सोमवार, 1 जून 2009

ऑस्ट्रेलियाई मूसल में हिन्दुस्तानी सर


नस्लवाद का प्रतीक बनते जा रहे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले की खबरें इन दिनों सुर्खिया बनी हुई हैं दो चार दिनों में इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के और भी गरम होने के आसार हैं |क्रिकेट हो या पढाई ,नस्लवाद ऑस्ट्रेलिया के चरित्र का हिस्सा बन चूका है और हम सब ये सच्चाई जानते हैं |चाहे भारतीय चिकित्सकों को आतंकवादी करार देकर उन्हें प्रताड़ना देने का मामला हो ,खेल के मैदान पर हिन्दुस्तानी खिलाड़ियों को भद्दी गालियाँ देने की बात हो या फिर महज माह में ५०० हिन्दुस्तानियों को आपराधिक मामलो में जेल भेजने का ,हर जगह ,हर कहीं ,गंभीर रूप से नस्लवाद मौजूद रहता है |यहाँ हमारी इस पोस्ट में बात महज ऑस्ट्रेलिया और उसकी नस्लवादी नीतियों की नहीं होगी अपितु हम उन हिन्दुस्तानियों पर भी बात करेंगे जो खुद अपना सर मूसल में डालने को तैयार बैठे हैं ,,जी हाँ ,ये सच है की ऑस्ट्रेलिया जाने वाले ज्यादातर छात्र उन करोड़पति माँ बाप की संतान हैं ,जो अपने बच्चों को डॉक्टर इंजिनियर और विदेश में पढाई का तमगा दिलाने के लिए कोई भी कीमत देने का मादा रखते हैं ,आम आदमी का बच्चा ऑस्ट्रेलिया पढने नहीं जाता| उन्हें आज देश की याद आती है जब बाहर वाले उन्हें अपमानित करते हैं ,नहीं तो वो खुद को एन ,आर आई बनाने के लिए सारी कसरते कर रहे होते हैं |हमने आज जब अपने एक रिश्तेदार से सिडनी में पढ़ रहे उनके हमेशाथर्ड डिविजन पास होने वाले बच्चे का हाल चाल पूछा ,तो उन्होंने बच्चे का हाल कम बताया ,भारत सरकार की विदेश नीति की ऐसी की तैसी कर दी |एक ऐसे देश में जहाँ आज भी ४० फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं ,ऐसे देश में जहाँ उच्च शिक्षा के अवसरों को लेकर युद्घ की सी स्थिति है ,एक ऐसे देश में जहाँ खाली पेट किताबों से दोस्ती करने की ढेर सारी हानियां मौजूद हैं ,उस देश में चॉकलेट संस्कृति की उपज इन छात्रों के लिए रोने की कोई वजह फिलहाल मेरे पास तो मौजूद नहीं है |साथ ही मैं दो चार की संख्या में वहां मौजूद किसान परिवारों केलड़कों को लेकर भी मातम मनाने नहीं जा रहा ,जो अपने बाप -दादा की जमीन बिकवाकर विदेशी डिग्री लेने को लालायित हैं |हाँ हमें इस बात पर जरुर गहरा ऐतराज है की हिन्दुस्तानी छात्रों के नाम पर ,हिन्दुस्तान को अपमानित करने की कोशिश की जा रही है |ये पूरा मामला ऑस्ट्रेलिया के नस्लवाद के साथ साथ ,हमारे देश में गहरी जड़े जमा चुके शैक्षणिक नस्लवाद से भी जुडा है ,हमें इस विषय पर भी बात करनी ही होगी क्यूँकर वर्षों की तैयारी के बाद आई आई टी में असफल होने के बाद गरीब बाप का बेटा पल्लव पहले कॉलेज की सीढियों पर फूट -फूट कर रोता है ,फिर फांसी लगा लेता है |

