शुक्रवार, 24 जुलाई 2009
हमने मरना सिख लिया है !
हम सब बच्चे पैदा करने से डरते हैं क्यूंकि हम जानते हैं हम उन्हें बेबसी और आंसू के सिवा कुछ नहीं दे सकते |चौंकिए मत ये किसी पिक्चर का डायलाग नहीं ,जिंदगी से बुरी तरह थक चुकी उन औरतों की जुबान है ,जिनके लिए न सिर्फ सरकार बल्कि हम सबकी आँख का पानी मर चूका है इस पोस्ट को लिखते वक़्त हम ५ राज्यों की सीमा पर स्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद के दक्षिणांचल में हैं ,अभाव,उपेक्षा और सरकारी अक्षमता की बानगी बन चुके इस जनपद मे शासन एवं सत्ता की काली हकीकत एक त्रासदी पर परदा डालकर एक समूची पीढ़ी को विकलांग,नपुंसक और नेस्तनाबूद करने जा रही है यहाँ के चोपन ,दुद्धी व म्योरपुर ब्लाक के आधा दर्जन गाँव मे फ्लोराइड प्रदूषित जल के चपेट मे आकर हजारों आदिवासी स्त्री पुरूष व बच्चे स्थायी विकलांगता के शिकार हो रहे हैं ,माताओं की कोख सुनी पड़ी है ,वहीं तमाम जिंदगियों मे छाया अँधेरा अनवरत गहराता जा रहा है |राज्य पोषित विकलांगता का हाल ये है की जलनिधि समेत तमाम योजनाओं मे करोडो रुपए खर्च किए जाने के बावजूद यहाँ के आदिवासी गिरिजनों के हिस्से मे एक बूँद भी स्वच्छ पानी मयस्सर नही है फ्लोराइड रूपी जहर न सिर्फ़ इनकी नसों मे घूल रहा है ,बल्कि निर्बल व निरीह आदिवासियों के सामाजिक -आर्थिक ढाँचे को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है |
सोनभद्र के आदिवासी बाहुल्य पूर्वी इलाकों मे फ्लोरोसिस का कहर अपाहिजों की बस्ती तैयार कर रहा है ,यहाँ के पड़वा-कोदवारी ,पिपरहा ,कथौदी ,कुस्मुहा ,रासपहरी ,भात्वारी,राजो,नेमा ,राज मिलन ,बिछियारी समेत २ दर्जन गावों मे आदित्य बिरला की हिंडालको,कनोडिया केमिकल व एन.टी,पी.सी से निकलने वाले प्रदूषित जल का भयावह असर देखने को मिल रहा है ,आलम ये है कि लगभग १०० परिवारों के टोले पड़वा-कोद्वारी मे हर एक स्त्री -पुरूष व बच्चे को फ्लोराइड रूपी विष रोज बरोज मौत की और धकेल रहा है ,केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा विगत पाँच वर्षों में इस समूचे क्षेत्र मे फ्लोराइड मेनेजमेंट के नाम पर करोडो रुपये खर्च किए जाने के बावजूद न तो ओद्योगिक प्रदुषण पर लगाम लगाई जा सकी और न ही स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता को लेकर कोई कवायद की गई |,इस वर्ष भी अप्रैल माह मे कहने को तो फ्लोराइड मुक्त जल की व्यवस्था के नाम पर ५० लाख रुपए खर्च किए जाने का प्रशासन दावा करता रहा ,परन्तु जमीनी हकीकत ये है की कुछ भी नही बदला |हाँ,ये जरुर है कि इलाकों के सैकडों ,तालाबों व कुओं पर लाल रंग का निशान लगाकर लोगों को पानी न पीने देने की चेतावनी देने का थोथा प्रयास जरुर किया गया,मगर जबरदस्त पेयजल संकट से जूझ रहे इस जनपद मे नौकरशाही से थकहार चुके आदिवासियों ने अन्य कोई समानांतर व्यवस्था के अभाव में प्रदूषित जल का पीना जारी रखा |कहा जा सकता है की इस गंभीर रोग के साथ साथ मौत को भी अनवरत गले लगाया जा रहा है तमाम टोलों में स्थिति इस हद तक गंभीर है की हर एक परिवार के सारे लोग फ्लुओरोसिस की अन्तिम अवस्था से जूझ रहे हैं |कोद्वारी के रामप्रताप का सरीर इस कदर अकडा की वो चारपाई से कभी उठ नही पाते ,वहीं उनकी पत्नी व लड़का भी इस भयावह रोग की चपेट मे आकर रोज बरोज मर रहे हैं
