगों के लिए ये सब कुछ देखना बेहद आसान है | इस धारावाहिक में अब तक अपराधियों पर इस्तेमाल की जाने वाली पोलिग्रफिक मशीन जिंदगी की तमाम चुनौतियों से जूझते हुए आम इंसान के भीतर छुपे सच का पता लगायेगी | आपमें से जिसने भी १५ जुलाई के एपिसोड को देखा होगा ,वो शायद स्मिता को कभी जिंदगी में नहीं भुला पायें ,पोलिग्रफिक मशीन ने स्मिता के उस सवाल को झूट बताया जिसमे उसने अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ सोने की इच्छा न होने की बात कही थी ,स्मिता अवाक थी उसके पति की आँखों में आंसू थे और दो जिंदगियों की तबाही की पटकथा लिख दी गयी थी |मैं थूकता हूँ हिंदी टेलीविजन इंडस्ट्री पर ,मुझे शर्म है सुचना एवंप्रसारण मंत्रालय की बुजदिली पर ,जो मत्रालय कम भाठियारखाना अधिक नजर आता है ,जिसके पास बार बार सब्र और शर्म की हदे तोड़ रहे इन चैनलों के ऊपर लगाम कसने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही साहस ,,वो अपनी आँखों के सामने चैनलों पर जब छोटे बच्चों की कोमल मनोवृतियों को छिन्न भिन्न होते और बेहूदगी से एक बेहूदा अभिनेत्री को स्वयम्बर रचाते देख सकता है तो उसे ये सब देखने में क्यूँकर शर्म आएगी ? और माफ़ करिये मुझे शर्म खुद पर और आप पर भी है ,जो अपनी आँखों का सारा शील और सारी शर्म को ख़त्म करके कुछ भी देख सकते हैं ||
आइये अब वो देखने की बारी है जो अब तक आप नहीं देख सके ,एक देश की पूरी पीढी को धारावाहिकों के माध्यम से जिंदगी जीने का तथाकाथित सलीका सिखाने के बाद ये चैनल अब आपके भीतर छुपे सच को सबके सामने उगलवाएँगे,वो सच जो हर इंसान के भीतर छुपा होता है ,वो सच जो जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्तों पर पैदल चलते हुए पैदा होता है ,कभी कभी जीता है ,कभी कभी मर जाता है |अक्सर हम ख्यालों में बहुत कुछ ऐसा सोच लेते हैं जिन्हें सबके सामने कहना संभव नहीं होता वो सोच किसी भी नजदीकी के सम्बन्ध में हो सकती है परन्तु इसका मतलब ये तो नहीं की उसे व्यक्त किया जाए |हम सच कहते हैं कि जब मैं छोटा था तो खुद को पिता के हांथों पिटते देख मेरे मन में कई बार ख्याल आया की उठाऊं पत्थर, मार दूँ उन्हें ?परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया ,वो क्षणिक था और आज मैं अपने पिता को शायद दुनिया में किसी भी बेटे से अधिक प्यार करता हूँ ,आज जो कुछ में हूँ उनकी वजह से हूँ ||शायद ऐसे सच की अभिव्यक्ति न करना ही हमें विक्षिप्तता से बचता है ,एक पागल इंसान और आम इंसान में यही फर्क होता है |मौजूदा समय में विवाहेतर सम्बन्ध ,विवाहपूर्व यौन सम्बन्ध आधुनिक भारतीय समाज का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं ,ये सही हैं या गलत लेकिन आप इनसे समाज को अलग करके नहीं देख सकते ,समाज के हर वर्ग के स्त्री पुरुष इसमें शामिल हैं ,ये स्वाभाविक है | इसे मर्यादा के विरूद्व भले मन जाए लेकिन अपराध कहना उचित नहीं होगा ,ये खुद को १०० फीसदी न उडेल पाने से उपजी कुंठा का प्रतिफल है जिसमे कभी भी जीवन के किसी भी मोड़ पर , किसी के साथ भी मन की कोमल भावनाएं जुड़ जाती है ,इसका विवाह से कोई ताल्लुक नहीं होता ,लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम भीड़ के बीच इन संबंधों का ढिंढोरा पीटें और पैसे की वसूली करें |उफ्फ्फ ,कैसे कर सकते हैं आप ऐसा ?