ऑस्ट्रेलिया में हिन्दुस्तानी छात्रों पर हमले के बीच अब जबकि देश के लगभग सभी हिस्सों में १२ वीं कक्षा के परिणाम लगभग घोषित हो चुके हैं ,उन बिचौलियों और एजेंसियों के हाँथ पाँव फूले हुए हैं जो विदेश में अध्ययन के नाम पर यहाँ के अमीरों से भारी वसूली करते थे |दिल्ली की एक बड़ी एजेन्सी ने अपना घाटा होते देख ,बड़े समाचारपत्रों को भारी भरकम विज्ञापन देकर उनसे .नस्लीय हिंसा की ख़बरों को ज्यादा तरजीह देने की बात भी मनवा ली है ,वहीँ डोनेशन में ताबड़तोड़ छूट की घोषणाएं की जा रही हैं |आप यकीं मानिए पिछले साल ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारतीय छात्रों को लुभाने के लिए विज्ञापनों पर 35 लाख डॉलर खर्च किए थे।साथ ही हर साल भारत के छात्रों से ऑस्ट्रेलियाई सरकार को लगभग 8000 करोड़ रुपये हासिल होते हैंआज मंदी के इस भयावह दौर में वहां की अर्थव्यस्था का एक बड़ा हिस्सा विदेशी छात्रों की फीस से ही आना है |ऐसे में ये तय है कि अगर विदेशी छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया से मुँह मोडा तो उनकी अर्थव्यवस्था चिन्न -भिन्न हो जायेगी ,मगर ये तय है हमेशा की तरह इस वर्ष मेभी हजारों छात्र लाखों खर्च करके विदेश पढने जायेंगे ,ये वे छात्र होंगे जिन्हें देश के प्रतिष्ठित संस्थाओं में प्रवेश पाने की योग्यता नहीं होगी ,लेकिन कल को वहां से पढ़कर आने वाला लड़का विदेशी डिग्री की चमक के साथ हमारे यहाँ के होनहार छात्रों के हांथों से सिर्फ अवसर छीन लेगा ,बल्कि उसे उठाकर पिछली पंक्ति में बैठा देगा |मेरी पत्रकार मित्र सोमाद्री शर्मा कहती हैं कि आस्ट्रेलियन सरकार गैरबराबरी का हथकंडा यहाँ भी अपनाती है ,जो छात्र ऊँची फीस देते हैं उन्हें तो सीधे प्रवेश देदिया जाता है लेकिन इंडो-आस्ट्रेलियन शैक्षणिक सहयोग के तहत निर्धारित मुफ्त सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन कर दी जाती है कि उनमे से ज्यादातर छात्र फ़ेल हो जाते हैं ,अनियमितता का आलम ये है कि पिछले कई वर्षों से इन मुफ्त सीटों को भरा ही नहीं जा रहा है चूँकि देश के कई बड़े नेताओं के नाते रिश्तेदार भी वहां पढ़ रहे हैं इसलिए इस गंभीर मसले पर सभी ने अपने होंठ सी रखे हैं |
लगातार अपमान सहने और लात घूंसा खाने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों की बेशर्मी देखिये ,भारतीय समुदाय ने रविवार एक बैठक करके आस्ट्रेलियन सरकार का पक्ष लेते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया को नस्लभेदी देश करार देने में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए ,यहाँ सरकार को इस समस्या से निबटने का मौका देना चाहिए ,पूर्व भारतीय काउंसलेट जनरल टी,जे राव ने कहा कि ये मामला नस्लभेद का नहीं है बल्कि भारतीय छात्रों की रक्षा का है ,४० सालसे ऑस्ट्रेलिया में रोटी तोड़ रहे राव महोदय का कहना है कि मेरे साथ जब कभी गैरबराबरी का भेदभाव नहीं किया गया | सिडनी में रहने वाले एक चिकित्सक ने तो कहा कि ऑस्ट्रेलिया नस्लभेदी नहीं है भारतीयों पर जो हमले हुए वे सभी नस्लभेदी नहीं हैं ,शायद