यह शर्म से मुँह ढकने का वक्त है पत्रकारिता के नैतिक दायित्वों का सरेआम सरेआम कत्ल करके उसे बाजार में नंगा लटका दिया गया है देश के एक बड़े उद्योगपति घराने की बपौती में चल रहे व राष्ट्र का नाम बेच रहे एक अखबार ने माफियाओं के साथ अपने रिश्ते की खुले आम नुमाइश लगनी शुरू कर दी है अखबार ने अपने २ जनवरी के अंक में कुख्यात माफिया डॉन बृजेश सिंह के एक का तस्वीर सहित शुभकामना संदेश प्रकाशित किया है इसके पहले भी कई बार ब्रिजेश सिंह उर्फ़ अरुण कुमार सिंह ,प्रदेश की जनता को अपनी बधाइयाँ दे चुके हैं ये कुछ ऐसा है कि अगर आज अब्दुल कसाब ,दाउद इब्राहीम या फ़िर अबू सलेम कुछ पैसे खर्च कर दे तो अखबार उन्हें हीरो बनाकर ससस्मान आपके सामने प्रस्तुत कर देगायह सिर्फ़ शुभकामना संदेश नही है बल्कि मीडिया और माफियाओं के नव गठजोड़ का एक काला सच है साथ ही उन जुबानों को काट देने का शगल है ,जो अराजकता की स्थिति से उब चुकी थी और अखबारों को तलवार की धार की तरह इस्तेमाल कर हल्ला बोल रही थी
आतंकवाद की आग में झुलस कर राख हो रहे भारतवर्ष में अगर आप राजनीति से उब चुके हैं और मीडिया से परिवर्तन लाने की उम्मीद कर रहे हैं तो फिलहाल ये विचार त्याग दीजिये वो आपकी उम्मीदों के साथ बलात्कार करेंगे और उसे विज्ञापन में तब्दील कर देंगेअब तक नेताओं और अपराधियों की मिलीभगत को लेकर हो हल्ला मचाने वाला एक अखबार यह काम बिना किसी शर्म के अंजाम दे रहा है उक्त मीडिया हाउस ने ब्रिजेश सिंह को बसपा के टिकेट पर लोकसभा चुनाव लड़ाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है ख़बर है की यह सौदा करोडो में हुआ है समाचार पत्र ने पूर्वांचल के अपने सभी संवाददाताओं को माफिया डॉन की पर्सनालिटी मेकिंग का काम सोंप दिया है यह वही अखबार है जिसने अपने मालिक के निधन पर पहले उनकी ग़लत तस्वीर प्रकाशित की अवाम पार्टी कर उस दिन जम कर दारूबाजी की जब इस सम्बन्ध में वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह ने अपनी वेबसाइट गॉसिप अड्डा डॉट कॉम पर ख़बर प्रकाशित की तो उनके ख़िलाफ़ प्रदेश सरकार की मिलीभगत से फर्जी मुकदमा दर्ज करा दिया गया अब आप ख़ुद अंदाजा लगाइए जिसे अपनी मालिक की मौत का शोक न हो वो अपराधियों से त्राहि-त्राहि कर रही देश की जनता के शोक पर क्यूँ कर संताप करेगी
माफिया डॉन के शुभकामना संदेश को जिन अखबारों ने प्रकाशित नही किया वे धन्यवाद के पात्र हैं लेकिन दुखद ये है कि वे भी अपने बीच पनप रही इस अपसंस्कृति का विरोध करने का साहस नही करते ,इसकी भी अपनी वजह है नाम न छापने कि शर्त पर एक बड़े अखबार के विज्ञापन प्रबंधक कहते हैं 'माफिया डॉन के लोगों ने कई जनपदों से हम पर यह शुभकामना संदेश प्रकाशित करने का दबाव बनाया था व इसके लिए हमें निर्धारित दरों से काफ़ी अधिक भुगतान भी दिया जा रहा था ,लेकिन हमने इसे नही छापा क्यूंकि हमारी जनता के प्रति भी जवाबदेही है एवं मूल्यों से समझौता नही किया जा सकता वो कहते हैं लेकिन हम किसी अखबार को ऐसा विज्ञापन प्रकाशित करने पर कटघरे मे खड़ा नही कर सकते'
देश कि एक नामचीन लेखिका के संपादन में चलाये जा रहे इस समाचारपत्र से आत्म्मुल्यांकन कि उम्मीद तो फिलहाल नही है ,क्यूंकि अब तक सत्ताधारी दलों कि सरपरस्ती में अखबार चलने कि उनकी व्यावसायिक अनिवार्यता के दायर में अब माफिया भी शामिल हो गए हैं वो दिन दूर नही जब माफिया ही अखबार चलाएंगे और ख़बरों का चुनाव करेंगे,अगर आप अपना माथा पीटना चाहते हैं तो पीटे पर अब चुप रहने की आदत डाल लीजिये
hi
जवाब देंहटाएंaweshjee aap ka lekh pada sach bahut satye likha hai............
जवाब देंहटाएंpar hum aam logo ko chetavni bhi hai..........
jo ye sochtey hain ki midiya hi ab kranti la sakti hain..........par ager midiya ka ye satye hai to to ram hi malik...........
Achha likha hai.bahut achha laga,soch badiya hai.