मुझे आश्चर्य होता है उन स्त्री पुरुषों पर जो इस तरह के धारावहिकों में शामिल होने के लिए सहर्ष राजी भी हो गए ,अपना अपना पोलिग्राफिक टेस्ट कराया ,और जिंदगी के सच की लड़ाई में तार तार होने के बावजूद बैठ गए हॉट सीट पर, धरावाहिक के प्रोमो में अब तक जिन चेहरों को दिखाया गया वो सिनेमा ,टी वी और खेल के क्षेत्र से जुडी हस्तियाँ थी ,जिनके लिए निजता भी प्रदर्शन की चीज होती है और जिसे वो बार बार पब्लिसिटी पाने के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं,उन्हें फर्क नहीं पड़ता किबेहद व्यक्तिगत सच के प्रदर्शन से बेहद कोमल मानवीय संबंधों पर क्या असर पड़ने वाला है ,हाँ पहले एपिसोड को सनसनीखेज बनाने के लिए स्मिता को जरुर सामने बैठा लिया गया ,क्यूंकि इस एपिसोड में ऐसे सवाल थे जो अगर सामान्य जिंदगी में कोई किसी से पूछे तो वो जूता उठाकर मारने दौड़ा लेगा ,खैर वहां उत्तर के बदले पैसे थे |स्मिता अपने जीवन में किसी वक़्त अपने पति की हत्या कर देना चाहती थी ,उसके मन में एक बार बेवफाई का ख्याल आया था ,उसे लगता था की उसकी माँ उसके भाई को अधिक चाहती है न की उसे |जहाँ तक मैं सोचता हूँ मध्यमवर्गीय परिवारों में ,पति के साथ कड़वे संबंधों का बोझ उठा रही कोई भी महिला किसी एक वक़्त में उसकी हत्या के बारे में सोच सकती है जहाँ तक बेवफाई का सवाल है हमने पहले भी कहा बेवफाई के मायने अब बदल चुके हैं ,खैर स्मिता ने स्वीकार किया कि किसी एक वक़्त वो ऐसा कर सकती थी ,आने वाले एपिसोड में लोगों से ये भी पूछा जायेगा की क्या आप विवाह के बाद खुद को बंधा हुआ महसूस करते हैं ,शादी के बाद अपने किसी गैर मर्द से प्रेम किया की नहीं और आप अपने बेटे को अधिक प्यार करते हैं या बेटी को |जिंदगी की लड़ाई में बार बार हार रहे हम और आप, सामने बैठे स्त्री पुरुष की निजी जिंदगी के पन्नों को चाय की चुस्कियों के साथ आँख गडा कर देखेंगे,और उधर सच का सामना करने के नाम पर जिंदगी की सबसे बड़ी बेवकूफी कर रहे लोग आंसू बहा रहे होंगे ,जो शायद आने वाले कल में भी उनकी आँखों से बहता रहेगा |

बुधवार, 8 जुलाई 2009

बारूद के ढेर पर बैठा हिन्दुस्तानी स्विट्जरलैंड


{देश की उर्जा राजधानी में महज एक सप्ताह के भीतर अलग अलग हुए विस्फोट में लगभग ४२ जाने गई हैं ,देश की उर्जा जरूरतों को पुरा करते करते थक चुकी सोनभद्र -सिंगरौली पट्टी ,जिसका नाम भी बहुतों ने नही सुना होगा ,फ़िर भी सुर्खियों में नही है |मेरी ये पोस्ट वहां की स्थिति का विश्लेषण कर रही है ,ये आज हिन्दी दैनिक 'डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट' में प्रकाशित भी हुई है ,

-आवेश तिवारी