ये लोग वहां पढ़ रहे भारतीय छात्रों की हत्याओं का इन्तजार कर रहे हैं ,या फिर लाख अपमान के बावजूद गोरी चमडी के बीच रहने के सुख को वो छोड़ना नहीं चाहते |भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर जोनमाइक क्रथि ने इस पुरे मामले पर ये कहकर कि विश्व में हर जगह किसी किसी रूप में नस्लवाद मौजूद है ,अपनी सरकार की सोच जगजाहिर कर दी है ,मौजूदा समय में आस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री केविन रूड अगर बगले झांकते नजर रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने देश के चरित्र पर से नकाब उतरने का भय है |
अभी पिछले दिनों सुरक्षा का हवाला देते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम ने चेन्नई में होने वाले डेविस कप में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। इसके पूर्व कई बार सुरक्षा उपायों का हवाला देकर ऑस्ट्रेलिया बार बार अपने क्रिकेट दौरों में परिवर्तन करता रहा है ,रविवार को नस्लीय विवाद के बाद भारतीय छत्रों द्वारा शांति मार्च निकाला गया था इस रैली के बाद ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने 18 छ्त्रों को हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने भारतीय छात्रों पर लाठियां बरसाई और हालात यह थे कि एक छात्र को छह-छह पुलिस वाले घेरे हुए थे। इन छात्रों को पुलिस ने हिंसा फैलाने के नाम पर हिरासत में लिया। रैली के दौरान पुलिस ने छ्त्रों पर लाठी चार्ज किया और उन्हें बुरी तरह घसीट कर ले गई।ये इन्तेहाँ है ,मगर अफ़सोस अपमान के बावजूद हम ऑस्ट्रेलिया को लेकर कोई नीति तय नहीं कर पाए |अगर यही हाल किसी एक दो आस्ट्रेलियन नागरिकों के साथ यहाँ भारत में हुआ होता तो वहां की सरकार कब का अंतर्राष्ट्रीय लोबिंग के साथसाथ अपने नागरिकों को भारत छोड़ने का फरमान जारी कर चुकी होती | जरुरत इस बात की है कि पहले भारत सरकार अपना राजनयिक अभियान तेज करते हुए ऑस्ट्रेलिया सरकार से हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गारंटी के साथ साथ ऐसी घटनाओं की पुनरावृति होने का आश्वाशन ले ,वहीँ तब तक अपने सभी नागरिकों को वापस भारत बुलाना सुनिश्चित करे ,अगर ऐसा नहीं होता तो भारत को तात्कालिक तौर पर ऑस्ट्रेलिया से सभी प्रकार के राजनयिक सम्बन्ध भी ख़त्म कर लेने चाहिए साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मामले को उठाना चाहिए , आई सी सी में भी यह पूरा मामला उठाकर क्रिकेट में भी ऑस्ट्रेलिया पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की मांग की जानी चाहिए |क्यूंकि आस्ट्रेलियन क्रिकेट भी पूरी तरह से रंगभेद का प्रतिक बन चूका है लेकिन इन सबसे पहले जरुरी ये है कि पैसों के बल पर अपने बच्चों का भविष्य तैयार करने में लगे अभिभावक अपनी जमीन पहचाने ,सरकार को भी चाहिए कि आरक्षण और आश्वाशन कि राजनीति छोड़कर उच्च शिक्षा के अवसरों में तात्कालिक तौर पर बढ़होतरी के उपाय करे ,नहीं तो मंदी के इस दौर में वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया से हमें खदेडा जाएगा |