जवाब देंहटाएंनिःसंदेह,तुम्हारे पास सत्य की सुलगती आंच है,गर्म उबलता खून है........सत्य की तेज आंच है प्रत्येक खाके में.........सच कह रहे हो,वह दिन दूर नहीं जब माफियावालों की अखबार चलेगी और जनता !अंग्रेजों के तलुए चाटती थी,अब इनके साथ है......जो सरफरोशी की तमन्ना लिए हैं,उन्हें सुला दिया जाता है..........शीर्षक से ही मैं सिहर गई.
जवाब देंहटाएंbahut accha lekh vicharinya samaj ke badlate swarooop ki taraf
जवाब देंहटाएंभाई जी, नासमझ बिल्डर, व्यापारी और धन की धौंस पर पत्रकारिता को चलाने का प्रयास करने वाले तो इस क्षेत्र में आ ही चुके हैं जल्द ही आपके विचारों के पंख लगते नजर आने लगेंगे। इन्हीं की वजह से पत्रकारिता का जितना सत्यानाश हो रहा है, हम देख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंdushman ho muqabil to blog le aao.........
जवाब देंहटाएंbhai, mujhe lagta hai shaayad hi koi media house hai jo in se achhoota ho.
rashmijee ne jo kaha hai, tumhain uski laaj rakhni hai , mujhe hamesha saath samajhna.
ye shabd pushtikaran hata do.
ye haal media ka aaj ka nahi bhaut purana hai kaha nahi hai ye chor kuch achhe logon ki wajah se hi duniya bachi hai bus dua yahi karte hain ki kuch achhe log bache rahe
जवाब देंहटाएंSawagat hain aapka blog ki suniya mein mujhe umeed hai ki aapki sch aur achhe vichaar logon ke antarman ko jagayenge aur duniya kuch behataar ho paaye
Please word varification hata de
reply dene mein bahut problem hoti hain 4 baar refresh karne ke baad hi mujhe wo word dikhna shru hua hai
सत्य कह रहे है....
जवाब देंहटाएंपत्रकारिता जगत से जुडे सभी लोगो को देश एवम समाज हीत को सर्वोपरी रखना होगा। लोकतन्त्र के इस चोथे स्तम्भ को आजादी के समय कि अपनी भुमिका को नजरान्दाज नही करना चाहिये। कही अर्थ सर्जन के फैर मे लोकतन्त्र का यह खम्बा भारतिय जनता कि नजरो से गिर ना जाये। कलम को सच्चाई पर बल देना चाहिये। पिलि पत्रकारिता देश समाज के हित मे नही।
जवाब देंहटाएंआपके समाचार मे जिस विशेष पर टिपणी जरुरी थी वो था "देश और पत्र्कारिता।" भारतिय लोकतन्त्र मे बाकी किसी भी अपराधी पात्र कि अहमियत नगण्य है. जिनका कोई सामाजिक सरोकार नही है। आपका हमारा भी दायत्व बनता है कि असामाजिक जनो का जो भारतिय लोकत्न्त्र को हानि पहुचाते हो का परोक्ष अपरोक्ष अपने ब्लोग मे नाम का भी प्रसारण ना हो। आपने बहुत अच्छा लिखा। देश/ राज्य हित मे लिखते रहे यह भी राष्ट्र के प्रति आपकि सेवा है।
जय हिन्द। नमस्कार...
aapne bahut hi sahi likha hai ya yu kahe ki yahi such hai .aap ne vo likha hai jo shayad koi bhi jaldi nahi likha ga ha vo soche ga jaroor liken likhane ki himat nahi ho gi uski.kyu ki har koi such nahi bolta.
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका आपकी बातों से सहमत हूं पत्रकारिता पैसे वालों की रखैल बन कर रह गई है और सत्य को कहने की क्षमता न होकर अनर्गल ही प्रकाशित हो रहा है प्रसारित भी यही हो रहा है। आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं खुश हूँ, इतने ज्यादा सुलझे और उबलते हुए विचारधारा वाले लोगों को अपने बीच पाकर.२ जनवरी ही एक अकेली ऐसी तारीख नही है जिसमे उस अमुक अखबार ने डॉन बृजेश सिंह के विज्ञापन छापे हों, इससे पहले भी इसी अखबार ने विज्ञापन के ज़रिये डॉन बृजेश के माटी का लाल होने का दावा किया था. वैसे मैं यहाँ पर हॉवर्ड जिन्न द्वारा एक कॉलेज में दिए गए भाषण की कुछ पंक्तियों की महसूस कर रहा हूँ की हम सबको नायकोचित करने की कोई ज़रूरत नही है, बस हम सब कुछ न कुछ करते रहे,ये ज़रूरी है. क्योंकि यही सब कुछ न कुछ इतिहास के एक ख़ास बिन्दु पर मिल जाते हैं और दुनिया को बेहतर बना देते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी बहुत अच्छी है, बहुत ही सुलझी हुई भाषा का इस्तेमाल किया है आपने............भविष्य के लिए शुभकामनाएं.
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंJay ho jay ho is kalam maharaj ki .........pata nahi kya kya likwa deta hai........aapne kalam nahi talwar chalyi hai aawesh ji .....in salo ko maa ,bahan bhi karoge to bhi nahi sudharenge .......kale kouwe ki padaish wale in netao,maphiyaon aur mayo ko sach dikhye UP ki janta...........jay ho aapki lekhani ki ...........
जवाब देंहटाएंRakesh Pathak