पंडित नेहरु का स्विट्जरलैंड आज बारूद के ढेर पर बैठा है , एशिया के सबसे बड़े एनर्जी पार्क में प्रतिदिन ४० से ५० टन जिलेटिन रोड्स और लगभग . लाख खतरनाक डिटोनेटर का इस्तेमाल हो रहा है ,इन विस्फोटकों की चपेट में आकर प्रति माह औसतन से मौतें हो रही हैं ,भूगर्भ जलस्तर रसातल में चला गया है ,वहीँ समूचा पारिस्थितिक तंत्र छिन्न भिन्न हो गया है ,शायद इस बा पर यकीं करना कठिन हो मगर ये सच है कि सोनभद्र सिंगरौली पट्टी आतंकवाद की नयी चुनौतियों से जूझ रहे देश में गैरकानूनी बारूदों की खरीद फरोख्त का सबसे बड़ा केंद्र बन गयी है ,शर्मनाक ये है कि ये सारा गोरखधंधा त्तर प्रदेश सरकार ,सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस की जानकारी में फल-फूल रहा है |विस्फोटकों के इस गोरखधंधे में जहाँ नवधनाड्यों की फौज तैयार हो रही हैं ,वहीँ मंत्री से लेकर संतरी तक लाल हो रहे हैं |स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों जब एक ट्रक से जब लगभग ४० टन अमोनियम नाइट्रेट बरामद हुआ तो एकबारगी हड़कम मच गया लेकिन महज तीन दिनों बाद ही पुलिस की मिलीभगत से गैरकानूनी अमोनियम नाइट्रेट की आमद फिर से शुरू हो गयी |आज आलम ये है की सारे विस्फोटक गाजर मूली की तरह यहाँ के खनन क्षेत्र में बेचे जा रहे हैं , सिर्फ बेचे जा रहे हैं, बल्कि इनकी क्षमता से अनभिज्ञ मजदूरों से इनका इस्तेमाल कराया जा रहा है | ये सब कुछ तब है जब खुद प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर अपनी आपति दर्ज करा चूका है |मौजूदा समय में बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की लगभग ३०० अवैध खदानों में गैर कानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल हो रहा है,जो अंतर्राज्यीय तस्करों के माध्यम से यहाँ पहुंचाए जा रहे हैं ,सिर्फ इतना ही नहीं यहाँ मौजूद लाइमस्टोन ,.डोलोमाईट और कोयलों की खदानों में विस्फोटकों के सुरक्षित इस्तेमाल को लेक भी किसी प्रकार की कोई कवायद नहीं चल रही है ,पिछले एक सप्ताह के दौरान बैढन और बिल्ली मारकुंडी में घटी अलग अल घटनाएँ इसका सबूत हैं |
अगर आप सोनभद्र पहली बार रहे हैं तो यहाँ के खनन क्षेत्रों का दौरा जरुर कीजिये ,अगर आपको हाथ में डिटोनेटर लेकर घूमते बच्चे नजर जाएँ तो आश्चर्य मत करियेगा ,मजदूरों की झोपडियों में आपको बोरे में रखा अमोनियम नाइट्रेट मिलेगा ,वहीँ खदानों में माइनिंग जाल बिछाती आपको महिलायें नजर आएँगी ,एक्टिविस्ट को जानकारी मिली है कि यहाँ की खदानों में जितने भी लोगों को विस्फोटक नियंत्रक कार्यालय ,आगरा से लाइसेंस निर्गत किये गए हैं उन सभी ने लाइसेंस प्राप्त करने की निर्धारित योग्यता पूरी नहीं की है |कमोवेश यही हाल सिंगरौली क्षेत्र का भी है ,जहाँ रेवड़ियों की तरह कारखानों को लाइसेंस बांटे गए हैं|
