हम मुंबई में घटित २६/११ के आतंकी हमले की बरसी मना रहे हैं ,मोमबत्तियां जला रहे हैं ,मर्सिया पढ़ रहे हैं ,और यह सब कुछ यह मानते हुए कि इस देश में कभी भी कहीं भी २६/११ जैसी घटनाएँ हो सकती हैं |जब सिस्टम का आम जनता से कोई वास्ता नहीं रह जाता तब सिर्फ और सिर्फ मर्सिया ही किया जा सकता है ,जब प्रजा का विश्वास राज्य की व्यवस्था पर नहीं रह जाता, तब वही होता है जो आज हिंदुस्तान में हो रहा है |क्या इस बात पर जिन्दा कौमें यकीन करेंगी कि जिस शहर में, जिस राज्य में सैकड़ों बेगुनाहों को आतंकियों ने भून डाला था उसी शहर ,उसी राज्य में एक विक्षिप्त जिसकी अब विधान सभा में भी भागीदारी है कभी भाषा तो कभी धर्म के नाम पर आम आदमी को आम आदमी के विरुद्ध खड़ा करने में सफल हो रहा था ,और सत्ता के दावेदारों के साथ- साथ हम -आप अपना चेहरा नयी नवेली दुल्हनों की तरह छुपाये मुस्कुरा रहे थे |क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है कि २६/११ की बरसी से महज चंद दिनों पहले देश में हिन्दुओं के ठेकेदार सीना ठोककर बाबरी मस्जिद गिराए जाने को गर्व का विषय बता रहे थे ,जी हाँ ,ये वो घटना थी जिसने हिंदुस्तान में मुस्लिम फिरकापरस्ती की नयी फसलें पैदा की हैं | आज देश को न तो सत्ता न ही कानून व्यस्था और न ही मीडिया चला रही है वस्तुतः देश को देश की सामाजिक व्यवस्था चला रही है |कहा जा सकता है सरकार से पूरी तरह निराश,नाराज और असंतुष्ट आम जनता का सामाजिक सम्बंध ही देश को और इस बेहद अविश्वश्नीय सिस्टम को जीवित रखे हैं |व्यवस्था या सिस्टम शब्द का एक अर्थ यह है कि अच्छे विचारों और परिकल्पनाओं पर संगठित सरकार ,सिस्टम शब्द का हिन्दुस्तानी अर्थ ये भी है कि यह वो कार्यप्रणाली है जिसे हम चाहकर भी नहीं बदल पाते ,अपने देश में व्यवस्था और सिस्टम की व्यापकता में सिर्फ सरकार ही नहीं सभी राजनैतिक ,आर्थिक ,सामाजिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक ताकतें आ जाती हैं |फिलहाल हिन्दुस्तान में सर्वशक्तिमान सिस्टम ही है ,इस सिस्टम ने तानाशाही को लोकतंत्र के सांचे में ढालने की तरकीब सीख ली है यह वह प्रणाली है ,जिस पर देश की आम जनता को भरोसा नहीं है ,लेकिन फिर भी वो ख़ामोश है |
२६/११ के सन्दर्भ में कुछ ताजा उदाहरण महत्वपूर्ण है |हरकत उल जेहाद अल इस्लामी का मास्टर माइंड शहजाद उत्तर प्रदेश में कहीं गुम है ,पिछले दिनों पाकिस्तानी मूल के आतंकी टी हुसैन राजा और डेविड हैडली को इटली से ,और आतंकियों के मोबाइल में पैसे भेजने वाले मोहम्मद याकूब जंजुआ और उसके बेटे आमेर याकूब को विदेशों में पकड़ा गया |इंग्लॅण्ड के शहर वेस्ट मिनिस्टर में चार आतंकी पकडे गए |गृहमंत्री कहते हैं कि जस्टिस लिब्राहन की बाबरी मस्जिद विध्वंस वाली रिपोर्ट की सिर्फ एक प्रति है ,जो गृह मंत्रालय के पास है ,तब रिपोर्ट कैसे लीक हो गयी ?कहा है इन्टेलीजेन्स?कहाँ है आतंक के खिलाफ भुजाओं का जोर ?कहाँ हैं देश को देश बनाये रखने की राजनैतिक इच्छाशक्ति ?जानते हैं ?