7 टिप्‍पणियां:

  1. इस गंभीर मामले का इतना विशद एवं पूर्ण विवेचन के लिए आप बधाई के पात्र हैं।

    शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, आदि-आदि में दो-स्तरीय व्यवस्था है हमारे "लोकतांत्रिक" देश में। एक अमीरों के लिए एक गरीबों के लिए। प्राइवेट स्कूल-सरकारी स्कूल, निजी अस्पताल-सरकारी अस्पताल, ट्रेनों में महंगे वातानुकूलित डिब्बे, और अनरिजर्व्ड कोच, इत्यादि, इत्यादि। आस्ट्रेलिया, ब्रिटन, अमरीका आदि में अपने बच्चों को पढ़ाकर हमारे यहां के रईसे अपने पैसे के बल पर देश की घटिया शिक्षण व्यवस्था से अपने बच्चों को ऊपर उठा ले जाने की कोशिश करते हैं। अब इस कोशिश में उन्हें नस्लवाद का सामना करना पड़ रहा है, तो वे हतप्रभ हो रहे हैं।

    आपने सही कहा है, अपने देश में शिक्षा व्यवस्था को सुधारना ही इसका सही समाधान है।

    अमीर लोगों को भी अपने बच्चों को यहीं के सरकारी स्कूलों में पढ़ाना चाहिए, तभी इन स्कूलों का स्तर सुधरेगा।

    लेकिन यहां तो अभिजातीयता को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। अभी हाल में प्रधान मंत्री का बाइपास हुआ, तो सरकारी अस्पताल में नहीं, बल्कि निजी नर्सिंग होम में। इससे बड़ा नस्लवाद क्या हो सकता है?

    ऐसा नियम बनाना चाहिए कि देश के मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति आदि अपना इलाज सरकारी अस्पतालों में ही कराएंगे, तब देखिए इनका स्तर कैसे मिनटों में सुधर जाता है।

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  2. आवेश जी,
    आस्ट्रेलिया की जनता की सोच हीं नस्लवादी होती जा रही, जिसका उदाहरण छात्रों पर क्रूरतम हमला हो या क्रिकेट के मैदान में अपमानजनक भाषा का प्रयोग, हम आये दिन देख रहे हैं| पर यह समस्या सिर्फ एक देश की नहीं, बल्कि मेरा अपना विचार है कि समस्त दुनिया की समस्या है| इंसान इतना ज्यादा संकुचित सोच और आक्रोश में जी रहा जिसका परिणाम दुनिया के हर कोने में किसी न किसी रूप में दिख जा रहा|
    प्रतिस्पर्धा की भावना का ज्वलंत उदाहरण आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमला है| मसला ये नहीं कि वहाँ सिर्फ अमीर घरानों के बच्चे पढ़ने जाते| बहस का विषय हमारी शिक्षा की दोहरी नीति और रोज़गार की बात है| विदेश के छोटे से छोटे संस्थान से पढ़कर आये व्यक्ति को देश के प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़े व्यक्ति की तुलना में ज्यादा महत्व और तनख्वाह मिलता| ऐसे में सुअवसर को खोना कौन चाहेगा| सामजिक स्तरीकरण और जातीय विभाजन के फलस्वरूप आरक्षण, बेरोज़गारी, गरीबी, जनसँख्या में बेतहाशा वृद्धि, बहुत सारे कारण हैं जिससे हमारे देश के भीतर भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है|
    एक बात और है कि देश में जाति हीं नहीं उपजातियों के बीच भी द्वेष भावना देखते हैं, फिर ऐसे में जातिये आधार पर आरक्षण, दलित और पीड़ित जैसे शब्दों के द्बारा राजनीति, धार्मिक मुद्दा जानबूझकर उखाड़ना, आदि ऐसे गंभीर मसले हैं, जिनसे हम कभी उबार हीं नहीं पाते| जबकि आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, आदि विकराल रूप लेता जा रहा| रैगिंग में छात्रों को पीड़ित करना भी एक आम समस्या है| किन किन समस्याओं से कैसे निपटा जाये, देश हीं नहीं समस्त विश्व के सामने ये समस्या है|
    सरकार को दोषी मानना और क्रोध में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना चाहे भारत सरकार हो या आस्ट्रेलिया की सरकार, इससे समस्या का निराकरण नहीं हो सकता| सरकार और हर देश की जनता को समस्या नहीं बल्कि समस्या के तह तक जाना होगा, ताकि कुछ सशक्त कदम ले सके|
    आपने बहुत अच्छी तरह से समस्या का चित्रण और विश्लेषण किया है| एक सुझाव देना चाहूंगी कि, आप अपने लेख पर सिर्फ प्रतिक्रिया हीं नहीं बल्कि लोगों से कुछ सार्थक सुझाव भी देने को प्रेरित करें| सटीक लेखन के लिए बधाई और शुभकामनायें|