कमोवेश यही हाल रामवृक्ष ,चन्द्रभान ,हरिकिशन समेत अन्य परिवारों का है |बच्चों मे जहाँ फ्लोराइड की वजह से विषम अपंगता,व आंशिक रुग्णता देखने को मिल रहा है ,वहीं गांव के विवाहितों ने अपनी प्रजनन व कामशक्ति खो दी है |गांव के रामनरेश,कैलाश आदि कहते हैं कि अब कोई भी अपने लड़के लड़कियों की शादी हमरे गांव मे नही करना चाहता ,देखियेगा एक दिन हमारे गांव टोलों का नामो,निशाँ मिट जाएगा |गांवों के हैंडपंप से निकल रहा लाल पानी हम लोगों को रोज बर्ज मौत की और धकेल रहा है |
महिलाओं मे फ्लोराइड का विष कहर बरपा रहा है ,इलाके मे गर्भस्थ शिशुओं के मौत के मामले सामने आ रहे हैं ,स्त्रियाँ मातृत्व सुख से वंचित हैं,वहीं घेंघा ,गर्भाशय के कैंसर समेत अन्य रोगों का भी शिकार हो रहे हैं ,लगभग ८० फीसदी औरतों ने शरीर के सुन्न हो जाने की शिकायत की है ,नई बस्ती की लीलावती,शांति,संतरा इत्यादी महिलाएं कहती हैं कि हम बच्चे पैदा करने से डरते हैं हमें लगता हैं कि वो भी कहीं इस रोग का शिकार न हो जाए ,फ्लुओरोसिस ने आदिवासी-किसानों को पूरी तरह से तबाह कर डाला है अपंगता की वजह से स्त्री पुरूष काम पर नही जा पाते हजारों हेक्टेयर परती भूमि कौडी के भाव बेची जा रही है ,नक्सल प्रभावित इन गांव मे अब तक प्राथमिक चिकित्सा की भी सुविधा उपलब्ध नही है ,पीडितों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्बारा एक टेबलेट भी मुहैया नही करायी गई |पिपरहवा के रामधन कहते हैं की अब हमें कुछ नही चाहिए हमने मरना सिख लिया है |
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आवेश जी, आपकी पोस्ट पढ़कर रौंगटे खड़े हो गये, सचमुच बहुत भयावह स्थिती हैं इसमें सरकार को जल्द से जल्द कोई न कोई एक्शन तो लेना ही पड़ेगा कितनी मौतें और होंगी भगवान ही जानें मगर जो लोग चले गये इस दुनियां से वो उस परिवार के लिये कितने कीमती होंगे, सोचने वाली बात है, ये बड़ी-बड़ी इडस्ट्रीज तो हर क्षेत्र में होंगी और उनसे वातावरण प्रदुषित तो अवश्य होगा, मगर देखने वाली बात यह हैं कि ये करोड़ों का काम करने वाली कम्पनियां क्या आम जनता का बिलकुल भी खयाल नही रख सकती? बहुत जरूरी है इस ओर सरकार का ध्यान दिलाया जाना और अधिक से अधिक विरोध करना ताकि बेगुनाह लोगों को बचाया जा सके...
जवाब देंहटाएंसुनीता शानू
काश सच का आइना लोगों को सोचने पर मजबूर करे,
जवाब देंहटाएंरोंगटे खड़े हो जाते हैं ...............
बहुत कड़वी मगर दवा सी बात!
जवाब देंहटाएं---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
आवेश जी,
जवाब देंहटाएंसोनभद्र का ये सच न तो सरकार की नज़रों से ओझल है न उन पूंजीपतियों से जिनकी मेहरबानी से
आपके लेख में वर्णित उन सभी गावों में अपाहिजों की बस्ती बस रही है, या यूँ कहें कि अपाहिजों की बस्ती ख़त्म हो रही| यह सब जानकार बहुत दुःख होता है, कभी कभी लगता कि ये साजिश हीं है कि जबतक इन्हें अपाहिज और कमजोर न बनाया जाए इनपर शासन नहीं किया जा सकता| आपका लेख सच को उजागर कर रहा, अब देखना है कि इन सुन्न शासकों की नींद कब खुले| बहुत शुभकामनायें|