-क्या कभी आपने लाशों की खरीद फरोख्त देखी है ,अगर नहीं ,तो भी आपको सोनभद्र आना चाहिए |यहाँ के खनन क्षेत्रों में होने वाली ९० फीसदी मौतों में गुनाहगारों को कोई सजा नहीं मिलती ,वजह साफ़ है पुलिस द्वारा ऐसे किसी भी मामले में मुकदमा दर्ज करने के बजाय मामले को ले- देकर निपटाने में लग जाती है ,जिस किसी की खदान में घटना होती है ,पुलिस उसके मालिकों से मोटी रकम लेकर मृत व्यक्ति के परिजनों को भी थोडी बहुत रकम दिला कर मामला ख़त्म करने की कोशिशें करने लगती हैं पीड़ित पक्ष को ये नसीहत दी जाती है कि तुम गरीब आदमी हो मुकदमा नहीं लड़ पाओगे ,थका हरा मजदूर मरता क्या न करता मुँह बंद रखता है |स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले ६ माह के दौरान डाला - बिल्ली खनन क्षेत्र में घटी किसी भी दुर्घटना में कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी ,जबकि इस दौरान कूल १६ मौतें हुई |हमने इस रिपोर्ट के लिए खदानों में मारे गए लोगों के परिजनों से मुलाक़ात कि तो ये एक बड़ा सच सामने आया कि लगभग सभी मामलों में पुलिस की भूमिका संवेदनहीन रही |
नौतौलिया की सविता का पति पिछले साल ,खदान में हुई ब्लास्टिंग के दौरान बोल्डर गिरने से अकाल मौत का शिकार हो गया था ,अब पहाड़ सी जिंदगी और सविता के दो छोटे बेटे ,जब हम उसके दरवाजे पर पहुँचते हैं तो न जाने क्यूँ सविता के साथ साथ उसके बच्चे फ़ुट फ़ुट कर रो पड़ते हैं ,वो कहती है 'पुलिस ने केवल पांच हजार रूपया दिलवाया था ,हम कोर्ट कचहरी कुछ नहीं जानते ,?क्या करते |आज मेरे बच्चे दाने दाने को मोहताज हैं ,हम किसके पास जाएँ ?झिग्रादंदी का ७० साल का रामकेवट हमरे सवालों पर मूक हो जाता है ,उसके बेटे की १० दिनों पहले ही शादी हुई थी जब उसकी खदान में बारूद भरते वक़्त मौत हो गयी ,मालिक ने सिर्फ कफ़न दिया ,वो बताता है हम पुलिस से ऍफ़ ,ई ,आर की विनती करते रहे ,लेकिन उन्होंने हमें गाली देकर भगा दिया ,उसकी पत्नी कहती है अब किस्से कहूँ मेरा बेटा लाये ?यही हाल दशरथ ,शंकर ,अर्जुन सभी का है ,सभी की बलि अवैध खदानों ने ले ली ,लेकिन शर्मिंदगी को धत्ता बताते हुए पुलिस अपनी जेबें गरम करने में लगी रही |
बारूद की चपेट में आकर होने वाली दुर्घटनाओं का दुखद पहलु ये है कि मरता दलित आदिवासी ही है,अभी हाल ही में सोनभद्र में हो रही इन अकाल मौतों पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा ,न्यायालय ने इन मौतों पर प्रदेश सरकार के हलफनामा दाखिल न करने पर कड़ी आपति करते हुए जिलाधिकारी को ही पार्टी बनाने का हुक्म सुना दिया ,न्यायालय का कहना था कि गरीब आदिवासी न्यायालय और थाने जाने में घबराता है जरुरत इस बात की है कि न्यायालय और पुलिस उस तक पहुंचे ,लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस के पास ये सहृदयता दिखने वाला चरित्र नहीं है |भले ही यहाँ पर दलितों की रहनुमाई का दावा करने वाली सरकार हो |यकीं न करें मगर सच है खुद को प्रदेश के विधानसभाध्यक्ष का नजदीक बताने वाले एक सब इंसपेक्टर को सारे नियम कानूनों को धत्ता बताते हुए खाना क्षेत्र के थाने में सिर्फ इसलिए तैनाती दे दी गयी ,क्यूंकि वो बारूदों की खेती और उस खेती में कुचले जाने वाले लोगों की कीमत जानता था |