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  3. मैं आपकी बातों से सहमत हूँ..लेकिन पूर्णतया नहीं...!ठीक है विदेश में पैसे वाले ही पढने जाते है और आज हमारे देश में सर्वोतम शिक्षा तंत्र विद्यमान है फिर विदेश जाने की जरुरत कहाँ है?लेकिन इस सब से वहां गए भारतीय अनाथ नहीं हो जाते ...उनके हितों की रक्षा भी भारत सरकार को ही करनी होगी !फिर आपने ऑस्ट्रेलिया को बेदाग कैसे मान लिया?क्या आप क्रिकेट में हुए ड्रामे को भूल सकते है ?ऑस्ट्रेलिया हो या इंगलैंड ,इन लोगों में नस्लवादी भावनाएं भरी हुई है और ये उसे उगलते भी रहते है...!अब आप और मैं चाहे जो समझे ..ये समझने वाले नहीं है...

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  4. इस गंभीर मुद्दे पर सही और सटीक विवेचना !

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  5. एक ज्वलन विषय को उठाना,उसपर एक सफल नज़रिया देना .... तुम्हारा एक सकारात्मक प्रयास सरह्निये तो है ही,अनुकरनिये भी है.......

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  6. एक सामाजिक समस्या की अच्छी विवेचना की है.ये सही है की बाहर अमीर लोगों के बच्चे जाते हैं पर हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए की क्यों जाते हैं....अगर हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था कुछ ठीक ठाक होती तो किसी को भी अपना देश छोड़कर जाने की जरुरत न होती.हर माँ बाप अपने बच्चे को अपनी तरफ से बेस्ट देना चाहते हैं.परन्तु उन्हें पता है की भारत में किसी भी अच्छी जगह से पास करके भी (आई आई टी के अलावा ) उनका बच्चा वो तनख्वाह नहीं पा सकता जो बहार के छोटे से इंस्टिट्यूट से पड़कर पा लेगा.तो अगर अपने करियर की बेहतरी के लिए कोई बहार जाकर पड़ता या काम करता है इसका मतलब ये तो नहीं की वो इंडियन ही नहीं रहा.यकीन मानिये उनलोगों में अपने देश के प्रति प्यार किसी भी भारत में रहने वाले भारतीय से कम नहीं होता.भारत में क्या हमें हर जगह (फिर चाहे वो स्कूल हो या वर्क प्लेस) जातिवाद,या राज्यवाद का सामना नहीं करना पड़ता.यहाँ ये सब कहने से मेरा तात्पर्य ये कदापि नहीं है की वहां जो हो रहा है वह सही है.
    वहां जो हो रहा है वो पूर्णतया गलत है. और इसकी जिम्मेदारी वहां की सरकार को लेनी चाहिए.
    मेरा कहने का मतलब सिर्फ यही है की ये समस्या ऑस्ट्रेलिया हो या इंग्लैंड,या भारत हर जगह है तो हमें सीधे सीधे वहां रह रहे भारतियों को या सरकार को दोष देने की जगह अपने देश की व्यवस्था में सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए.
    एक ज्वलंत समस्या को उजागर करता अच्छा लेख लिखा है आपने बधाई आवेश जी.

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  7. kis baat pe hum ho halla macha rahe hai?????..naslvadita pe !!!!!!!...kya humara daman dudh ka dhula hai ????..kya hum apne desh me insaan ko insaan hone ka samman de paye hai????..jab jawab nahi hai to kyun hum apni aawaz itni unchi kar rahe hai ..sirf isliye kyunki is baar pathhar humare kisi apne ko laga hai ?????.....ab bhi waqt hai jagiye ..laut jaiye apne sanskaron ki aur jo sikhate the sabse pyaar karna..aur Athithi devo bhava kahe jaate the jisme ..jab khudko us kabil bana le tab ...ungli unki taraf utahiye

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