इन सभी विफलताओं इन सभी कमियों की सिर्फ और सिर्फ एक वजह है आम आदमी का सिस्टम में विश्वास न होना |यकीन करें न करें मगर कभी भी कहीं भी किसी भी वक़्त एक और २६/११ पैदा हो सकता है ,फिर कोई आम्टे मरा जायेगा ,फिर किसी करकरे की शहादत होगी ,फिर न जाने कितनो की आँखें कभी न ख़त्म होने वाला इन्तजार बना रहेगा |ये सब सिर्फ इसलिए की सिस्टम और आम आदमी के बीच की दूरी दिन प्रतिदिन और भी बढती जा रही है |जो आम आदमी अपने हिस्से की रोटी न मिलने के बावजूद उफ़ नहीं करता वो भला पडोसी के गम की साझेदारी , क्यूँ करेगा ?हाँ ,ये इंसानियत नहीं है ,ये विश्वासघात है ,ये देशद्रोह है फिर भी वो करेगा,जिस वक़्त ,जिस दिन मुंबई में समुद्र के किनारे करांची के रास्ते पहुंचे आतंकियों के बारे में मल्लाहों ने स्थानीय प्रशासन को सूचना न देने का फैसला किया था उस वक़्त ,उस दिन भी सिस्टम से दूरियां थी ,आज भी हैं |
आज भी देश के नगरों ,महानगरों की ३० फीसदी आबादी अपने चक्कर में व्यस्त है ,वह कदापि जोखिम नहीं लेना चाहती ,उसके पास डयूटी,व्यापार,बीबी बच्चों और बाजार के बाद घाटों पर दीप , स्मारकों पर मोमबत्ती जलाने और शोकसभा करने की फुर्सत है ,उसके लिए देशभक्ति भी फैशन है |मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आज धार्मिक ,सांस्कृतिक,पाखण्ड ,जाति भाषा और संप्रदाय के कलह में आम जनता की भागीदारी भी सिस्टम की विफलता का कारण है |सिस्टम की विफलता का प्रतीक वो ५५-६०करोड़ लोग है जो रोजी रोटी ,कपडा,घर,दवाई,के ही जुगाड़ में जीते मरते हैं ,इन्हें जिस दिन भरपेट भोजन और नींद भर आराम मिल जाता है उस दिन वे स्वय को सौभाग्यशाली मान लेते हैं , इस बड़े मेहनतकश वर्ग के प्रति सिस्टम संवेदनहीन है ,अन्याय भी गरीब के साथ ही होता है ये कोई सुचना इसलिए नहीं देते क्यूंकि पुलिस उल्टे इन्हें ही फंसा देती है ,हमने नक्सल प्रभावित राज्यों में पाया कि जहाँ गरीब के घर नक्सली जोर जबरदस्ती करते हैं वहीँ पुलिस भी उन्हें परेशान करती है |वह करें तो क्या ?पुलिस की सूचना नक्सली को दे या नक्सली की सुचना पुलिस को दे उन्हें मरना ही पड़ता है ,वे होंठ सी लेते हैं ,सिस्टम पर उन्हें विश्वास नहीं |प्रसंगवश नक्सलियों को रोकने के लिए हाई फाई सुरक्षा बंदोबस्त करने वाला सिस्टम..आदिवासियों की सुरक्षा तो दूर ,उन्हें लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से ही बाहर कर देता है .बैलेट का हक़ छिनकर बूलेट से मुकाबले की उम्मीद सिस्टम करता है तो सच्चाई पर पर्दा डालता है |
समाज के प्रति सवादना एवं कर्तव्यों कू समझे! यदि हम दुसरो को ही उत्तरदायित्व ठहरायागे तो कुछ नहीं हो सकता... यदि सरकर और सतता के लोग हमारे हिफाजत नहीं करसकती तो हमें खुद ही अपनी हिफाजत करना सीखना चाहिए
जवाब देंहटाएंसब कुछ सहमा सहमा सा तो है .. यह कब तक रहेगा क्या पता ... पोस्ट देखे यहाँ http://kavikokas.blogspot.com
जवाब देंहटाएंkya chintan hai bhai! shiddat se lekhan kar rahe ho.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha. par humein apni bhi jimmedaari samajhni hogi.... jaroorat hai ab humein jaagne ki.... likhte rahe... aur kabhi samay mile to humare bhi blog par aayein....
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