माइनिंग इंजिनियर .बी सिंह कहते है लगातार हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद नियंत्रक कार्यालय का कोई भी अधिकारी यहाँ नहीं आता ,चूँकि गैरकानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है इसलिए खराब गुणवत्ता वाले विस्फोटकों की आमद भी बढ़ी है ,जो अक्सर दुर्घटनाओं का सबब बन जाते हैं ,इस पूरी स्थिति के लिए खान सुरक्षा निदेशालय जबलपुर भी कम जिम्मेदार नहीं है ,सोनभद्र और सिंगरौली की सभी खदानों में सुरक्षा नियमों को लागू कराने की जिम्मेदारी निदेशालय की है लेकिन वहां के अधिकारी - महीने में सिर्फ एक बार वसूली की गरज से ही आते हैं |उत्तर प्रदेश खनिज विभाग नयी नवेली दुल्हन की तरह सिर्फ मुँह दिखाई लेना ही जानता है , अधिकारियों का मंत्री को, किसी के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता |
मिनी भोपाल कहे जाने वाले सोनभद्र सिंगरौली पट्टी में कथित विकास की होड़ में घातक उद्योगों को नियमों का उल्लंघन करके अनुमति दी जा रही है ,पहले कनोडिया केमिकल ,फिर बैढन और बार -बार बिल्ली -मारकुंडी खनन क्षेत्र ,विस्फोटों से होने वाली अकाल मौतें और उसके एवज में काली कमाई सोनभद्र की नियति है |अकेले सोनभद्र पुलिस सालाना खनन क्षेत्रों और बारूद विक्रेताओं से ५से १० करोड़ रुपयों की वसूली करती है , सिर्फ वसूली करती है धर पकड़ की धमकी देकर साझेदारी भी हथियाई जाती है |मुलायम सिंह के शासनकाल में जब नरकती में पी सी की गाडी पर हमले के बाद यहाँ के खनन क्षेत्र से नक्सलियों को विस्फोटकों की आपूर्ति का खुलासा हुआ था तब गृह मंत्रालय की पहल पर ,विस्फोटकों के प्रयोग के नियमन की कोशिशें की गयी थी ,लेकिन सत्ता प्रवर्तित होते ही सब कुछ बदल गया ,समूचे खनन क्षेत्र पर मंत्रियों विधयाकों के रिश्तेदारों ,माफियाओं और दबंगों का कब्जा हो गया ,अवैध खनन बढा ,साथ में गैर कानूनी विस्फोटकों का इस्तेमाल भी |

इस पूरे मामले का दूसरा पहलु उद्यमियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा बरते जाने वाली लापरवाही से जुडा है ,नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए जैसे तैसे बारूद का प्रयोग किया जाता है ,समूचे खनन क्षेत्र में कहीं भी नियमानुकूल मैगजीन की स्थापना नहीं की गयी है ,आलम ये है कि वैध खनन करने वाले भी अवैध बारूद इस्तेमाल करते हैं |
उत्तर प्रदेश में पिछले वर्ष ३४हजार डेटोनेटर ७०० किलोग्राम विस्फोटक सामग्री और ३४ टन अमोनियम नाइट्रेट बरामद किया गया था बरामद की गयी ज्यादातर सामग्री सोनभद्र के खनन क्षेत्रों से सम्बंधित थी जो कि आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के रास्ते यहाँ लायी गयी थी | मुंबई हमले के बाद पूरे देश में अमोनियम नाइट्रेट पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया लेकिन सोनभद्र के खनन क्षेत्र में इसकी गैर कानूनी आवक का दौर नहीं रुका, महत्वपूर्ण है कि अब चोरी छपे बेचे जा रहे अमोनियम नाइट्रेट के बोरों पर कनाडा की एक कंपनी की सील लगी रहती है |पुलिस अधीक्षक सोनभद्र से जब अमोनियम नाइट्रेट की बिक्री और विस्फोटकों की गैर कानूनी आवक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया|कुछ वर्ष पूर्व तक खनन क्षेत्र में विस्फोटकों के लाइसेंस धारकों के स्टॉक रजिस्टर की समय समय पर पुलिस खुद जांच करती थी,l लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ साथ ये कवायद भी ख़त्म हो गयी |आज हालत ये हैं कि लगभग ३०० की संख्या में चल रही अवैध खदाने पूरी तरह से इन गैरकानूनी ढंग से आने वाली विस्फोटकों की आमद पर टिकी है
नाम छपने की शर्त पर एक उद्यमी बताते हैं कि अगर हम अवैध बारूद की खरीद करें तो हमें व्यवसाय बंद करना पड़ जायेगा ,क्यूंकि बारूदों के सप्लायर भी अवैध खनन वालों को ही ज्यादातर माल देते हैं क्युकी उसके एवज में उन्हें मोटी रकम मिल जाती है ,जबकि हमसे उन्हें कम पैसा मिलता है ,लगभग यही हाल को़ल कंपनियों का है ,कमाई के लालच में ऐसे लोगों को कारखाना स्थापित करने की इजाजत दे दी जाती है ,जिन्हें नियम कानूनों से कोई मतलब नहीं होता |समाजसेवी रागिनी बहन कहती हैं किसी को आम आदिवासियों और मजदूरों की मौत से सरोकार नहीं है ये संवेदनहीनता की इन्तेहाँ है |
दोपहर के १२ बजते ही वाराणसी शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर रफ्तनी रुक जाती है ,सड़कों पर बैरिकेटिंग लगाये खनन माफियाओं के गुर्गे लाल झंडा टांग कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं उधर खनन क्षेत्र में काम करने वाले लगभग ५० हजार मजदूर अपने बच्चों को लेकर या तो दूर खुले आस्मां के नीचे निकल जाते हैं या फिर खनन क्षेत्र के बाहर कड़ी गाड़ियों की ओट ले लेते हैं ,उधर प्रशिक्षित अप्रशिक्षित ब्लास्टर की सीटियों के साथ शुरू होता है विस्फोटों का दौर ,लगभग २ घंटे तक पूरा खनन क्षेत्र धमाकों से गूंजता रहता है ,पत्थरों के छोटे बड़े टुकड़े कभी आस पास की इमारतों पर ,तो कभी सड़क चलते राहगीरों को और अक्सर पत्थर तोड़वा मजदूरों को अपनी चपेट में ले लेते हैं ,फिर भी ये क्रम नहीं रुकता |
खनन मजदूर संगठन के नेता डा.सरोज कहते हैं सब कुछ नियम विरूद्व है क्या क्या रोकेंगे आप ?देश में ये एक मात्र जगह है जहाँ राजमार्ग जाम करके ब्लास्टिंग करायी जाती है |चूँकि सब कुछ इतना लापरवाही पूर्ण होता है कि दुर्घटना की सम्भावना हमेशा बनी रहती है ,यूँ तो खनिज नियमावली में आबादी के आस पास के इलाकों में ब्लास्टिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है लेकिन सोनभद्र के परिप्रेक्ष्य में कोई नियम कानून काम नहीं करता ,राजमार्ग के किनारे विस्फोटन को लेकर भी किसी के पास कोई जवाब नहीं है ,लेकिन जब सरकार खुद ही सड़क किनारे पट्टे की इजाजत दे तब आप क्या करेंगे ?इतना ही नहीं पूरे खनन क्षेत्र में नियंत्रित विस्फोट करने के बजाय भारी विस्फोट किया जाता है , इन सब का खामियाजा अगर गरीब मजदूर भुगतता है तो किसी का क्या बिगड़ता है ?